Sunday, September 1, 2024

69000 Shikshak Bharti: कब और कैसे शुरू हुआ सहायक शिक्षकों की भर्ती का विवाद? कहां फंसा था पेच

69000 Shikshak Bharti: कब और कैसे शुरू हुआ सहायक शिक्षकों की भर्ती का विवाद? कहां फंसा था पेच

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार का विश्वास है कि आरक्षण का लाभ सभी रिजर्व कैटेगरी के उम्मीदवारों को मिलना चाहिए।


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69000 Shikshak Bharti: यूपी में 69000 शिक्षक भर्ती मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की डबल बेंच ने सहायक शिक्षक भर्ती की मेरिट लिस्ट को रद्द कर दिया है। साथ ही यूपी सरकार को नई मेरिट लिस्ट तैयार कर नए सिरे से परीक्षा परिणाम जारी करने के भी निर्देश दिए। कई याचिकाओं में भर्ती प्रक्रिया को कोर्ट में चुनौती दी थी। इसमें उम्मीदवारों ने आरोप लगाया था कि रिजर्व कैटेगरी के लोगों के लॉ के हिसाब से नहीं चुना गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार को नियुक्तियों में रिजर्वेशन लागू करने में थोड़ी कमियों को सुधारना चाहिए।

सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा किसलिए है?
5 दिसंबर, 2018 को उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के बेसिक एजुकेशन डिपार्टमेंट में 69000 सहायक शिक्षकों की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था। असिस्टेंट टीचर रिक्वायरमेंट एग्जामिनेशन 5 जनवरी, 2019 को करवाई गई थी। पेपर के लिए आवेदन करने वाले 4.31 लाख उम्मीदवारों में से 4.10 लाख ने इसको दिया था। 12 मई को इसका रिजल्ट आया था। इसमें 1.46 लाख उम्मीदवारों ने क्वालीफाई किया।। जनरल कैटेगरी के उम्मीदवारों के लिए कट ऑफ 67.11 फीसदी लगी थी। ओबीसी के लिए 66.73 फीसदी, एससी कैटेगरी के उम्मीदवारों के लिए कट ऑफ 61.01 फीसदी लगी थी।

1 जून 2020 को बेसिक एजुकेशन बोर्ड इलाहाबाद के सचिव ने भर्ती प्रक्रिया का खाका खींचा था। इसके बाद चुने गए उम्मीदवारों के लिए दो लिस्ट जारी की गई थी। इसमें से एक 11 अक्टूबर 2020 को जारी की गई थी। इसमें 31,277 अभ्यर्थी थे और वहीं अब दूसरी लिस्ट की बात करें तो यह 30 अक्टूबर 2020 को जारी की गई थी। इसमें कुल 36,590 अभ्यर्थी थे। अब टोटल करें तो 69,000 पदों में से 67,867 अभ्यर्थी थे। एसटी कैटेगरी के उम्मीदवारों के लिए बचे हुए 1,133 पद उम्मीदवारों के ना होने की वजह से खाली दिखाए गए।

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भर्ती में अनियमितताओं के आरोप क्या थे?
दोनों लिस्ट जांच के दायरे में उस समय आ गई जब आरोप लगे कि इन्हें उम्मीदवारों के कैटेगरी वाइज नंबरों की घोषणा किए बिना ही जारी कर दिया गया। इसके अलावा यह आरोप लगाया गया कि अनरिजर्व कैटेगरी के उम्मीदवार कुल चुने गए उम्मीदवारों से 50 फीसदी से ज्यादा थे और रिजर्व कैटेगरी के उम्मीदवारों को भी ठीक-ठाक प्रतिनिधित्व नहीं मिला।

भर्ती को चुनौती देने वाले उम्मीदवारों के मुताबिक, ओबीसी उम्मीदवारों को 27 फीसदी की जगह सिर्फ 3.86 फीसदी आरक्षण मिला, जबकि अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को 21 फीसदी की जगह 16.2 फीसदी आरक्षण मिला। अक्टूबर 2020 से पेपर देने वाले उम्मीदवारों ने पेपर की प्रक्रिया को लेकर कई बार विरोध-प्रदर्शन किया। इतना ही नहीं इस मामले में उनकी पुलिस के साथ झड़प भी हो गई। साल 2021 में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में प्रदर्शन करने वाले छात्रों के एक डेलिगेशन से मुलाकात की और बेसिक डिपार्टमेंट के अधिकारियों से जल्द ही कुछ हल निकालने के लिए कहा था।

