Thursday, April 5, 2012

An Article by Blog Visitor (Mr. Shyam Dev Mishra ) regarding UPTET (Uttar Pradesh Teacher Eligibility Test )


An Article by Blog Visitor (Mr. Shyam Dev Mishra ) regarding UPTET (Uttar Pradesh Teacher Eligibility Test )


प्रेषक: Shyam Dev Mishra <shyamdevmishra@gmail.com>
दिनांक: 5 अप्रैल 2012 1:36 am
विषय: Matter for publishing on blog
प्रति: Muskan India <muskan24by7@gmail.com



प्रिय मित्रों,

टी..टी भर्ती-प्रक्रिया से सम्बंधित मेरे लेख को मिले आपके भारी समर्थन (आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आपके ब्लॉग पर 01.04.2012 को दिए लिंक के माध्यम से मात्र 1 दिन में 1005 लोगो ने मेरे इस लेख को ऑनलाइन पढ़ासे प्रोत्साहन पाकर मैंने इस मुहिम में अपनी छोटी-सी हस्ती और अल्पबुद्धि के अनुसार और आगे तक आपका साथ देने की हिम्मत की है

प्रदेश के लाखों टी..टीउत्तीर्ण अभ्यर्थियों का संघर्ष अभी और लम्बा चलेगा. मुख्यमंत्री से होने वाली वार्ता के माध्यम से यदि सरकार की टी..टीनिरस्त करने और 72825  प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती के आधार को बदल देने की तैयारियों पर पूर्णविराम लग जाता है तथा न्यायालय में मजबूत पैरवी के द्वारा स्थगनादेश हटवाकर भर्ती-प्रकिया को शीघ्र शुरू करने पर सहमति बन जाती है तो वाकई में अखिलेश यादव  "पुस्तक-परीक्षा वाली पार्टी की सरकार"  का बदनुमा दाग हटाने में सफल हो जायेंगे तथा लाखो-करोडो लोग उनपर भरोसा करने के अपने फैसले को सही मानेगे तथा शिक्षा का अधिकार अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति की राह  पर प्रदेश आगे बढेगा.
पर आजकल जिस प्रकार के राजनेता और राजनीति हैंऔर जिन परिस्थितियों में यह मुलाकात हो रही हैउनमे इस वार्ता से किसी सकारात्मक निर्णय की आशा करना अतिआशावादिता  ही कही जाएगीमुख्यमंत्री की अभी तक की गतिविधियों को ध्यान से देखें तो वो भी अन्य नेताओं की शैली को ही दोहराते हैंजंग जीतने के तरीके भले ही नए-अनूठे इजाद किये जाएँ पर जंग जीत कर राज करने के तरीके वही सदियों से वही रहे हैं और अखिलेश यादव जी भी कोई अपवाद प्रतीत नहीं हुएकम से कम इस मसले पर तो नहीं ही हुएप्रदेश के एक-एक नौजवान के वोट के लिए महीनो तक प्रदेश भर के गाँव-गाँव की धूल फांकने वाले अखिलेश यादव को आज इतनी फुर्सत  सहीइतना कर्तव्यबोध तो होना चाहिए था कि राजधानी में इतने दिनों तक गुहार लगातेलाठियां खातेदौडाए जातेअनशन पे बैठे और अस्पताल में भर्ती हुए शिक्षित बेरोजगारों के लिए लिए दो मिनट निकल लेतेध्यान दे कि इतने-धरना प्रदर्शन के बाद भी उनकी तरफ से  कोई आश्वासन दिया गया  ही स्वतः उनकी ओर से इस मसले पर कोई प्रतिक्रिया आई  ही उन्होंने आन्दोलनकारियों से मिलने की इच्छा जताईवो तो डीएमने कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए आन्दोलनकारियों की उनसे वार्ता करने का आश्वासन देकर सर पर आई बाला को टाला हैमीडिया के सामने आम आदमी से जुड़ा होने का दिखावा करने के लिए मुख्यमंत्री-निवास के वाच-टावर पे चढ़कर संतरियों के हाल-चाल पूछना और फ्लश-मारते कैमरों के आगे जनता-दरबार में आम-आदमी का हमदर्द होने का दिखावा करना अलग बात हैआम आदमी का दर्द महसूस करना अलग बात हैअबतक के रवैये को देखते हुए कल भी आश्वासन के साथ कोर्ट के निर्णय और टी..टीस्टीयरिंग कमेटी के निर्णय तक इंतज़ार करने की नसीहत के सिवा अगर वाकई कुछ ठोस हाथ लगता है तो वाकई मुझे सार्वजनिक रूप से अपने एक-एक शब्द वापस लेने में भी हार्दिक प्रसन्नता होगी.
सरकार के हाथ में यकीनन बहुत कुछ होता है पर सबकुछ नहीं होतावैसे एक बात ध्यान में रखें कि टी..टीनिरस्त करने के निर्णय को चुनौती दिए जाने के मामले में कोर्ट केवल यही देखने वाला है कि क्या दोषियों को पकड़ने कागलतियाँ/गड़बड़िया ढूंढकर सुधार करने का कोई तरीका नहींऔर क्या सरकार ने निरस्त करने का फैसला उपलब्ध जांच रिपोर्ट और अन्य क़ानूनी प्रक्रियाओ के आधार पर किया हैइन दोनों के साबित होने पर ही टी..टीनिरस्त करने के फैसले को वैध माना जायेगा.
दूसरी बात है टी..टीके मेरिट के आधार भर्ती होने  होने की तो भर्ती अगर रद्द हुई तो सरकार नियमों में परिवर्तन कर फिर से नई प्रक्रिया प्रारंभ कर नए आधार पर चयन कर सकती है पर भर्ती-प्रक्रिया रद्द  होने की स्थिति में सरकार को मौजूदा नियमों के आधार पर ही भर्ती करनी होगी क्यूंकि प्रक्रिया प्रारंभ होने के बाद प्रक्रिया पूरी होने तक नियम नहीं बदले जा सकतेइसलिए मेरिट के मुद्दे पर हो रही बहस बेमानी हैभले ही कल होने वाली वार्ता में मौजूदा भर्ती में अकादमिक के आधार परया अकादमिक  टी..टीके आधार पर चयन की सहमति बन भी जाये तो कोर्ट में  सिर्फ यह फैसला घसीटा जायेगा बल्कि यह औंधे मुह गिरेगा भीपर अगर टी..टीमेरिट के आधार पर सहमति बन जाती है तब तकनीकी खामियों को दूर कर मौजूदा प्रक्रिया के द्वारा रिक्तियां भरी जा सकती हैं क्यूंकि कोर्ट इस आधार वाले मुद्दे पर टी..टीके पक्ष में फैसला पहले ही सुना चुका है.
वैसे कल होने वाली वार्ता से एक फायदा यह हो सकता है कि यदि मुख्यमंत्री इस मुद्दे की बारीकियों को समझने को तैयार हुए और उन्होंने क़ानूनी पहलुओं पर अपनी सरकार और प्रशासन की मंशा की वैधता को मापने की कोशिश की तो उनके दृष्टिकोण का असर राज्य-स्तरीय टी..टीस्टीयरिंग कमेटी की आगामी बैठक  (11.04.2012) में होने वाले निर्णय को अवश्य टी..टीऔर भर्ती-प्रक्रिया के पक्ष में प्रभावित कर सकती हैसच तो है कि अगर राज्य-सरकार वाकई में शिक्षा के उत्थान और शिक्षकों की भर्ती करना चाहती है तो मौजूदा परीक्षा और भर्ती-प्रक्रिया को जारी रखना ही एकमात्र विकल्प हैइस से इतर कोई भी फैसला केवल और केवल कानूनी पेचीदगियों में उलझ कर रह जायेगा.
इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए सभी को संगठित होकर लम्बी लड़ाई के लिए तैयार रहने की जरुरत हैकल वार्ता असफल या असंतोषजनक होने की स्थिति में मैं कल व्यक्तिगत रूप से अपने स्तर पर इस मुद्दे से सम्बंधित सभी निम्नलिखित पक्षों को रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा पत्र प्रेषित करूँगा:
1. माननीय मुख्यमंत्री महोदयउत्तर प्रदेश सरकारलखनऊ,
2. माननीय मंत्री महोदयबेसिक शिक्षाउत्तर प्रदेश सरकारलखनऊ
3. सचिवबेसिक शिक्षा.प्रशासन  पदेन अध्यक्ष.प्रराज्य-स्तरीय टी..टीस्टीयरिंग कमेटी
4. राज्य परियोजना निदेशक.प्र.सर्व शिक्षा अभियान  पदेन सदस्य.प्रराज्य-      
    स्तरीय टी..टीस्टीयरिंग कमेटी 
5. शिक्षा निदेशक (माध्यमिक), उत्तर प्रदेश  पदेन सदस्य.प्रराज्य-स्तरीय टी..टी.  स्टीयरिंग 
  कमेटी 
6. शिक्षा निदेशक (बेसिक), उत्तर प्रदेश  पदेन सदस्य.प्रराज्य-स्तरीय टी..टीस्टीयरिंग कमेटी 
7. निदेशकराज्य शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद्.प्र., लखनऊ 
    पदेन सचिव.प्रराज्य-स्तरीय टी..टीस्टीयरिंग कमेटी   
8. सचिवबेसिक शिक्षा परिषद्.प्र., लखनऊ  पदेन सदस्य.प्रराज्य-स्तरीय टी..टीस्टीयरिंग
  कमेटी 
9. सचिवमाध्यमिक शिक्षा परिषद्.प्र., लखनऊ  पदेन सदस्य सचिव , .प्रराज्य-स्तरीय टी..टी.
    स्टीयरिंग कमेटी 
10. माननीय केन्द्रीय मंत्रीमानव संसाधन विकास मंत्रालयभारत सरकारनई दिल्ली
11. माननीय अध्यक्षराष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद्नयी दिल्ली
12. माननीय अध्यक्षराष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोगनई दिल्ली

