News : स्पेस में भारत की लंबी छलांग: पहले स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन GSLV D-5 ने किया सफल प्रक्षेपण
स्पेस में भारत की लंबी छलांग: पहले स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन GSLV D-5 ने किया सफल प्रक्षेपण
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इसके प्रक्षेपण के साथ ही इसरो अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ्रांस के बाद दुनिया की छठी अंतरिक्ष एजेंसी बन गया जिसने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ सफलता का स्वाद चखा है।
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के मिशन कंट्रोल रूम से इसरो प्रमुख के राधाकृष्णन ने कहा, ‘‘मैं बेहद खुश हूं और मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि टीम इसरो ने इसे कर दिखाया है। भारतीय क्रायोजेनिक इंजन और स्टेज ने वैसा ही प्रदर्शन किया है जैसा इस मिशन के लिए अनुमान जताया गया था और जैसी अपेक्षा थी और उसने जीसैट-14 संचार उपग्रह को कक्षा में ठीक तरीके से स्थापित कर दिया है।’’
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श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश). भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 2014 की धमाकेदार शुरुआत कर दुनियाभर में अपना लोहा मनवा लिया है। इसरो ने रविवार को जीएसएलवी डी-5 की सफल लॉन्चिंग की। जीएसएलवी डी-5 पहला स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन (जीएसएलवी डी-5) है, जिसने जीसैट-14 संचार उपग्रह को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया है। इसके साथ ही भारत उन देशों के क्लब में शामिल हो गया है जिनके पास अपना क्रायोजेनिक तकनीक है। इसे भारत के लिए बड़ी सफलता माना जा रहा है, क्योंकि अब तक भारत को फ्रांस से दोगुनी कीमत चुका कर रॉकेट लेने पड़ते थे। इसके अलावा जीएसएलवी डी-5 की सफल लॉन्चिंग भारत के अभियान 'चंद्रयान-2' के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इस उपलब्धि पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा- भारत ने विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
बड़े कमाल कर सकता है क्रायोजेनिक इंजन
क्रायोजेनिक इंजन तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है, जो बर्फ से भी बहुत कम तापमान पर काम करती है। किसी राकेट को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के दौरान उसका ईंधन भी साथ में ले जाना पड़ता है। ऐसे में सबसे हल्का ईंधन तरल हाईड्रोजन और तरल ऑक्सीजन हैं और उसे जलाने पर सबसे अधिक ऊर्जा मिलती है। इससे सहज ही समझा जा सकता है कि अंतरिक्ष मिशन में क्रायोजेनिक इंजन का क्या महत्व है। अभी तक भारत को क्रायोजेनिक इंजन के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद दुनिया ने यह तकनीकी देने से इनकार कर दिया गया था, तभी से भारत के वैज्ञानिक इसे विकसित करने में लगे थे। इस तकनीक पर भारत करोड़ों रुपए खर्च कर चुका है।
आपको बता दें कि 4 बजकर 18 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से जीएसएलवी डी-5 को लॉन्च किया और ठीक 17 मिनट की उड़ान के बाद यान जीसैट-14 अपनी कक्षा में पहुंच गया। जीएसएलवी डी-5 इस साल अंतरिक्ष में पहुंचने वाला पहला सैटेलाइट है। इसकी लॉन्चिंग के लिए शनिवार दोपहर 11.18 बजे काउंट डाउन शुरू कर दिया गया था। इस प्रक्षेपण के पीछे वैज्ञानिकों की 20 साल की वह मेहनत भी दांव लगी थी, जो उन्होंने देसी क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने में लगाई। इस पूरे अभियान की कुल लागत 356 करोड़ रुपए है
स्पेस में भारत की लंबी छलांग: पहले स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन GSLV D-5 ने किया सफल प्रक्षेपण
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इसके प्रक्षेपण के साथ ही इसरो अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ्रांस के बाद दुनिया की छठी अंतरिक्ष एजेंसी बन गया जिसने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ सफलता का स्वाद चखा है।
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के मिशन कंट्रोल रूम से इसरो प्रमुख के राधाकृष्णन ने कहा, ‘‘मैं बेहद खुश हूं और मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि टीम इसरो ने इसे कर दिखाया है। भारतीय क्रायोजेनिक इंजन और स्टेज ने वैसा ही प्रदर्शन किया है जैसा इस मिशन के लिए अनुमान जताया गया था और जैसी अपेक्षा थी और उसने जीसैट-14 संचार उपग्रह को कक्षा में ठीक तरीके से स्थापित कर दिया है।’’
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श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश). भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 2014 की धमाकेदार शुरुआत कर दुनियाभर में अपना लोहा मनवा लिया है। इसरो ने रविवार को जीएसएलवी डी-5 की सफल लॉन्चिंग की। जीएसएलवी डी-5 पहला स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन (जीएसएलवी डी-5) है, जिसने जीसैट-14 संचार उपग्रह को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया है। इसके साथ ही भारत उन देशों के क्लब में शामिल हो गया है जिनके पास अपना क्रायोजेनिक तकनीक है। इसे भारत के लिए बड़ी सफलता माना जा रहा है, क्योंकि अब तक भारत को फ्रांस से दोगुनी कीमत चुका कर रॉकेट लेने पड़ते थे। इसके अलावा जीएसएलवी डी-5 की सफल लॉन्चिंग भारत के अभियान 'चंद्रयान-2' के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इस उपलब्धि पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा- भारत ने विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
बड़े कमाल कर सकता है क्रायोजेनिक इंजन
क्रायोजेनिक इंजन तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है, जो बर्फ से भी बहुत कम तापमान पर काम करती है। किसी राकेट को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के दौरान उसका ईंधन भी साथ में ले जाना पड़ता है। ऐसे में सबसे हल्का ईंधन तरल हाईड्रोजन और तरल ऑक्सीजन हैं और उसे जलाने पर सबसे अधिक ऊर्जा मिलती है। इससे सहज ही समझा जा सकता है कि अंतरिक्ष मिशन में क्रायोजेनिक इंजन का क्या महत्व है। अभी तक भारत को क्रायोजेनिक इंजन के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद दुनिया ने यह तकनीकी देने से इनकार कर दिया गया था, तभी से भारत के वैज्ञानिक इसे विकसित करने में लगे थे। इस तकनीक पर भारत करोड़ों रुपए खर्च कर चुका है।
आपको बता दें कि 4 बजकर 18 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से जीएसएलवी डी-5 को लॉन्च किया और ठीक 17 मिनट की उड़ान के बाद यान जीसैट-14 अपनी कक्षा में पहुंच गया। जीएसएलवी डी-5 इस साल अंतरिक्ष में पहुंचने वाला पहला सैटेलाइट है। इसकी लॉन्चिंग के लिए शनिवार दोपहर 11.18 बजे काउंट डाउन शुरू कर दिया गया था। इस प्रक्षेपण के पीछे वैज्ञानिकों की 20 साल की वह मेहनत भी दांव लगी थी, जो उन्होंने देसी क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने में लगाई। इस पूरे अभियान की कुल लागत 356 करोड़ रुपए है
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