Friday, April 6, 2012

PUBLIC INTEREST LITIGATION - PIL in SUPREME COURT

इंसाफ का हथियार जन हित याचिका
(PUBLIC INTEREST LITIGATION - PIL in SUPREME COURT )

पहले केवल पीड़ित पक्ष ही अर्जी दाखिल कर सकता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कहा गया कि अगर मामला आम लोगों के हित से जुड़ा हुआ हो तो कोई भी कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शख्स हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर भी समस्या के बारे में सूचित करता है तो कोर्ट उस पत्र को जनहित याचिका के रुप में स्वीकार करेगी।
भारत की न्यायपालिका में एक महत्वपूर्ण पड़ाव 80 के दशक की शुरुआत को माना जाता है, जब जनहित याचिकाओं की शुरुआत हुई। इसके पीछे जजों का आशय यह था कि जो भी गरीब कोर्ट में नहीं जा सकते या अपने कानूनी अधिकारों से अनभिज्ञ हैं, उनके लिए कानूनी मदद सुनिश्चित की जाए। न्यायालय ने इस बात की अनुमति दी कि कोई भी व्यक्ति भले ही वह उस मामले से सीधे सीधे जुड़ा हुआ न भी हो, याचिका दायर कर सकता है बशर्ते वह लोकहित में हो। ऐसे बहुत से मामले हैं जिसमें कोर्ट ने बंधुआ मजदूरों, कैदियों और समाज के विभिन्न शोषित वर्गों के लोगों की जनहित याचिकाएं स्वीकार की जो कि केवल पत्र के रूप में कोर्ट में भेजी गई थीं और जजों ने संज्ञान लेते हुए उसे जनहित याचिका (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन- पीआईएल) माना और निर्णय दिया। अगर किसी व्यक्ति के मूल अधिकार का हनन हो रहा हो तो वह सीधे तौर पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है, लेकिन अगर लोगों के हितों से जुड़ी कोई बात हो तो कोई भी व्यक्ति कोर्ट में जनहित याचिका या पीआईएल दायर कर सकता है। आज जनहित याचिकाओं की लोकप्रियता अपने चरम पर है।

कोई भी दायर कर सकता है पीआईएल
1981 से पहले जनहित याचिका दायर करने का चलन नहीं था। 1981 में ‘अखिल भारतीय शोषित कर्मचारी संघ (रेलवे) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ के केस में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी आर कृष्णा अय्यर ने अपने फैसले में कहा था कि कोई गैर-रजिस्टर्ड एसोसिएशन ही संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत रिट् दायर कर सकती है। साथ ही, यह भी कहा कि ऐसा संस्थान जनहित याचिका भी दायर कर सकता है, लेकिन इसके बाद 1982 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी एन भगवती की अगुवाई में सात जजों की बेंच ने बहुचर्चित जज ट्रांसफर केस में ऐतिहासिक फैसला दिया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आम लोगों के अधिकारों को नकारा नहीं जा सकता। ‘ऑस्ट्रेलियन लॉ कमिशन’ की एक सिफारिश का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आम लोगों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो कोई भी शख्स जनहित याचिका दायर कर सकता है।
इससे पहले केवल पीड़ित पक्ष ही अर्जी दाखिल कर सकता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले में कहा गया कि अगर मामला आम लोगों के हित से जुड़ा हुआ हो तो कोई भी कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शख्स हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर भी समस्या के बारे में सूचित करता है तो कोर्ट उस पत्र को जनहित याचिका के रुप में स्वीकार करेंगी।
दरअसल यह देखा गया है कि बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके अधिकारों का हनन हो रहा होता है, लेकिन वे इस स्थिति में नहीं होते कि कोर्ट में याचिका दायर कर अपने अधिकार के लिए लड़ सकें। बंधुआ मजदूर या जेल में बंद कैदी भी इन लोगों में शुमार हैं। इन लोगों के लिए एनजीओ आदि ने समय-समय पर जनहित याचिकाएं दायर की और इन्हें कोर्ट से इंसाफ दिलाया है।

दो तरह की होती हैं पीआईएल :