चूंकि मेरे पत्र काफी विस्तृत है और उसके ज्यादातर बिन्दुओं से आप में से ज्यादातर मित्र अवगत ही हैं,  मैं उसे यहाँ नहीं शामिल कर रहा हुपर नए बिन्दुओं के लिए आप इस लिंक पर क्लिक कर पूरा पत्र पढ़  सकते  हैंhttp://www.scribd.com/doc/88011225/An-Open-Letter-to-All-Parties-Related-to-Uptet-2011-and-Recuitment-of-72825-Primary-Teachers-in-Uttar-Pradesh

इस पत्र में मेरे पिछले लेख में दिए गए बिन्दुओं के अलावा कुछ नए बिंदु भी हैं जिन्हें मैं इन सभी के संज्ञान में लाना चाहता हूँ ताकि इनमे से कोई कल को यह न कह सके कि इन्हें इस सम्बन्ध में कोई निर्णय, विशेषकर आगामी 11 अप्रैल 2012  को उत्तर प्रदेश राज्य-स्तरीय टी.ई.टी. स्टीयरिंग कमेटी द्वारा लिए जाने वाले निर्णय, होने से पहले स्थितियों से पूरी तरह अवगत नहीं कराया गया था क्यूंकि कई बार अधिकारिओं द्वारा सरकार-शासन को स्थिति की सही और पूरी जानकारी भी नहीं दी जाती. ये पत्र इस आशा से भी भेज रहा हूँ कि यदि इनमे से कोई भी इस मुद्दे पर गंभीर होगा तो मेरे पत्र में उठाये गए बिन्दुओं पर न सिर्फ खुले दिमाग से विचार कर उनकी वास्तविकता परखेगा बल्कि सही पाए जाने पर अपने मत, अपने अधिकार और अपने प्रभाव का इस्तेमाल अन्य पक्षों पर करके एक सही और न्यायपूर्ण समाधान पर पहुचने में सहायक होगा. साथ ही ये पत्र उन्हें चेतावनी भी देगा कि केवल मनमानी करने से स्थिति बिगड़ भी सकती है और इसके दुस्परिनाम न सिर्फ अभ्यर्थियों बल्कि प्रदेश और सरकार, दोनों को सालों तक भुगतना होगा क्यूंकि ऐसी स्थिति में कोई मौजूदा भर्ती से इतर कोई अन्य निर्णय कानून की अंतहीन उलझनों में उलझ कर रह जायेगा. यह इस सम्भावना पर भी पूर्णविराम न सही पर कुछ ही अंशों में अंकुश लगाएगा कि राज्य-सरकार केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय और एन.सी.टी.ई. द्वारा अनुमति प्राप्त भर्ती और भर्ती-प्रक्रिया को और उनके दिशा-निर्देशों के अनुसार हुई अध्यापक पात्रता परीक्षा को बिना किसी ठोस कारण के केवल राजनैतिक दुर्भावनावश रद्द कर करने के बाद नयी भर्ती के लिए आसानी से अनुमति और समय-सीमा में विस्तार और नई टी.ई.टी. और नई भर्ती-प्रक्रिया की अनुमति आसानी से प्राप्त कर सकेगी. 
मेरे पत्र से सम्बंधित कोई भी टिपण्णी या सुझाव जहाँ तक संभव होब्लॉग पर ही प्रेषित करें ताकि बाकि सभी मित्र  भी उनसे अवगत हो सकें.
इन पत्रों को मिलने वाले किसी भी प्रतिक्रिया से और इस दिशा में अपने प्रयासों से आपको समय-समय पर ब्लॉग के ही माध्यम से अवगत कराऊंगा.
फ़िलहाल मेरी ओर से अभी इतना ही,
धन्यवाद,

आपका 
श्याम देव मिश्रा


Wednesday, April 4, 2012

Allahabad Highcourt : Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi and the Madhyamik Shiksha Mandal, Bhopal are UNDER TOUGH SCANNER


Allahabad Highcourt :  Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi and the Madhyamik Shiksha Mandal, Bhopal are UNDER TOUGH SCANNER 

See case Details :

HIGH COURT OF JUDICATURE AT ALLAHABAD

?Court No. - 46

Case :- CRIMINAL WRIT-PUBLIC INTEREST LITIGATION No. - 18498 of 2011

Petitioner :- Sachin Rana And Anr.
Respondent :- State Of U.P. And Others
Petitioner Counsel :- Ram Raj Pandey
Respondent Counsel :- Govt. Advocate

Hon'ble Amar Saran,J.
Hon'ble Ramesh Sinha,J.
This order is being passed in continuation of our earlier order dated 18.1.2012.
Sri Ved Byas Mishra, learned counsel for Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi is present. He has filed an affidavit of compliance of the order dated 18.1.2012. It may be taken on record. We find that Sampurnanand Sanskrit University is formally not impleaded. Therefore, we direct that it may be impleaded in this writ petition. We have also heard Sri Rishi Chaddha, learned A.G.A.
Three affidavits of compliance by the Secretary Higher Education, Secretary ( Basic Education) and D.G.P, CBCID have already been filed in this case on 16.1.2012. No affidavit has however been filed by the Secretary (Secondary Education), U.P.
It is pointed out by the learned A.G.A that the civil police was earlier investigating the case against 126 persons. In a large number of these cases, charge sheets have been submitted. However, 77 of the said cases have been transferred to the CBCID pursuant to the order dated 15.11.2011. We have already made it clear in our order dated 15.11.2011 that if we are not satisfied by the investigation conducted by the CBCID we may be constrained to transfer these cases to the CBI or some other agency.
Sri Chaddha points out that the investigation in these case is being conducted in three sectors viz. Allahabad, Agra and Meerut and that four I.Os are conducting the investigation in Allahabad, three in Agra and five in Meerut.
On the next listing we would like to have information whether the accused persons against whom charge sheets have been submitted have been sent to jail and whether they have obtained bail or not.
Learned A.G.A further points out that two clerks of Sampurnanand Sanskrit University, who had important roles in this offence have been arrested and their bails have already been rejected and that six other persons associated with the two clerks have been identified as being involved in this crime of using fake mark- sheets for securing admissions in B.T.C courses which is a window for getting jobs of Primary Teachers in Primary Schools and Junior High Schools. As in this case, forged mark-sheets of Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi and Madhyamik Shiksha Mandal, Bhopal are said to have been used in a large number of cases, we had directed that the investigation be conducted by the CBCID and that there should be effective co-ordination between the Education Secretaries concerned in the two States viz. U.P. and M.P and also by the police of the two States for which the Additional D.G.P, CBCID, U.P. may write to his counter-part and other concerned police officers in Bhopal. It has only been mentioned in the affidavit on behalf of the Secretary, Basic Education that a communication has been sent but what mechanism for cooperation has been set up has not been mentioned. The said details may be furnished in the next affidavit to be filed in this case on the next listing.
We had also directed in our previous order dated 15.11.2011 that all the examining bodies including the Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi and the Madhyamik Shiksha Mandal, Bhopal which issue certificates after conducting examination of High School, Intermediate, Graduation and post-graduation upload information about their examinees on their websites containing various details including digital photographs of the examinees. We also direct that so far as the employees in the colleges under the education department are concerned, their details should also be placed on the websites. We would like a progress report of this direction on the next listing.
The Director of NIC or other body engaged in preparing the software may be entrusted with developing software for uploading the information and he may also give his response on the next listing as to the feasibility of this direction and regarding financial constraints etc. and also point out to this Court whether there are any impediments in carrying out this direction of this Court.
In the detailed affidavit which has been filed by Sampurnanand Sanskrit University there are annexures containing details of responses of the University to enquiries made by the DIETs of Baghpat, Bulandshahar and Rai Bareilly which show that there are a substantial number of persons who have obtained forged certificates purportedly issued by Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi.
Looking to the magnitude of this problem as highlighted by these annexures, we are issuing a mandamus to all the DIETs in all the districts in U.P. to get it verified whether the certificates issued by Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi and Madhyamik Shiksha Mandal, Bhopal which were produced for securing admissions of candidates were genuine or forged and if the same are found to be forged, to take action, including by lodging of FIRs against the said persons and also for removing them from service which they may have eventually obtained on the basis of these forged certificates. The Basic Shiksha Adhikari in all districts are also directed to get verified from the Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi and Madhyamik Shiksha Mandal, Bhopal whether the certificates used for getting Shiksha Mitra appointments have actually been issued by these bodies or they are forged. In case of problems, in conducting this exercise with regard to all candidates who furnish certificates from the Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi and Madhyamik Shiksha Mandal, Bhopal, the exercise may be carried out in a phased manner, starting from the recent results and going backwards to earlier years, at least across a ten year period.
In the affidavit on behalf of Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi (Annexure 7 at page 62 and 64), there are details regarding certain institutions in Azamgarh, Mau, Ballia, Mirzapur, Siddharth Nagar, Varanasi etc which are issuing fake certificates in the name of the Sampurnanand Sanskrit University. The respondents are directed to get the same verified and in case the said institutions are issuing fake certificates of the Sampurnananand Sanskrit University, action may be taken against the institutions engaged by lodging of FIRs and other serious steps against the said institutions.
List this case on 21.3.2012.
On that date, further compliance report/ other information shall be submitted by the Secretary (Primary Education), Secretary (Secondary Education), Secretary (Higher Education), U.P., Addtl. DGP, CBCID, U.P., Director NIC, Lucknow, and other concerned parties including Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi. .
Copy of this order may be given to the concerned parties above mentioned within a week