हाईकोर्ट पहुंचे शिक्षक अभ्यर्थी
कई सारे अभ्यर्थी इस मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे। उन्होंने आरोप लगाया कि मेधावी रिजर्व उम्मीदवारों को जनरल कैटेगरी के बजाय रिजर्व कैटेगरी में रखा गया। उन्होंने कहा कि यह रिजर्वेशन एक्ट 1994 की धारा 3(6) के खिलाफ था। इसमें यह प्रावधान है कि रिजर्व कैटेगरी के उम्मीदवार जो जनरल कैटेगरी के उम्मीदवारों के बराबर नंबर लाते है, उन्हें अनरिजर्व वैकेंसी पर नियुक्त किया जाना चाहिए।

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कई हलफनामे दाखिल किए। बाद में एक बयान जारी कर माना कि इस मामले में रिजर्वेशन एक्ट 1994 का ठीक तरीके से पालन नहीं किया गया। इसलिए 5 जनवरी, 2022 को नई लिस्ट जारी कर रिजर्व कैटेगरी के उम्मीदवारों में से 6,800 और नियुक्तियां की गई। लेकिन 13 मार्च, 2023 को पारित आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने चुने गए पिछले उम्मीदवारों की पिछली लिस्ट को रद्द कर दिया। 13 मार्च के आदेश को चुनौती देते हुए कई याचिकाओं के जरिये यह मामला 17 अप्रैल, 2023 को फिर से इलाहाबाद हाईकोर्ट जा पहुंचा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और जस्टिस बृज राज सिंह की बेंच ने राज्य सरकार और संबंधित अधिकारियों को नियुक्ति के लिए 69,000 उम्मीदवारों की नई लिस्ट जारी करने का निर्देश दिया। उन्हें यूपी बेसिक एजुकेशन सर्विस रूल, 1981 और उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस एक्ट 1994 के प्रावधानों का पालन करना है। कोर्ट ने उन्हें तीन महीने के अंदर यह प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर पिछली लिस्ट के आधार पर चुने गए कोई असिस्टेंट टीचर पर इस कार्रवाई का असर पड़ता है तो उसे एकेडमिक सेशन में नौकरी जारी रखने की इजाजत दी जाएगी। यह इसलिए ताकि स्टूडेंट को परेशानी का सामना ना करना पड़े। हालांकि, पिछली लिस्ट को रद्द किया जाना चाहिए। कोर्ट ने सिंगल बेंच के मार्च 2023 के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं को निपटा दिया था।

इसका राजनीतिक असर क्या है?
यह मामला रिजर्वेशन से जुड़ा हुआ है, इसलिए यह मुद्दा योगी आदित्यनाथ की सरकार के लिए राजनीतिक तौर पर भी काफी जरूरी है। उत्तर प्रदेश की आबादी में करीब 50 फीसदी ओबीसी हैं। हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में कई ओबीसी समुदायों ने अपने वोट विपक्षी दल इंडिया को दे दिए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार का विश्वास है कि आरक्षण का लाभ सभी रिजर्व कैटेगरी के उम्मीदवारों को मिलना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि यह तय किया जाएगा कि किसी भी उम्मीदवार के साथ अन्याय न हो। सीएम ने बेसिक एजुकेशन डिपार्टमेंट को इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक आगे बढ़ने का निर्देश दिया।

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने पहले भी राज्य सरकार पर हमला करते हुए बयान दिए हैं। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने शनिवार को कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आरक्षण व्यवस्था से खिलवाड़ करने वाली बीजेपी सरकार की साजिशो का करारा जवाब है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शुक्रवार को कहा कि 69000 शिक्षक भर्ती भी बीजेपी के घोटाले, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार की शिकार साबित हुई।

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