वैसे, याचिकाएं दो तरह की होती हैं - एक ‘प्राइवेट इंट्रेस्ट लिटिगेशन’ और दूसरा ‘पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन’। प्राइवेट इंट्रेस्ट लिटिगेशन में पीड़ित खुद याचिका दायर करता है। इसके लिए उसे संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट और अनुच्छेद-226 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार है। याचिकाकर्ता को कोर्ट को बताना होता है कि उसके मूल अधिकार का कैसे उल्लंघन हो रहा है। वहीं जनहित याचिका (पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन) दायर करने के लिए याचिकाकर्ता को यह बताना होगा कि कैसे आम लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है? अपने स्वयं के हित के लिए जनहित याचिका का इस्तेमाल नहीं हो सकता। कोर्ट को पत्र लिखकर भी आम आदमी के हितों की रक्षा के लिए गुहार लगाई जा सकती है। अगर कोर्ट चाहे तो उस पत्र को जनहित याचिका में बदल सकती है। पिछले दिनों जेल में बंद कुछ कैदियों ने ‘स्पीडी ट्रायल’ के लिए हाई कोर्ट को पत्र लिखा था। उस पत्र को कोर्ट ने जनहित याचिका के रुप में स्वीकार कर लिया। मीडिया में छपी किसी खबर के आधार पर हाई कोर्ट खुद भी संज्ञान ले सकती है और ऐसे मामले को स्वयं ही जनहित याचिका या पीआईएल में बदल सकती है।

मूल अधिकारों के लिए सरकार उत्तरदायी
कानूनविदों की कहना है कि कई बार पीआईएल का गलत इस्तेमाल भी होता रहा है, लेकिन समय-समय पर कोर्ट ने ऐसे याचिकाकर्ताओं पर भारी हर्जाना लगाया है। जनहित याचिका हाई कोर्ट में अनुच्छेद-226 और सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद-32 के तहत दायर की जाती है। संविधान में प्राप्त मूल अधिकारों के उल्लंघन के मामले में दायर की जाने वाली इस तरह की याचिका में सरकार को प्रतिवादी बनाया जाता है क्योंकि मूल अधिकार की रक्षा की जिम्मेदारी सरकार की होती है। याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट सरकार को नोटिस जारी करती है और तब सुनवाई शुरू होती है।
जन हित याचिकाओं के पीछे लोकहित की भावना होती है। ये ऐसे न्यायिक उपकरण है जिनका लक्ष्य जनहित प्राप्त करना है। इनका लक्ष्य एक आम आदमी को तीव्र न्याय दिलवाने तथा कार्यपालिका, विधायिका को उनके संवैधानिक कार्य करवाने के लिए किया जाता है। यह व्यक्ति हित में काम नही आती है, इनका उपयोग पूरे समूह के हितों को ध्यान में रखकर किया जाता है। यदि इनका दुरूपयोग किया जाये तो याचिकाकर्ता परजुर्माना लगाया जा सकता है। इनको स्वीकारना या न स्वीकारना पूरी तरह से न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।
जनहित से जुड़े कुछ जरूरी तथ्य:
n लोकहित से प्रेरित कोई भी व्यक्ति, संगठन पीआईएल ला सकता है।

n : कोर्ट को दिया गया पोस्टकार्ड भी रिट् याचिका मान कर ये जारी की जा सकती है।
n कोर्ट को अधिकार होगा कि वह इस याचिका हेतु सामान्य न्यायालय शुल्क भी माफ कर दे।
n ये राज्य के साथ ही निजी संस्थान के विरूद्ध भी लाई जा सकती है।
पीआईएल के लाभ:
इस याचिका से जनता में स्वयं के अधिकारों और न्यायपालिका की भूमिका के बारे मे चेतना बढ़ती है। यह व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के क्षेत्र को विस्तृत बनाती है। साथ ही इससे व्यक्ति को कई नए अधिकार मिलते हैं। यह कार्यपालिका व विधायिका को उनके संवैधानिक कर्तव्य करने के लिए बाधित करती है, साथ ही यह भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन भी सुनिश्चित करती है।


Information Source : NayaIndia.Net

UPTET : Decision on Stay in Highcourt

72 हजार शिक्षकों की भर्ती पर रोक के खिलाफ अपील खारिज(UPTET : Decision on Stay in Highcourt )

विधि संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश में लगभग 72 हजार सहायक अध्यापकों की नियुक्ति पर लगी रोक के खिलाफ दाखिल विशेष अपील खारिज कर दी है और अपीलार्थी से कहा है कि वह अपना पक्ष एकलपीठ के समक्ष रखे।