Order Date :- 1.2.2012 
sfa/


Source : http://elegalix.allahabadhighcourt.in/elegalix/WebShowJudgment.do?judgmentID=1668479

UPTET - Allahabad Highcourt on Late Submission of TET Candidate Application to DIET


UPTET - Allahabad Highcourt on Late Submission of TET Candidate Application to DIET


HIGH COURT OF JUDICATURE AT ALLAHABAD

?Court No. - 33

Case :- WRIT - A No. - 12321 of 2012

Petitioner :- Shiv Bachan Ram
Respondent :- State Of U.P. & Others
Petitioner Counsel :- Bholeshwar Gautam
Respondent Counsel :- C.S.C.,A.S.G.I. (2012/3029),K.S. Kushwaha,Murtuza Ali

Hon'ble Arun Tandon,J.
Notice on behalf of respondents no. 1, 3 to 35 has been accepted by learned Standing Counsel and Sri K.S. Kushwaha, Advocate has accepted notice on behalf of respondent no. 2.
Learned Standing Counsel prays for and is granted three weeks' time to file counter affidavit. Rejoinder affidavit, if any, may be filed within two weeks thereafter.
List on 30.4.2012. 
Under the advertisement published for Teacher Eligibility Test (in short TET) examination only one mode for submitting the application i.e. by Registered Post/Speed Post through Indian Postal Service was provided. The petitioner had sent his application by Registered Post at least three weeks prior to the last date mentioned in the advertisement for receipt of the application.
In view of the law explained by the Full Bench of this Court in the case of Neena Chaturvedi vs. Public Service Commission, Uttar Pradesh and others reported in [2010 (9) ADJ 152 (FB)], the petitioner is entitled to an interim order in the facts of the case.
The respondents are directed to entertain the application of the petitioner and treat the same as within time provided, the petitioner submits the relevant application form along with certified copy of this order before the respective Principals of Training Institute within two weeks from today.
Order Date :- 20.3.2012
Puspendra


Source : http://elegalix.allahabadhighcourt.in/elegalix/WebShowJudgment.do?judgmentID=1756114

UPTET : Teacher Selection Should Be Based on TET Merit



टीईटी में प्राप्त अंकों के आधार पर ही हो चयन
(UPTET : Teacher Selection Should Be Based on TET Merit )

-शिक्षकों की नियुक्ति का आधार बनाए जाने की मांग

इलाहाबाद : उत्तर प्रदेश लोक हितकारी परिषद की ओर से मुख्यमंत्री को पत्र भेज कर शैक्षिक मेरिट के स्थान पर टीईटी में प्राप्त अंकों के आधार पर ही बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति का आधार बनाए जाने की मांग की गई है

पत्र में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में तीन संस्थाएं यूपी बोर्ड, सीबीएसई नई दिल्ली और इंडियन सर्टिफिकेट आफ सेकेंडरी एजूकेशन द्वारा इंटर के छात्रों को प्रमाणपत्र प्रदान किए जाते हैं। इन तीनों ही संस्थाओं के सिलेबस, परीक्षा के मूल्यांकन का स्तर अलग अलग होता है। यदि मेरिट से शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है तो नकल न करने वाले कई योग्य अभ्यर्थी चयन से वंचित रह जाएंगे जबकि नकल करके उत्तीर्ण कई खराब अभ्यर्थी शिक्षक बन जाएंगे। नकल की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने और प्रतियोगिता में अच्छे अंक पाने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षक चयन का आधार टीईटी की मेरिट को बनाने की मांग पत्र में की गई है



11वें दिन भी जारी रहा धरना

इलाहाबाद : लोक सेवा आयोग के गेट संख्या 6 पर पीसीएस, पीसीएस जे और एपीओ की परीक्षा के लिए आयु सीमा चालीस वर्ष करने की मांग को लेकर सामाजिक एकता परिषद और युवा अधिवक्ता मंच के संयोजन में प्रतियोगी छात्रों का धरना बुधवार को नवें दिन भी जारी रहा।

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने गए प्रतिनिधि मंडल ने लौटने पर बताया कि मुख्यमंत्री को चुनावी सभा में प्रतियोगी छात्रों द्वारा सौंपे गए ज्ञापन की याद है। उन्होंने उस समय दिए गए आश्वासन पर विश्वास बनाए रखने पर बल देते हुए थोड़ा समय और चाहा है। धरना संचालन समिति की बैठक में मुख्यमंत्री के कथन पर प्रतीक्षा और निगाह रखने की बात तय हुई और फिलहाल धरना यथावत चलाए रखने का निर्णय लिया गया। धरने पर बैठने वालों में स्वरूपम मिश्र, लाल जी यादव, अनूप सिंह, नरेंद्र मिश्रा, आरएल पाल, स्वतंत्र सिंह, सुनील सिंह, विनोद सिंह, रिंकू सिंह, त्रिपुरारी पांडेय, आनंद मिश्र, संतोष कुमार सिंह, शेष कुमार पांडेय, महेंद्र कुमार सिंह, फड़ीश कुमार पांडेय, अजय राय, मान सिंह, सुरेश तिवारी, गोपाल दुबे, राघवेंद्र शुक्ला, बागीश मिश्र, जितेंद्र, अजय, विद्याचरन आदि उपस्थित रहे।


News : Jagran (4.4.12)

UPTET : Tiket sent letter to Akhilesh favouring TET Passed Candidates and suggesting strong action against convicted persons in scam

टीईटी भर्ती :जगी रोजगार की उम्मीद , चौधरी नरेश टिकैत ने भेजी अखिलेश को चिट्ठी 
(UPTET : Tiket sent letter to Akhilesh favouring TET Passed Candidates and suggesting strong action against convicted persons in scam )

सिसौली।

भाकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत ने अध्यापक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण अभ्यर्थियों के समर्थन में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखा है। टिकैत का तर्क है कि बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप धारण करते जा रही है। टीईटी धारकों ने आवेदन से लेकर रिजल्ट तक हजारों खर्च किए हैं
मंगलवार को अध्यापक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण अभ्यर्थियों ने किसान भवन पर पहुंचकर भाकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत से मुलाकात की। पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण अभ्यर्थियों ने अपनी समस्या रखते हुए कहा कि वह हजारों रुपये खर्च कर चुके हैं। ऐन वक्त पर प्रक्रिया बदल देना न्याय संगत नहीं है। टिकैत ने कहा कि सरकार फर्जीवाड़ा करने वालों को जरूर सजा दें। लेकिन भर्ती रोककर युवाओं से रोजगार का अवसर नहीं छीना जाना चाहिए। पहले ही युवा वर्ग बेरोजगारी की मार झेल रहा है। भर्ती रोक देने से समस्या गंभीर हो जाएगी।
टिकैत ने पंचायत के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को टीईटी के संबंध में एक पत्र फैक्स के माध्यम से भेजा। पत्र में कहा गया है कि जिन लोगों ने भर्ती में घपला किया है उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन युवाओं के रोजगार का ख्याल भी रखा जाना चाहिए
इस अवसर पर योगेंद्र सिंह जैतपुर, कुलदीप सिंह, अमित कुमार, राजेंद्र सिंह, कविंद्र सिंह और सुबोध कुमार मुख्य रूप से उपस्थित रहे।



