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टीईटी-2011 में 82 नंबर पाने वाले आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को परीक्षा के तीन साल बाद यूपी बोर्ड पास का सर्टिफिकेट देगा।
हाईकोर्ट से आदेश होने और प्रमुख सचिव बेसिक के अवमानना मामले में फंसने के बाद बोर्ड के अफसर सक्रिय हुए हैं। दरअसल प्रदेश में पहली बार आयोजित टीईटी-11 में ओबीसी, एससी, एसटी समेत आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को 83 नंबर (55 प्रतिशत) पर पास किया गया था। लेकिन सीबीएसई ने दिसंबर 2012 की सीटीईटी से आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को 82 नंबर पर पास का सर्टिफिकेट देना शुरू कर दिया।
सीटीईटी को आधार बनाते हुए जून 2013 की टीईटी में 82 अंक पर परीक्षा नियामक प्राधिकारी द्वारा फेल किए गए अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में याचिकाएं कर दी। एनसीटीई से जवाब तलब के बाद कोर्ट ने 82 नंबर पर आरक्षित वर्ग को पास करने का निर्देश दिया। परीक्षा नियामक ने 2014 की टीईटी में 82 अंक पाने वालों को पास का सर्टिफिकेट जारी किया। लेकिन 2013 की टीईटी में 82 नंबर वालों को पास करने से इनकार कर दिया।
इस पर फिर मुकदमा हुआ तो कोर्ट के आदेश पर सरकार ने बैकडेट से 2013 की टीईटी में 82 नंबर पाने वाले लगभग छह हजार अभ्यर्थियों को पास कर दिया। सरकार के इस फैसले को आधार बनाते हुए आरक्षित वर्ग के वे अभ्यर्थी भी पास सर्टिफिकेट मांगने लगे जो 2011 की टीईटी में 82 नंबर पाकर फेल हो गए थे।
हाईकोर्ट ने 2011 में आयोजित प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर की टीईटी में 82 नंबर पाने वालों को पास का औपबंधित (प्रोविजनल) सर्टिफिकेट देने के निर्देश दिए थे। लेकिन यूपी बोर्ड ने सर्टिफिकेट जारी नहीं किए। जिस पर एक अभ्यर्थी सिकंदर वारसी ने हाईकोर्ट में प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा एचएल गुप्ता के खिलाफ अवमानना याचिका दायर कर दी।
28 नवम्बर 2014 को हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव को नोटिस जारी की तो यूपी बोर्ड के अफसर सक्रिय हो गए। बोर्ड ने टीईटी-11 के सर्टिफिकेट छपवा लिए हैं। लेकिन फिलहाल हाईकोर्ट के आदेश पर संबंधित अभ्यर्थियों को ही जारी किए जाएंगे। इसके लिए एससीईआरटी से टीईटी-11 के रिकार्ड भी मांगे गए हैं
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