यह आदेश न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह तथा न्यायमूर्ति वी अमित स्थालकर की खंडपीठ ने ललित मोहन सिंह व अन्य की अपील पर दिया है। अपील का प्रतिवाद आलोक यादव ने किया। यादव कपिल देव लाल बहादुर की याचिका पर 9 अप्रैल को एकल पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है। न्यायालय ने बोर्ड द्वारा सभी बीएसए की तरफ से विज्ञापन निकालने को नियमविरुद्ध मानते हुए रोक लगा दी है। टीईटी चयनित लोगों की नियुक्ति की जानी है

News : Jagran (6.4.12)
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However purpose of appeal (to vacae stay in Highcourt ) is solved. As case extended many times , new date comes again and again without hearing.

Double bench clearly issue dirctives for final decision at the earliest. Possibly decision will go in favor to vacate stay. (Final decison )

And whatever decision comes, But it should come early as it is related to large public interst, Due to a single person who was not directly involved with this case, not a departmental person and his objective is clear - to create obstacle in recruitment process. Court should know such objective behind this issue. If authority concerned has objection then people can understand purpose of it.

Fundamentals to maintain stay is weak and hopfully stay is vacated in court.

UPTET : Allahabad Highcourt Double Bench Pass an Order to Single Bench / Judge to Vacate / Finalize is Decision on 9th April 2012

UPTET : Allahabad Highcourt Double Bench Pass an Order to Single Bench / Judge to Vacate / Finalize is Decision on 9th April 2012

Additionally it siggests advertisement is NOT errorneous and technically it is correct.
It means hopefully stay on Primary Teacher recruitments will vacated from Allahabad Highcourt.
See Case Details
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DOUBLE BENCH TODAY JUDGEMENT:-
HIGH COURT OF JUDICATURE AT ALLAHABAD
Case :- SPECIAL APPEAL DEFECTIVE No. - 280 of 2012
Petitioner :- Lalit Mohan Singh And Anr.
Respondent :- State Of U.P. And Others
Petitioner Counsel :- Siddharth Khare,Ashok Khare
Respondent Counsel :- C.S.C.,Illigible,K.S. Kushwaha
Hon'ble Yatindra Singh,J.
Hon'ble B. Amit Sthalekar,J.
1. An advertisement for selection of Apprentice Teachers was published on 30.11.2011 in the primary school run by UP Basic Education Board (the Board). The Apprentice teachers are to be engaged in all districts and this advertisement was on behalf of all District Basic Education Officers of the State of UP.
2. WP No. 76039 of 2011 has been filed challenging the advertisement. The single Judge has passed an order on 4.1.2012 staying the selection and appointment in pursuance of the advertisement. Hence the present appeal by the two appellants, who claim themselves to be the applicants in the advertisement alongwith application to grant leave to file appeal.
3. Considering the facts that the appellants are also applicants in the selection of Apprentice Teachers, the leave is granted. The respondents have no objection to condone the delay in filing the appeal. The delay is condoned and it is heard for admission.
4. The counsel for the appellant submits that:
By the advertisement, 72825 posts have been advertised. This writ petition is on behalf of only one person and it is not proper to grant interim order in this case; The selection process ought not to have been stayed by the single Judge but the single Judge should have permitted the selection process to go on and the selection might have been made subject to decision in the writ petition;
The reason for grant of stay order was that advertisement was on behalf of District Basic Education Officers of the State. This is not erroneous because the District Basic Education Officers are the appointing authority and one advertisement can always be issued on their behalf together;
The publication of one advertisement is practical and better way of selecting candidates in the entire district.
5. The counsel for the petitioner-respondent states that:
Apart from this writ petition there were other writ petitions that should have been connected with this one;
There is no interim order in those cases, but it is not correct to say that only one person is challenging the selection.