टीईटी रद हुई तो छेड़ेंगे आंदोलन
सोनभद्र। बीएड / बीपीएड बेरोजगार संघर्ष समिति ने मंगलवार को कलेक्ट्रेट पहुंच कर प्रभारी जिलाधिकारी को मांगों से संबंधित दस सूत्री ज्ञापन सौंपा। इस दौरान चेतावनी दी गई कि मांगें पूरी न होने पर वे आंदोलन करेंगे।
समिति के सदस्यों ने ज्ञापन के माध्यम से टीईटी परीक्षा को निरस्त न करने तथा 72825 शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को शीघ्र पूरा करने, प्रशिक्षित स्नातकों को भविष्य में आयोजित होने वाले शिक्षक पात्रता परीक्षा के प्रथम स्तर की परीक्षा में शामिल होने का अवसर देने का आग्रह किया। वक्ताओं ने सभी प्रशिक्षित स्नातकों को विद्यालयों में समायोजित करने, अंशकालिक शिक्षकों को पूर्णकालिक शिक्षक का दर्जा देने, अंशकालिक शिक्षकों को सरकार द्वारा मानदेय देने तथा इसका भुगतान सीधे शिक्षकों के बैंक खाते में करने की मांग की है। सदस्यों ने वित्तविहीन विद्यालयों को सवित्त का दर्जा देने, प्राथमिक, माध्यमिक विद्यालयों में यथासंभव प्रशिक्षित स्नातकों को वरीयता देने की मांग की। वक्ताओं ने बताया कि सोनांचल नक्सल प्रभावित है तथा यहां अनेक विद्यालय एकल शिक्षक के सहारे चल रहे हैं। ऐसे विद्यालयों में रिक्त पदों पर तत्काल प्रशिक्षित स्नातकों की नियुक्तियां की जाए। जनपद में विशिष्ट बीटीसी की सीटों में वृद्धि की जाए। सभी प्रशिक्षित स्नातकों की सत्रवार नियुक्तियां की जाए। ज्ञापन साैंपने वालों में जिलाध्यक्ष संतोष कुमार वर्मा, संतोष यादव, राहुल त्रिपाठी, संजय कुमार, रामसहाय, सत्यप्रकाश शुक्ला, रूपेश मिश्र, सुनील मौर्य, विनय, विकास कुमार शर्मा, रमाकांत पाठक, रामप्रकाश त्रिपाठी आदि शामिल थे।
प्रदर्शन करते बीएड/बीपीएड बेरोजगार संघर्ष समिति के सदस्य।



टीईटी इकाई की बैठक आज
रसड़ा। टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की इकाई बैठक बुधवार को नगर स्थित श्रीनाथ मंदिर पर संपन्न होगी। इस आशय की जानकारी मीडिया प्रभारी राहुल कुमार ने दी। उन्होंने कहा कि बैठक में संघर्ष की रणनीति और स्थानीय पदाधिकारियों का चयन किया जाएगा। जिसमें सभी टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की उपस्थिति अनिवार्य है।


धरने को सफल बनाने का आह्वान
बिंद्राबाजार। टीईटी मोर्चा ब्लाक इकाई मुहम्मदपुर ने बैठक कर प्रदेश सरकार से भर्ती प्रक्रिया का आधार टीईटी मेरिट पर करने के साथ जल्द से जल्द भर्ती करने की मांग की। इस दौरान वक्ताओं ने क्षेत्र के टीईटी अभ्यर्थियों से लखनऊ में चल रहे धरना-आमरण अनशन में शामिल होने की अपील की। इस मौके पर रामजतन यादव, मो. आरिफ, अशोक कुमार सिंह, अरविंद कुमार यादव, पंकज कन्नौजिया, शोभनाथ, संतोष, महेंद्र कुमार, श्रीचंद, संजय, राजेंद्र, संतोष, राकेश, रवींद, अब्दुल रहमान, बाबू राम, चेनत चौहान आदि उपस्थित थे।


News : Amar Ujala (4.4.12)

UPTET : Decision on TET Candidates Future will be on 11th



टीईटी के भविष्य पर निर्णय 11 को
(UPTET : Decision on TET Candidates Future will be on 11th )

प्रमुख सचिव गृह ने सौंपी जांच रिपोर्ट
लखनऊ। शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) के भविष्य पर निर्णय 11 अप्रैल को किया जाएगा। राज्य स्तरीय कमेटी की बैठक में निर्णय किया जाएगा कि टीईटी निरस्त की जाए या नहीं। उधर, प्रमुख सचिव गृह आरएम श्रीवास्तव ने रमाबाई नगर पुलिस द्वारा की गई जांच रिपोर्ट बेसिक शिक्षा विभाग को उपलब्ध करा दी। प्रमुख सचिव गृह ने स्वयं इसकी पुष्टि की है। अब निर्णय बेसिक शिक्षा विभाग को करना है।

टीईटी में धांधली के आरोप में तत्कालीन शिक्षा निदेशक संजय मोहन को गिरफ्तार किया जा चुका है। मामले की जांच रमाबाई नगर की पुलिस कर रही थी। नई सरकार आने के बाद 20 मार्च को बेसिक शिक्षा विभाग ने पूरी रिपोर्ट बनाकर मुख्यमंत्री को भेजा था। अब इसे निरस्त किया जाए या न किया जाए, इस पर निर्णय किया जाना है। सचिव बेसिक शिक्षा सुनील कुमार ने मंगलवार को बैठक बुलाई थी, जिसमें सभी पहलुओं पर चर्चा की गई। तय किया गया कि 11 अप्रैल को टीईटी की राज्य समिति की बैठक बुला अंतिम निर्णय किया जाए। उधर, टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थी गुरुवार को सुबह 10 बजे मुख्यमंत्री से मिलकर अपना पक्ष रखेंगे। डीएम ने अभ्यर्थियों को मुख्यमंत्री से वार्ता कराने का भरोसा दिया हुआ है



News : Amar Ujala (4.4.12)

UPTET : Steering Committee Meeting on 11th to decide Recruitment of 72825 Teachers


शिक्षक भर्ती पर फैसले के लिए स्टीयरिंग कमेटी की बैठक 11 को
(UPTET : Steering Committee Meeting on 11th  to decide Recruitment of 72825 Teachers )

लखनऊ, 3 अप्रैल (जाब्यू) : बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित स्कूलों में 72,825 शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को निरस्त करने के बारे में फैसला लेने के सिलसिले में अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) की स्टीयरिंग कमेटी की बैठक 11 अप्रैल को होगी। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती के लिए पहली बार आयोजित की गई टीईटी के परिणाम में धांधली उजागर होने के बाद परीक्षा की शुचिता पर सवाल खड़े हो गए हैं। परीक्षा की शुचिता भंग होने के कारण बेसिक शिक्षा विभाग शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को निरस्त करने के बारे में विचार विमर्श कर रहा है। टीईटी के आयोजन के सिलसिले में सात सितंबर 2011 को जारी शासनादेश के मुताबिक इस परीक्षा के शांतिपूर्ण आयोजन और उसकी शुचिता बनाये रखने के लिए सचिव बेसिक शिक्षा की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय स्टीयरिंग कमेटी गठित की गई थी। सचिव माध्यमिक शिक्षा परिषद स्टीयरिंग कमेटी के सदस्य सचिव हैं जबकि सर्व शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना निदेशक, माध्यमिक शिक्षा निदेशक, बेसिक शिक्षा निदेशक, राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के निदेशक और बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव इसके सदस्य हैं।

News : Jagran (4.4.12)
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If matter goes in court then such committee can not take arbitrary decision , Court may ask necessary documents about investigation, reasons to justify this stand.

Honest candidates have high chances to win their matter in court.

A direct PIL in Supreme court can save time, as If matter goes in high court then it may go in supreme court also and will take extra time in recruitment.


UPTET : Tomorrow TET Passed Candidates will meet to Chief Minister


टीईटी उत्तीर्ण कल मिलेंगे मुख्यमंत्री से
(UPTET : Tomorrow TET Passed Candidates will meet to Chief Minister)

लखनऊ, 3 अप्रैल (जासं) : अध्यापक पात्रता परीक्षा को निरस्त न कराने की मांग को लेकर अभ्यर्थी गुरुवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलेंगे। यूपी टीईटी उत्तीर्ण संघर्ष मोर्चा के नितिन मेहता ने बताया कि पांच सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल को वार्ता के लिए बुलाया गया है। मुख्यमंत्री से वार्ता कर अनुरोध किया जाएगा कि अभ्यर्थियों संग न्याय किया जाए। उल्लेखनीय है कि टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थी परीक्षा निरस्त न किए जाने की मांग को लेकर पिछले कई दिनों से आंदोलनरत हैं। अभ्यर्थियों ने विधानभवन के सामने आमरण अनशन भी किया। जिला प्रशासन ने मुख्यमंत्री से वार्ता करने का आश्वासन दिलाकर अनशन खत्म कराया। मुख्यमंत्री से वार्ता के लिए पांच अप्रैल की तिथि निर्धारित की गई है। प्रदेश भर के टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की आखिरी उम्मीदें इस वार्ता पर ही टिकी हुई हैं। हालांकि प्रतिनिधि मंडल आश्वस्त है कि मुख्यमंत्री से वार्ता कर मसले का हल निकाल लिया जाएगा।


News : Jagran (4.4.12)
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I felt TET Candidates should make a consent note (Aapsee Sehmati Patra) of demands in writing.
This is the best way to act yourself as your own leader , so that your leader will not deviate from your demands.
And NOT forgot to raise your points. TET candidates have a lot of faith on their leader and hope for positive decision.

