दंड के नाम पर शिक्षकों का वेतन रोकना नियमावली के विरुद्ध
किसी भी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी भी शिक्षक का वेतन रोके। प्रदेश में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों के द्वारा ताबड़तोड़ निरीक्षण किए जा रहे हैं और उसमें शिक्षकों के वेतन रोकने के लगातार आदेश जारी किए जा रहे हैं। बीएसए के इन आदेशों के खिलाफ कुछ शिक्षक हाईकोर्ट पहुंच गए थे जहां पर कोर्ट ने बेसिक शिक्षा सचिव को तलब कर लिया हाईकोर्ट ने सचिव से कहा था कि वह बीएसए की जवाबदेही तय करें। बीएसए किसी भी शिक्षक का वेतन नहीं रोक सकते हैं यह शिक्षा के अनिवार्य शिक्षा के नियम का सरासर उल्लंघन है। कोर्ट ने यह भी कहा कि खंड शिक्षा अधिकारी जिस तरह से वेतन रोकने की संस्तुति कर रहे हैं वह नियम के विपरीत है उनके खिलाफ विभागीय अधिकारी एक्शन लें। इसके साथ ही महानिदेशक कंचन वर्मा ने सभी खंड शिक्षा अधिकारियों को शिक्षकों के वेतन ना रोके जाने के लिए स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं।
आदेश के मुताबिक बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से संचालित विद्यालयों में शिक्षकों, कर्मचारियों व बाबुओं का वेतन अब दंड के नाम पर नहीं रोका जाएगा। यदि कोई बिना सूचना अनुपस्थित रहकर वेतन लेने का प्रयास करता है तो सभी तथ्यों के साथ जांच कर वेतन में कटौती की जायेगी। उसका रिकॉर्ड सर्विस बुक पर दर्ज होगा। इस संबंध में शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा ने सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों को नियमावली का हवाला देते हुए आदेश जारी किया है। आदेश के मुताबिक उ.प्र. सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली 1999 तथा उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद कर्मचारी वर्ग नियमावली 1973 में वेतन अवरूद्ध करना किसी प्रकार के दण्ड के रूप में नियम नहीं है।
ई-सेवा पुस्तिका पर दर्ज होगी अनुशासनात्मक कार्यवाही-
शिक्षा महानिदेशक ने बेसिक शिक्षा अधिकारियों को आदेशित किया है कि शासनादेशों तथा नियमावलियों के आलोक में शिक्षक व शिक्षिका या कर्मचारी के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही को ई-सेवा पुस्तिका पर भी दर्ज किया जाए। ऐसा न करने पर बीएसए जिम्मेदार होंगे।
भ्रष्टाचार पर प्रहार-
विभागीय अधिकारियों के मुताबिक जिलों में जब शिक्षक व कर्मचारियों पर किसी भी प्रकार से दंडात्मक कार्यवाही की जाती है तो उसके नाम पर सबसे पहले वेतन रोका जाता है। कोर्ट भी कई बार विभाग से जवाब तलब कर चुका है कि वेतन किस आधार पर रोका गया है। विभागीय अधिकारियों द्वारा पहले वेतन रोका जाता है फिर ले देकर बहाल कर दिया जाता है। अब डीजी के आदेश के बाद वेतन रोकने व बहाली के नाम पर होने वाले भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा।
नियम पर ध्यान नहीं दिया तो अधिकारी भी होंगे दंडित-
महानिदेशक के आदेश के मुताबिक नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा अनुशासनात्मक कार्यवाही की सभी प्रक्रिया पूरी करने के बाद वेतन अथवा वेतन वृद्धि रोकी जायेगी। ऐसी कार्यवाही अत्यन्त गम्भीर प्रकरण में ही की जायेगी। आदेश में कहा गया है कि शासन के कार्मिक विभाग की ओर से निलम्बन एवं अनुशासनात्मक प्रक्रिया के अधीन व निर्धारित प्रपत्रों पर ही कार्यवाही की जाये। अन्यथा कार्यवाही करने वाले अधिकारी के विरूद्ध भी नियम विरूद्ध कार्य करने की कार्यवाही की जायेगी। किसी तात्कालिक प्रकरण में जिलाधिकार की अनुमति से कर्मचारी को प्रतीक्षा में रखा जा सकता है। इसका स्थायी अनुमोदन निदेशक बेसिक शिक्षा द्वारा तथ्यों के आधार पर किया जायेगा।
महानिदेशक को वेतन अवरुद्ध करने की मिली शिकायत-
महानिदेशक को इस बात की शिकायत मिली थी कि विभागीय कार्यक्रमों में अपेक्षित परिणाम प्राप्त न होने के कारण या फिर विभागीय आदेशों की अवहेलना के कारण शिक्षकों व शिक्षणेत्तर कर्मियों के विरूद्ध कार्यवाही के नाम पर वेतन अवरूद्ध किया जाता है। ये नियमावली के मुताबिक गलत है। महानिदेशक ने अपने आदेश में कहा कि बेसिक शिक्षा अनुभाग-5 के शासनादेश में स्पष्ट है कि वेतन या वेतन वृद्धि रोकना अनुशासनात्मक कार्यवाही की प्रकिया से शामिल होता है। अतः जब तक स्थापित नियमों के अधीन औपचारिक आदेश जारी न हो किसी भी कार्मिक का वेतन अथवा वेतन वृद्धि को रोका नहीं जा सकता है। अन्यथा यह दायित्व निर्धारण का विषय होगा संबंधित अधिकारी पर सख्त कार्यवाही की जाएगी