6. It is not disputed between the parties that counter and rejoinder affidavits have been exchanged in the writ petition and the writ petition itself is listed before the single Judge for final disposal in the week commencing 9.4.2012. Considering the facts that the number of persons are to be employed, it would be appropriate that the single Judge might consider finally deciding the writ petition at the earliest.
7. With the aforesaid observations, the special appeal is dismissed. Order Date :- 6.4.2012
SK Singh

Source : http://elegalix2.allahabadhighcourt.in/elegalix/WebShowJudgment.do?judgmentID=1781025

UPTET : After fulfilling Demands of TET Candidates by CM Akhilesh, TET candidate filled with Joy and Excitement


मांगें स्वीकार होने पर झूमे टीईटी अभ्यर्थी
(UPTET : After fulfilling Demands of TET Candidates by CM Akhilesh, TET candidate filled with Joy and Excitement )


प्रतापगढ़ : टीईटी अभ्यर्थियों की मांगों को प्रदेश सरकार द्वारा मान लिए जाने से उनमें खुशी की लहर है। उन्होंने एक दूसरे को मिठाई खिलाकर इसका इजहार भी किया

सपा कार्यालय पहुंचे अभ्यर्थियों ने जिलाध्यक्ष भइयाराम पटेल सहित अन्य पदाधिकारियों को मिठाई खिलाई। इस मौके पर अभ्यर्थी विवेक सिंह, विनोद तिवारी, विपिन चंद्र तिवारी, संदीप गुप्ता, आशीष सिंह, चंद्र प्रकाश वर्मा, चंद्रशेखर, अनूप तिवारी आदि ने कहा कि प्रदेश सरकार से हुई वार्ता सफल रही। इस मौके पर मोहम्मद वासिक खान, प्यारे लाल खैरा, अनूप ओझा, विवेक सिंह, आशुतोष पांडेय, मोहम्मद अफसर आदि मौजूद रहे।



News : Jagran (6.4.12)

CTET / TET / UPTET : Golden Opportunities for B. Ed - TET Qualified in Coming Years



बी. एड. डिग्री धारकों को लिये सुनहेरा अवसर
(CTET / TET / UPTET : Golden Opportunities for B. Ed - TET Qualified in Coming Years )

 जो बी एड डिग्री धारक एन सी टी ई की समय सीमा के अन्दर शिक्षक पात्रता परीक्षा (टी ई टी ) उत्तीर्ण कर चुके हैं जो की 1 जनवरी 2012 (क्योंकी अब सी टी ई टी / टी ई टी एक्साम में बी एड धारी, प्राइमरी लेवल एक्साम के पात्र नहीं है ) तक निर्धारित की गयी थी उन सभी लोगो के लिये
प्राइमरी टीचर (स्थाई नोकरी ) के लिये सुनहेरा अवसर है      
 आर   टी ई के नियमों  के आधार   पर   शिक्षक छात्र   का  अनुपात  1:30 है  जो की लाखों   जोब्स    के नए  अवसर देता   है  
 यु   पी   का   केस   देखें   : -
 72825 प्राइमरी टीचर की भर्ती  के आवेदन  मांगे  गए  थे  , और  लगभग  26 हज़ार  अपर  प्राइमरी टीचर  के आवेदन  मांगे  जाने  वाले  थे  .
और   उसके  बाद  खबरें  आयी  की 80,000 नए  पदों  की और  रिक्तिओं  के लिये नए  सेशन  से  भर्ती  की जा  सकती  हैं .
 देखा  जाये  तो  बहुत  से  आवेदकों  ने  प्राइमरी व  अपर  प्राइमरी  दोनों  के लिये टी ई टी क्वालीफाई  कीया  है , और  अगर  ये  प्राइमरी के आवेदक  अपर  प्राइमरी की जॉब  पाने  में  सफल  हो  जाते  हैं
व प्राइवेट स्कूलों में अब  टी ई टी उत्तीर्ण (एन सी टी ई की गाइड लाइन के अनुसार )  तो लगभग  हर  टी ई टी पास  (2.7 लाख  अभ्यर्थी  पास  हुए  थे  ) को जॉब  मिलने  का  एक  सुनहेरा अवसर है 
 क्योंकी -
एन सी टी ई के नियमों  के अनुसार  अब  प्राइमरी / अपर  प्राइमरी , चाहे  वो  सरकारी  स्कूल  हो  या  प्राइवेट  हर  जगह  , टी ई टी उत्तीर्ण अभ्यर्थी  ही  पात्र  हैं 
इसको  देखते  हुए  लाखों  बी  एड . ( टी ई टी उत्तीर्ण) के लिये आने  वाला  समय सुन्हेरा   अवसर लेकर  आने  वाला  है  


क्योंकी अब सी टी ई टी / टी ई टी एक्साम में बी एड धारी, प्राइमरी लेवल एक्साम के पात्र नहीं है :
Now you can see advt. of state for TET / CTET, B. Ed Holders are not eligible.
In some states, If no TET exam conducts they may have some relaxation as you see in Bihar , Tamilnadu etc. But now most of states conducted TET for Primary Level ( to generate adeqate skilled manpower of qualified candidates including B. Ed) and now they closed door for B. Ed holders at Primary Level.