Tuesday, April 3, 2012

Madrasas ( मदरसा ) waiting for amendment to RTE Act


Madrasas ( मदरसा ) waiting for amendment to RTE Act
J. S. Ifthekhar

Madrasa managements across the country are keenly watching the budget session of Parliament. No, they are not looking forward to the kind of budget that will be presented by the Finance Minister. Their anxiety is to see the promised relief coming in the Right to Education (RTE) Act for minority institutions. The government has promised to bring amendments to certain sections of the Act seen as having a ‘negative impact' on the madrasas.
The All India Muslim Personal Law Board (AIMPLB) is spearheading a campaign against the adverse effects of the RTE Act on the madrasa education system and also other minority institutions. In the last few months, the Save Constitutional Rights Campaign committee has covered most parts of UP, Maharashtra and Andhra Pradesh.
Fears expressed
The RTE Act was already passed by Parliament in 2009. Its full implementation is to take effect from April 1 and therefore, the worry about thousands of madrasas across the country shutting down unless they are excluded from the ambit of the Act.
Madrasa management fear that the right of children to free and compulsory education under the Act will eventually end the autonomy of madrasas.
Every child from 1 to 8 class is required to get education in a neighbourhood school as per government- approved syllabus. What this means is children in the age group of six to 14 will not have the freedom to study Islamic subjects. This directly infringes upon the rights of religious communities as guaranteed under Article 25 and 30 of the Constitution, it is said.
Union HRD Minister Kapil Sibal has promised to see that the Act does not apply to madrasas, Vedic patshalas and other institutions imparting religious instructions.
Amendments urged
“We hope the government will move necessary amendments to the Act in the Rajya Sabha to rectify the defects,” said AIMPLB assistant general secretary, Raheem Qureshi.
Wakf (Amendment) Bill
said the AIMPLB is also campaigning against the controversial Wakf (Amendment) Bill 2010 and the Direct Taxes Code Bill. Though the Wakf Bill was passed by the Lok Sabha, the Upper House has sent it to a select committee for reconsideration.
The Direct Taxes Code bill, which seeks to tax religious trusts, places of worship and donations made to them, has been referred to a standing committee. Madrasas waiting for amendment to RTE Act
Source : http://www.thehindu.com/news/cities/Hyderabad/article3015468.ece

Who wants to be a primary school teacher in India?

Who wants to be a primary school teacher in India?
Krishna Kumar on quality of primary education in India.

Who wants to be a primary school teacher in India? No one, really. The job requires a Class XII certificate with a two-year diploma. The salary is so measly that it can only be seen as a supplementary income. It's no wonder that the majority of aspirants come to it as a last resort. And once they get into a primary school, they keep trying to enhance their qualifications, in order to 'move up'-meaning, get a secondary teacher's job.

This reality contrasts with the rhetoric that the primary school years are the like nation's foundations.
Yes, research across the world shows that a nation's economic and social well-being depends on the quality of its primary and pre-primary education. In India, we don't look at things that way. Even when a break comes into sight, we choose to ignore it and let the enthusiasts get sick with frustration. That is the story of Delhi University's Bachelor of Elementary Education (B.El.Ed) programme.

In the last 15 years or so, it has produced more than a thousand superb teachers. Anywhere else in the world, they would have been treated as a special workforce. But here? The Municipal Corporation of Delhi and the state government have failed to recognise them as TGTS, or Trained Graduate Teachers.

Why? Because they don't possess a B Ed degree which you need to teach beyond Class V. Bureaucratic cynicism has ensured that the 'elementary' stage (Classes I to VIII) does not become a salary band. Never mind the Constitution which has been amended by Parliament to make eight years of elementary education a Fundamental Right. The Government continues to hold that there is a fundamental difference between the primary (I to V) and the upper primary (VI to VIII) stages, and that the primary teacher must get substantially less salary.

During the 1990s, several states decided to appoint para-teachers instead of regular ones. They were given fancy names, such as guruji in Madhya Pradesh, shiksha mitra in UP, vidya volunteers in Andhra Pradesh, and so on. They were paid a fraction of the regular salary. The idea of saving money proved so attractive that Madhya Pradesh decided to wipe out the old cadre of teachers. Now, Bihar and Chhattisgarh have embarked on this road. In Uttar Pradesh, Classes I and II-the formative years of a child's career at school-are assigned to para-teachers as a matter of policy. Over 10 years have passed since these outrageous measures were taken. A whole new generation of children with poor literacy and numeracy skills is now passing through the secondary classes across northern India, from Rajasthan to Bengal and the North-East where thousands of teachers were appointed without training.

It is ironical that the Right to Education (RTE) law has furnished the basis of yet another decision which could have disastrous consequences over the next decade. RTE demands improvement in the pupil-teacher ratio. The new ratio of 1:30 and other provisions of RTE are supposed to be implemented by the summer of 2013. States that have the highest shortfall of trained teachers have decided to meet this deadline by training their teachers in distance mode. These are the states with the poorest quality records and the most appalling cases of discrimination in schools on the basis of caste and gender. Teachers trained through distance mode cannot be expected to meet such challenges. Apparently, these states feel that they have no choice in the matter, so they are not looking for alternatives. Their training institutions are also in a dismal state, and the national body in charge of accreditation and reform of teacher education is itself passing through a prolonged illness. Professional training in any field requires rigour and a congenial institutional ethos. Teacher education lacks both, and distance technology cannot magically compensate for the chronic neglect this sector has suffered.

The situation calls for fresh thinking and rescheduling of RTE compliance with Parliament's approval. It will be a sad joke indeed if a historic law which promises to equalise educational opportunity in our stratified society is turned into an excuse for killing what dignity is left in the job of a teacher. It took India a century-since the defeat of Gokhale's bill in 1911-to legislate children's right to education. It would be neurotic to treat RTE as a game of compliance.
- Krishna Kumar is professor of education at Delhi University and a former director of NCERT

Source : http://indiatoday.intoday.in/story/krishna-kumar-on-primary-education-in-india/1/177074.html

Chhattisgarh HC quashes Government order regarding appointment of Shiksha Karmis (education workers) and ad hoc teachers as headmasters

Chhattisgarh HC quashes Government order regarding appointment of Shiksha Karmis (education workers) and ad hoc teachers as headmasters3/5/2012 (UNI) The Chhattisgarh High Court today quashed the state regime's order regarding appointment of Shiksha Karmis (education workers) and ad hoc teachers as headmasters to fill about 22,500 vacancies in primary schools spread over 16 districts.
Justice Satish K Agnihotri directed the Government to cancel of the entire process of appointment as publicised through newspapers.
However, the Bench allowed the government to initiate the appointment process afresh as per rules and norms.
Though the regime conducted an eligibility test, several candidates moved the Court challenging the order and levelling allegations of irregularities in the appointment process. UNI

Public Interest Litigation


Public Interest Litigation


Remedies - Public Interest Litigation (PIL) - Part: 1

We briefly dealt with Public Interest Litigation in the earlier Project on "Knowledge of Law Essential for Public Servants". For your beneift the biref is reproduced hereunder:
A Public Interest Litigation (PIL) can be filed in any High Court or directly in the Supreme Court. It is not necessary that the petitioner has suffered some injury of his own or has had personal grievance to litigate. PIL is a right given to the socially conscious member or a public spirited NGO to espouse a public cause by seeking judicial for redressal of public injury. Such injury may arise from breach of public duty or due to a violation of some provision of the Constitution. Public interest litigation is the device by which public participation in judicial review of administrative action is assured. It has the effect of making judicial process little more democratic.

According to the guidelines of the Supreme Court any member of public having sufficient interest may maintain an action or petition by way of PIL provided: -

» There is a personal injury or injury to a disadvantaged section of the population for whom access to legal justice system is difficult,

» The person bringing the action has sufficient interest to maintain an action of public injury,

» The injury must have arisen because of breach of public duty or violation of the Constitution or of the law,

It must seek enforcement of such public duty and observance of the constitutional law or legal provisions.

» This is a powerful safeguard and has provided immense social benefits, where there is essentially failure on the part of the execute to ameliorate the problems of the oppressed citizens. Considering the importance of ths subject, three articles from the web on the subject are reproduced hereunder.

Introduction
The Emergency of 1976 marked not just a political watershed in this country, but a judicial one as well. In the euphoria of the return to democracy and in an attempt to refurbish its image that had been tarnished by some Emergency decisions, the Supreme Court of India opened the floodgates to public interest litigation (PIL). under PIL, courts take up cases that concern not the rights of the petitioner but of the public at large. In the last two decades, PIL has emerged as one of the most powerful tools for promoting social justice and for protecting the rights of the poor.

Among the numerous factors that have contributed to the growth of PIL in this country, the following deserve special mention:
» The character of the Indian Constitution. Unlike Britain, India has a written constitution which through Part III (Fundamental Rights) and Part IV (Directive Principles of State Policy) provides a framework for regulating relations between the state and its citizens and between citizens inter-se.

» India has some of the most progressive social legislation to be found anywhere in the world whether it be relating to bonded labor, minimum wages, land ceiling, environmental protection, etc. This has made it easier for the courts to haul up the executive when it is not performing its duties in ensuring the rights of the poor as per the law of the land.

» The liberal interpretation of locus standi where any person can apply to the court on behalf of those who are economically or physically unable to come before it has helped. Judges themselves have in some cases initiated suo moto action based on newspaper articles or letters received

» Although social and economic rights given in the Indian Constitution under Part IV are not legally enforceable, courts have creatively read these into fundamental rights thereby making them judicially enforceable. For instance the "right to life" in Article 21 has been expanded to include right to free legal aid, right to live with dignity, right to education, right to work, freedom from torture, barfetters and hand cuffing in prisons, etc.

» Sensitive judges have constantly innovated on the side of the poor. for instance, in the Bandhua Mukti Morcha case in 1983, the Supreme Court put the burden of proof on the respondent stating it would treat every case of forced labor as a case of bonded labor unless proven otherwise by the employer. Similarly in the Asiad workers judgment case, Justice P.N. Bhagwati held that anyone getting less than the minimum wage can approach the Supreme Court directly without going through the labor commissioner and lower courts

» In PIL cases where the petitioner is not in a position to provide all the necessary evidence, either because it is voluminous or because the parties are weak socially or economically, courts have appointed commissions to collect information on facts and present it before the bench.

When and how to File a PIL


1.Make an informed decision to file a case.

2.Consult all affected interest groups who are possible allies.

3.Be careful in filing a case because
i.Litigation can be expensive.
ii.Litigation can be time consuming.
iii.Litigation can take away decision making capability/strength from communities.
iv.An adverse decision can affect the strength of the movement.
v.Litigation involvement can divert the attention of the community away from the real issues.

4.If you have taken the decision
i.Collect all the relevant information
ii.Be meticulous in gathering detail for use in the case. If you plan to use photographs, retain the negatives and take an affidavit from the photographer. Retain bills.
iii.Write to the relevant authorities and be clear about your demands.
iv.Maintain records in an organized fashion.
v.Consult a lawyer on the choice of forum.
vi.Engage a competent lawyer. If you are handling the matter yourself make sure you get good legal advice on the drafting.
vii.A PIL can be filed only by a registered organization. If you are unregistered, please file the PIL in the name of an office bearer/member in his/her personal capacity.
viii.You may have to issue a legal notice to the concerned parties/authorities before filing a PIL. Filing a suit against the government would require issuing a notice to the concerned officer department at least two months prior to filing.

Expanding Old Rights & Creating New Ones
There is an urgent need to expand old rights and create new rights. Indeed, the success of legal advocacy needs to be viewed by the social activist in these terms and not merely in terms of winning or losing cases. For instance, although Haksar and others, as part of their work on promoting human rights in Northeastern India, have been unsuccessful in their decade-long effort to get the Armed Forces Special Power Act repealed, they have succeeded in getting the provision in the criminal procedure code that women be searched only by women extended to the army.
Similarly, it is important to try and create new rights based on a vision of the future. For instance Article 14 of the Indian Constitution treat both an MNC and a citizen equally despite the inherent and yawning inequality between the two. Therefore if a citizen's rights are to be fully protected in the wake of increasing MNC activity in the national economy, one needs to critique the concept of equality in liberal theory and develop new ideas on equality. The filing of test cases is one way of developing these new ideas.

The same holds true for individual rights vs. collective rights. The prevailing legal system recognizes only private property - where the owner has the right against the whole world - and public property, which belongs to the state. But before the imposition of the British legal system there existed a whole tradition of common property which now has no recognition in law. "Ass a result all forms of collective or shared realities whether they are in the realm of rights, relations, practices or knowledge have no place in the present legal scheme even though they are vital for human survival. They are not part of the language of legal discourse, either of the judges or lawyers and mention of these rights as 'collective human rights' is met with surprise, skepticism and often cynicism," say Pradeep Prabhu of Khastakari Sanghatana. Prabhu, an advocate by training, has had some recent success in getting the Supreme Court to accept the validity of oral testimonies of poor tribals as evidence.

Sensitising Lawyers
Given the above scenario, one of the most difficult tasks for a social activist is to find a lawyer with a vision who is able to see the bigger picture and be prepared to fight for it. This calls for activists to sensitize lawyers on an ongoing basis and not restrict this activity to the peculiarities of a specific case. Also there is a need to sensitise law students in order to build a body of public interest lawyers in this country.

Part of the reason why there are few public interest lawyers in India is due to how poorly it pays. Public interest lawyers in the US (sometimes derisively called 'ambulance chasers') are easier to find. They largely operate on a 'no-win, no-fee' basis, given the huge damages that are awarded by US courts and which are then split between the client and the lawyer. In India even where free legal aid is provided - as it is to SCs & STs, industrial workers, women, bonded laborers, etc. - public- spirited lawyers end up paying out of their pocket as the amounts that are fixed for even photocopying of documents do not cover the cost of the service, says Ravi Rebba Pragada of the NGO Samata - which works among tribals in the Vishakapatnam district of Andhra Pradesh - who has accessed free legal aid services.
In the U.K., where courts like those in India don't award massive damages, there has been an innovation in legal aid with wealthy benefactors pitching in to underwrite legal costs. One property developer underwrote the legal costs of a large number of arthritis patients who sued- for compensation for side effects they suffered from the drug Opren. Similarly Sir James Goldsmith, billionaire financier and father-in-law of Imran Khan, set up the Goldsmith Libel Fund which provided support to a motley assortment of libel defendants. But it is debatable if such private initiative would be forthcoming, or indeed welcome, to support PIL cases involving the poor and the marginalised. Activists, however, need to seriously consider the issue of getting more public-spirited lawyers to enter the fray.
Public Interest Litigation - Part: 2

Though the Constitution of India guarantees equal rights to all citizens, irrespective of race, gender, religion, and other considerations, and the "directive principles of state policy" as stated in the Constitution obligate the Government to provide to all citizens a minimum standard of living, the promise has not been fulfilled. The greater majority of the Indian people have no assurance of two nutritious meals a day, safety of employment, safe and clean housing, or such level of education as would make it possible for them to understand their constitutional rights and obligations. Indian newspapers abound in stories of the exploitation - by landlords, factory owners, businessmen, and the state's own functionaries, such as police and revenue officials - of children, women, villagers, the poor, and the working class.

Though India's higher courts and, in particular, the Supreme Court have often been sensitive to the grim social realities, and have on occasion given relief to the oppressed, the poor do not have the capacity to represent themselves, or to take advantage of progressive legislation. In 1982, the Supreme Court conceded that unusual measures were warranted to enable people the full realization of not merely their civil and political rights, but the enjoyment of economic, social, and cultural rights, and in its far- reaching decision in the case of PUDR [People's Union for Democratic Rights] vs. Union of India [1982 (2) S.C.C. 253], it recognised that a third party could directly petition, whether through a letter or other means, the Court and seek its intervention in a matter where another party's fundamental rights were being violated. In this case, adverting to the Constitutional prohibition on "begar", or forced labor and traffic in human beings, PUDR submitted that workers contracted to build the large sports complex at the Asian Game Village in Delhi were being exploited. PUDR asked the Court to recognize that "begar" was far more than compelling someone to work against his or her will, and that work under exploitative and grotesquely humiliating conditions, or work that was not even compensated by prescribed minimum wages, was violative of fundamental rights. As the Supreme Court noted,

The rule of law does not mean that the protection of the law must be available only to a fortunate few or that the law should be allowed to be prostituted by the vested interests for protecting and upholding the status quo under the guise of enforcement of their civil and political rights. The poor too have civil and political rights and rule of law is meant for them also, though today it exists only on paper and not in reality. If the sugar barons and the alcohol kings have the fundamental right to carry on their business and to fatten their purses by exploiting the consuming public, have the chamars belonging to the lowest strata of society no fundamental right to earn an honest living through their sweat and toil?
Thus the court was willing to acknowledge that it had a mandate to advance the rights of the disadvantaged and poor, though this might be at the behest of individuals or groups who themselves claimed no disability. Such litigation, termed Public Interest Litigation or Social Action Litigation by its foremost advocate, Professor Upendra Baxi, has given the court "epistolary jurisdiction".
Further Reading:
What is Public Interest Litigation

IN BLACK'S LAW DICTIONARY : "Public Interest Litigation means a legal action initiated in a court of law for the enforcement of public interest or general interest in which the public or class of the community have pecuniary interest or some interest by which their legal rights or liabilities are affected."
Public Interest Litigation's explicit purpose is to alienate the suffering off all those who have borne the burnt of insensitive treatment at the hands of fellow human being. Transparency in public life & fair judicial action are the right answer to check increasing menace of violation of legal rights. Traditional rule was that the right to move the Supreme Court is only available to those whose fundamental rights are infringed.