If any of visitor having suggestions /updated info then give it through comments.

UPTET : Very Good News : Decision / Next Date on 9th April 2012 to Vacate Stay in Highcourt for Teachers Recruitment in UP

UPTET : Very Good News : Decision / Next Date on 9th April 2012 to Vacate Stay in Highcourt for Teachers Recruitment in UP


Date Change from 19th April 2012 to 9th April 2012 as per informed by Vivekanand jee (President UP TET Morcha )

See Details :- 
Special appeal 280/2012 Lalit mohan singh and Ranjeet singh yadav ki name se file karai gai thee jisme Sr. Advocate Ashok khare hamare wakil hai aur isme lagbhag 30 minit tak bahas hue aur judge mahoday hamara pakash sunte hua single bench ko direction diya hai ki is case ko jald se jald final 9 april ko kiya jai. And Friends this special appeal ko file karne me kise se koi paise nahi liye gage the aur is case ke name pe bina mujhe aur Ranjeet singh yadav ko call kiye kise ko koi paise na diya jai nahi to iski jimmedari aap ki hogi becase bahut log case ke name par paise wasooli karte hai agar aap koi sahyog karna chahte hai to please contact-8081934675 and Ranjeet yadav-8687508667

Friends hum sab abhi court me hai aur hamare paksh me judge ne quick action nahi lege hue ye daleel diya hai ki single bench me rejoinder affidavit and counter affidavit have been excnanged so this case was listed on 09.04.2012 week commincing so directed the several thousand applicant was effected this order so directed 9 april final hearing.


UPTET : New Date for hearing : 19 April 2012 (Likely ) regarding Stay on PRT Teachers Selection in UP


UPTET : New Date for hearing : 19 April 2012 (Likely ) regarding Stay on PRT Teachers Selection in UP


  

Case Status - Allahabad
Pending
Writ - A : 76039 of 2011 [Varanasi]
Petitioner:
YADAV KAPILDEV LAL BAHADUR
Respondent:
STATE OF U.P. & OTHERS
Counsel (Pet.):
ALOK KUMAR YADAV
Counsel (Res.):
C.S.C.
Category:
Service-Writ Petitions Relating To Primary Education (teaching Staff) (single Bench)-Appointment
Date of Filing:
21/12/2011
Last Listed on:
22/03/2012 in Court No. 33
Next Listing Date (Likely):
19/04/2012

This is not an authentic/certified copy of the information regarding status of a case. Authentic/certified information may be obtained under Chapter VIII Rule 30 of Allahabad High Court Rules. Mistake, if any, may be brought to the notice of OSD (Computer).



Source : http://allahabadhighcourt.in/casestatus/caseDetailA.jsp?type=WRIA&num=76039&year=2011

No Craze for B. Ed. Degree , Reason - NCTE Guideline : BTC are eligible for Primary Teacher, But B. Ed holders are NOT eligible


बीएड में ढाई लाख से अधिक आवेदक घटे
(No Craze for B. Ed. Degree , Reason - NCTE Guideline : BTC are eligible for Primary Teacher, But B. Ed holders are NOT eligible )

इलाहाबाद (ब्यूरो)। बीएड पाठ्यक्रम के प्रति छात्र-छात्राओं का रूझान कम होने लगा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस साल करीब साढ़े चार लाख आवेदन पहुंचे हैं, जबकि पिछले साल यह संख्या सात लाख से अधिक थी।
विशिष्ट बीटीसी के जरिए प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती का दरवाजा खुल जाने के कारण बीएड को निश्चित रोजगार के रूप में देखा जाने लगा था। प्रदेश के कॉलेजों में दाखिला नहीं मिलने के कारण हजारों युवकों ने दूसरे राज्यों से बीएड किया लेकिन शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) में धांधली के कारण पिछली भर्ती विवादों में घिर गई है
इसके अलावा एनसीटीई ने बीएड डिग्रीधारकों के प्राथमिक शिक्षक के पद पर भर्ती पर भी रोक लगा दी है। इसके तहत आगे से बीटीसी करने वाले ही प्राथमिक शिक्षक बन सकेंगे
इसके मद्देनजर बीएड पाठ्यक्रम के प्रति भी युवकों का तेजी से रूझान कम हुआ है। उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. रामानंद प्रसाद ने बताया कि पिछले साल की तुलना में ही इस साल ढाई लाख से अधिक आवेदक घट गए हैं