But this traditional rule was considerably relaxed by the Supreme Court in its recent rulings:

Peoples Union for Democratic Rights v. Union of India ( A.I.R.. 1982 , S C 1473). The court now permits Public Interest Litigation or Social Interest Litigation at the instance of " Public spirited citizens" for the enforcement of constitutional & legal rights of any person or group of persons who because of their socially or economically disadvantaged position are unable to approach court for relief. Public interest litigation is a part of the process of participate justice and standing in civil litigation of that pattern must have liberal reception at the judicial door steps.

In the Judges Transfer Case - AIR 1982, SC 149: Court held Public Interest Litigation can be filed by any member of public having sufficient interest for public injury arising from violation of legal rights so as to get judicial redress. This is absolutely necessary for maintaining Rule of law and accelerating the balance between law and justice.
It is a settled law that when a person approaches the court of equity in exercise of extraordinary jurisdiction, he should approach the court not only with clean hands but with clean mind, heart and with clean objectives.

Shiram Food & Fertilizer case AIR (1986) 2 SCC 176 SC through Public Interest Litigation directed the Co. Manufacturing hazardous & lethal chemical and gases posing danger to life and health of workmen & to take all necessary safety measures before re-opening the plant.

In the case of M.C Mehta V. Union of India (1988) 1 SCC 471 - In a Public Interest Litigation brought against Ganga water pollution so as to prevent any further pollution of Ganga water. Supreme court held that petitioner although not a riparian owner is entitled to move the court for the enforcement of statutory provisions , as he is the person interested in protecting the lives of the people who make use of Ganga water.

Parmanand Katara V. Union of India - AIR 1989, SC 2039 :- Supreme Court held in the Public Interest Litigation filed by a human right activist fighting for general public interest that it is a paramount obligation of every member of medical profession to give medical aid to every injured citizen as soon as possible without waiting for any procedural formalities.

Council For Environment Legal Action V. Union Of India - (1996)5 SCC281 : Public Interest Litigation filed by registered voluntary organisation regarding economic degradation in coastal area. Supreme Court issued appropriate orders and directions for enforcing the laws to protect ecology.
A report entitled "Treat Prisoners Equally HC" published in THE TRIBUNE , Aug 23 Punjab & Haryana High Court quashed the provisions of jail manual dividing prisoners into A , B & C classes after holding that there cannot be any classification of convicts on the basis of their social status, education or habit of living .This is a remarkable ruling given by High Court by declaring 576-A paragraph of the manual to be " Unconstitutional".

State V. Union Of India - AIR 1996 Cal 181 at 218 : Public Interest Litigation is a strategic arm of the legal aid movement which intended to bring justice. Rule Of Law does not mean that the Protection of the law must be available only to a fortunate few or that the law should be allowed to be abused and misused by the vested interest. In a recent ruling of Supreme Court on " GROWTH OF SLUMS" in Delhi through Public Interest Litigation initiated by lawyers Mr. B.L. Wadhera & Mr. Almitra Patel Court held that large area of public land is covered by the people living in slum area . Departments despite being giving a dig on the slum clearance, it has been found that more and more slums are coming into existence. Instead of "Slum Clearance", there is "Slum Creation" in Delhi. As slums tended to increase; the Court directed the departments to take appropriate action to check the growth of slums and to create an environment worth for living.

During the last few years, Judicial Activism has opened up a new dimension for the Judicial process and has given a new hope to the millions who starve for their livelihood. There is no reason why the Court should not adopt activist approach similar to Court in America , so as to provide remedial amplitude to the citizens of India.

Supreme Court has now realised its proper role in welfare state and it is using its new strategy for the development of a whole new corpus of law for effective and purposeful implementation of Public Interest Litigation. One can simply approach to the Court for the enforcement of fundamental rights by writing a letter or post card to any Judge. That particular letters based on true facts and concept will be converted to writ petition. When Court welcome Public Interest Litigation , its attempt is to endure observance of social and economic programmes frame for the benefits of have-nots and the handicapped. Public Interest Litigation has proved a boon for the common men. Public Interest Litigation has set right a number of wrongs committed by an individual or by society. By relaxing the scope of Public Interest Litigation, Court has brought legal aid at the doorsteps of the teeming millions of Indians; which the executive has not been able to do despite a lot of money is being spent on new legal aid schemes operating at the central and state level. Supreme Court's pivotal role in expanding the scope of Public Interest Litigation as a counter balance to the lethargy and inefficiency of the executive is commendable.

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(Sources -
http://www.sit.edu/global_capacity/gpdocs/articles/india.html,
http://www.sscnet.ucla.edu/southasia/History/SocialPol/spmove.html,
http://www.supremecourtonline.com/articles/public-intrest-litigation.php )

Please refer to supremecourt website also.

UPTET : सरकार का न्‍यौता, टीईटी बैकफुट पर


UPTET : सरकार का न्‍यौता, टीईटी बैकफुट पर


पौने तीन लाख टीईटी आवेदकों में से उत्‍तीर्ण 72 हजार टीईटी बेरोजगारों के भाग्‍य का फैसला अब कोर्ट पर टिक गया है। टीईटी बेरोजगारों के आमरण अनशन के चौथे ही दिन सोमवार को आंदोलन समाप्‍त हो गया। सरकार के दबाव के आगे टीईटी आंदोलनकारियों को झुकना पड़ा जबकि अब गेंद न्‍यायालय के पाले में चली गई है।

टीईटी आंदोलन के चौथे दिन 18 आमरण अनकारियों में से ज्‍यादातर को अस्‍पताल का रास्‍ता दिखाना पड़ा। गर्मी और नौकरी के दबाव के आगे टीईटी आंदोलन टॉय टॉय फिस्‍स हो गया। जिला प्रशासन के अधिकारियों ने बीती रात जहां माइक छीन लिया वहीं सोमवार की सुबह से ही धरना को हटाने की रणनीति पर काम शुरू हो गया। प्रशासन की ओर से आश्‍वासन दिलाया गया कि अगली पांच अप्रैल को शासन से वार्ता कराई जाएगी। इसके बाद आंदोलन आानन- फानन में समाप्‍त हो गया।  प्रशासन ने छह अप्रैल को शासन से वार्ता का समय दिया लेकिन आवेदकों का कहना था कि वह केवल न्‍याय की उम्‍मीद में धरने में बैठे हैं। ऐसे में बीते अनुभव को देखते हुए लिखित आश्‍वासन पर ही प्रदर्शन समाप्‍त होगा।  उधर धूप के कारण अनशनकारियों की हालत बिगड़ने लगी। उधर ज्‍यादातर आंदोलनकारियों का कहना था कि इतना लम्‍बा संघर्ष व्‍यर्थ गया। वह प्रतिनिधियों के फैसले से रुष्‍ट थे। उम्‍मीद की जा रही है कि अब कोर्ट का दरवाजा ही टीईटी आवेदकों की आखिरी उम्‍मीद है

News : Yuvadastak.com  ( 2.4.12)

UPTET : Fast / Anshan is Broken by giving Juice by ADM and giving assurance of Meeting with Chief Minister in a Week



सीएम से वार्ता के आश्वासन पर तोड़ा अनशन 
(UPTET : Fast / Anshan is Broken by giving Juice by ADM and giving assurance of Meeting with Chief Minister in a Week )

लखनऊ। विधानभवन के सामने धरना स्थल पर अनशन कर रहे टीईटी अभ्यर्थियों ने सीएम से वार्ता कराने का आश्वासन मिलने के बाद सोमवार को अनशन समाप्त कर दिया। आंदोलनकारियों ने बताया कि उनकी वार्ता सोमवार को जिलाधिकारी से कराई गई। डीएम ने मुख्यमंत्री से उनकी वार्ता एक सप्ताह में कराने का आश्वासन दिया। जिस पर सभी ने सहमति जताते हुए अनशन समाप्त करने का निर्णय लिया। इसके बाद एडीएम प्रशासन देवेंद्र पांडेय और एडीएम पूर्वी आरपी सिंह ने जूस पिलाकर उनका अनशन तुड़वाया।
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शिक्षा सेवा नियमावली बदलने की प्रक्रिया शुरू
•निदेशालय के प्रस्ताव पर शासन में शुरू हुआ मंथन
लखनऊ। मायावती सरकार के दो महत्वपूर्ण निर्णय को और बदलने की कवायद शासन स्तर पर शुरू कर दी गई है। इसमें उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा अध्यापक सेवा नियमावली और स्थानांतरण नियमावली को बदल कर पूर्व की तरह करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। सेवा नियमावली में शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) मेरिट से शिक्षकों की भर्ती और स्थानांतरण नियमावली में अंतरजनपदीय तबादले का प्रावधान कर दिया गया था।
यूपी के बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त 72 हजार 825 पदों पर भर्ती के लिए मानक बदल दिए गए थे। यूपी में पहले शिक्षकों की भर्ती शैक्षिक मेरिट के आधार पर होती थी, लेकिन नियमावली में संशोधन कर इसे टीईटी मेरिट पर कर दिया गया। इस आदेश के बाद टीईटी परीक्षा परिणाम में धांधली का खुलासा हुआ। इसलिए बेसिक शिक्षा निदेशालय ने शासन के निर्देश पर शिक्षा सेवा नियमावली में संशोधन का प्रस्ताव भेजा था। शिक्षकों को मनचाहे जिलों में स्थानांतरण देने के लिए भी नियमावली बदल दी गई थी। इसमें प्रावधान कर दिया गया कि शिक्षक पूरे सेवाकाल में एक बार जिस जिले में चाहेगा, स्थानांतरण ले सकेगा। इस नियमावली के आधार पर स्थानांतरण के लिए ऑनलाइन आवेदन मांगे गए थे। इसमें करीब 62 हजार शिक्षकों ने आवेदन कर रखा है। अब इस नियमावली को भी बदला जा रहा है, ताकि एक साथ इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों का तबादला न किया जाए। शिक्षकों का तबादला होने से जिलों में शिक्षकों की कमी हो जाती

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बीपीएड डिग्रीधारकों से मिले मुख्यमंत्री
लखनऊ। ट्रेन्ड फिजिकल टीचर्स एसोसिएशन के एक प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भेंटकर बीपीएड डिग्री धारकों को जूनियर हाईस्कूलों में खेल प्रशिक्षक के पद पर नियुक्त करने का अनुरोध किया है। मुख्यमंत्री ने उनकी मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया है।
बीपीएड डिग्री धारकों ने मुख्यमंत्री को बताया कि समाजवादी पार्टी के पिछले शासनकाल के दौरान उन्हें बीएड डिग्री धारकों के बराबर का दर्जा देेते हुए प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक के रूप में नियुक्त किया जा चुका है। पर वर्ष 2011 में बसपा शासनकाल में विशिष्ट बीटीसी के लिए हुई टीईटी परीक्षा में बीपीएड डिग्रीधारकों को शामिल नहीं किया गया।


News : Amar Ujala (3.4.12)

Monday, April 2, 2012

UPTET Orai : TET Unemployeds Conducted Rally

टीईटी बेरोजगारों ने रैली निकाली
(UPTET Orai : TET Unemployeds Conducted Rally)


उरई (जालौन)। टीईटी के सैकड़ों उत्तीर्ण अभ्यर्थियों ने रविवार को शहर में रैली निकालकर नारेबाजी की तथा लखनऊ में चल रहे अनशन में भाग लेने के लिये टीईटी अभ्यर्थियों का आह्वान किया। टीईटी अभ्यर्थियों ने आज कोंच रोड से रैली निकाली। इसमें शामिल सैकड़ों अभ्यर्थी सरकार के विरोध में नारे लगा रहे थे। रैली माहिल तालाब, घंटाघर, मच्छर चौराहा होते हुए गांधी मार्केट स्थित गांधी चबूतरे पर पहुंची। यहां अभ्यर्थियों ने घोषणा की कि दो अप्रैल को अपराह्न तीन बजे ट्रेन द्वारा लखनऊ पहुंचकर सैकड़ों अभ्यर्थी अनशन में शामिल होंगे। इस मौके पर रामजी सोनी, शफीक अंसारी, विनोद कुमार, अमित गौतम, राकेश वर्मा, रामशंकर प्रजापति, मनोज कुमार, अमित, अखिलेश द्विवेदी, अरविंद, अजय पाल, अमित गुप्ता, सुशील गुप्ता, अनुराग राठौरा, अंशू गुप्ता, गौरव गुप्ता, शशिकांत पाल, नदीम, धर्मेंद्र, राकेश चौहान, रवींद्र आदि मौजूद रहे।

News : Amar Ujala (2.4.12)

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टीईटी अभ्यर्थियों में रोष

अनपरा (सोनभद्र): लंबे समय इंतजार करने के उपरांत भी टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की भर्ती

प्रक्रिया प्रारंभ न होने से अभ्यर्थियों में रोष व्याप्त है।

अभ्यर्थियों का कहना है कि सुबे में सपा की सरकार बनने से अभ्यर्थियों में काफी उम्मीदें जगी है। इस संदर्भ में गौतम प्रसाद विश्वकर्मा, अरूण कुमार, राजेन्द्र प्रसाद आदि ने यू.पी. बोर्ड द्वारा टीईटी की धांधली जांच कर अभ्यर्थियों की नियुक्ति करने की मांग की है।


News : Jagran (2.4,12)
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टीईटी प्रक्रिया न की जाए निरस्त


कासगंज, निज प्रतिनिधि: नदरई गेट स्थित प्रभु पार्क में आयोजित टीईटी बेरोजगार संघ की बैठक में टीईटी प्रक्रिया को निरस्त न किए जाने की मांग उठाई गई। साथ ही निर्णय लिया गया कि लखनऊ में अनशन कर रहे टीईटी अभ्यर्थियों के सहयोग में मंगलवार को जनपद के अभ्यर्थी भी जाएंगे।

जिला उपाध्यक्ष चंदन भारद्वाज ने कहा कि अभ्यर्थियों ने पूर्ण मेहनत एवं लग्न के साथ परीक्षा दी और परीक्षा में सफल भी हो गए, लेकिन कुछ लापरवाह अधिकारियों एवं कर्मचारियों की खामी से अभ्यर्थियों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि टीईटी प्रक्रिया यदि निरस्त हुई तो हजारों युवा बेरोजगार हो जाएंगे। उन्होंने मांग की है कि प्रक्रिया निरस्त न की जाए।

बैठक के दौरान निर्णय लिया गया कि अभ्यर्थियों का एक दल मंगलवार की प्रात: लखनऊ रवाना होगा और आमरण अनशन कर रहे अपने साथियों का सहयोग करेगा। जिन साथियों की हालत लखनऊ में गंभीर बनी हुई है उन्हें उपचार हेतु भर्ती कराए जाने की मांग की गई है। साथ ही मांग उठी है कि मुख्यमंत्री कार्यालय में विचाराधीन टीईटी निरस्तीकरण फाइल पर विचार कर प्रक्रिया निरस्त न की जाए।

बैठक में मनोज कुमार, विजय कुमार, मनोज श्रीवास्तव, संजय यादव, मो. कमर, सुनील यादव, अनिल यादव, तालेवर सिंह, योगेन्द्र सिंह, शिवकुमार पाठक, मु. सलीम, शिशिर माहेश्वरी, विवेक यादव, इरफान, शेर सिंह, विजय कुमार आदि उपस्थित थे।

News : Jagran (2.4.12)

UPTET : Andhan / Hunger Strike Postponed as District Magistrate assured TET Candidates to fix a meeting with Chief Minister by 5th April 2012


UPTET : Andhan / Hunger Strike Postponed as District Magistrate assured TET Candidates to fix a meeting with Chief Minister by 5th April 2012 


ब्लॉग विसिटर्स ने अपने कमेन्ट द्वारा बताया है की -
DM DWARA LIKHIT MAIN DI GAYA HAI KI 5 APRIL TAK HUMARI MEET C.M SE HOGI.wahan hum apna paksh rakhenge.agar c.m is baat par raji hua ki merit tet hi rahegi aur add main changing nahi ki jayegi tab to age koi actinn nahi hoga par neg message ane par anshan fir se suru hoga.kitna bara durbgaya hai tet passed ka ki koi humari nahi sun raha.lucknow main suna kar aye hain.we will win.we bound to win.
डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने लिखित  में दीया  है की ५ अप्रेल तक टी ई टी अनशनकारीओं की मीटिंग चीफ मिनिस्टर से कराई जायेगी . और लखनऊ अनशन फिलहाल इस आश्वासन  के साथ ख़त्म हो गया है |
पिछली बार भी जब २० मार्च को अनशन हुआ था , तो आश्वासन दीया गया था की सरकार / चीफ मिनिस्टर से स्पस्टीकरण २६ मार्च तक दीया जायेगा की टी ई टी निरस्त की जायेगी या नहीं 
देखीये -
" देर शाम एसीएम ने अभ्यर्थियों को आश्वासन दिया कि उनकी मांग जायज है। इस बाबत वह अभ्यर्थियों का एक प्रतिनिधि मंडल की वार्ता मुख्यमंत्री से कराएंगे। उन्होंने वार्ता कराने के लिए पांच दिनों का समय मांगा है। देर रात तक अभ्यर्थी धरनास्थल पर बैठे रहे। "

We hope UP Chief Minister will take a good decision to all. (Thanks in Advance )
UP Chief Minister is Youngest Chief Minister and favorite of Young people in UP. Young generation having a lot of expectations from young CM of UP.