News : Amar Ujala (6.4.12)

Thursday, April 5, 2012

UPTET News : TET Candidates Meeting with CM Akhilesh Yadav jee resulted in positive conclusions

टीईटी के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में समिति(UPTET News : TET Candidates Meeting with CM Akhilesh Yadav jee resulted in positive conclusions )

लखनऊ, जाब्यू : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यूपीटीईटी-2011 की परीक्षा के सभी पहलुओं पर विचार करने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने का निर्देश दिया है। यह समिति तीन सप्ताह में संस्तुति प्रस्तुत करेगी।
टीईटी अभ्यर्थियों के एक प्रतिनिधिमण्डल ने गुरुवार को मुख्यमंत्री से उनके सरकारी आवास पर मुलाकात की। इस दौरान मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि उनकी समस्याओं का निराकरण जल्द ही किया जाएगा। प्रतिनिधिमण्डल ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि इस परीक्षा में बैठने वाले लाखों युवाओं के भविष्य को अंधकारमय होने से बचा लें। 2011 की परीक्षा को कथित अनियमितताओं के कारण रद न किया जाए, क्योंकि इसमें अधिकाश अभ्यर्थियों का कोई हाथ नहीं है।

प्रतिनिधिमण्डल के सदस्यों ने कहा कि कुछ अधिकारियों और चंद अभ्यर्थियों की गलतियों की सजा लाखों अभ्यर्थियों को नहीं मिलनी चाहिए। इन लोगों ने यह भी कहा कि नौ नवम्बर, 2011 को उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा अध्यापक सेवा नियमावली में किए गए 12वें संशोधन को भी यथावत बनाए रखना चाहिए, क्योंकि मेरिट पर आधारित यह व्यवस्था पूर्व में प्रचलित शैक्षणिक योग्यता के आधार पर अंक देकर चयन करने से ज्यादा बेहतर एवं पारदर्शी है।

News : Jagran (5.4.12)

UPTET Mirjapur: TET candidates depressed


टीईटी उत्तीर्ण छात्र फिलहाल हताश
(UPTET Mirjapur: TET candidates depressed )

However , Today TET Sangarsh Morcha meet with CM Akhilesh Yadav jee , And positive indications received that Govt. will do its best to help in justice for candidates.
But status is NOT yet clear and it is believed only assurance. As matter depends on High court and investigation in TET Scam. 

See News :

मीरजापुर : जनपद में टीईटी (अध्यापक पात्रता परीक्षा) उत्तीर्ण करने वाले छात्रों में इस समय हताशा का दौर है। किसी भी प्रकार का निर्णय न होने से वह संगठित होकर अपनी आवाज उठाने की तैयारी कर रहे हैं। प्रदेश स्तर पर इसके लिए आवाज उठायी जा चुकी है और मांग की गई है कि जिन बिंदुओं पर टीईटी आयोजित की गई थी उसी के अनुसार ही नियुक्ति की जाय। जहां तक जनपद की बात है तो दोनो पूर्व माध्यमिक व प्राथमिक मिलाकर तकरीबन पांच हजार लोगों ने यह परीक्षा उत्तीण की थी। वहीं रिक्तियों की संख्या भी जनपद में हजारों में है। इसलिए लोगों को यह उम्मीद थी कि पांच वर्षो के दौरान सभी सफल अभ्यर्थियों की तैनाती हो जायेगी, चूंकि इस परीक्षा में सफल होने वालों को पांच वर्ष की वैधता दी गई थी। इसलिए सभी निश्चिंत थे लेकिन ऐन वक्त पर घोटालों का भंडाफोड़ होने से पूरी प्रक्रिया ही बाधित हो गई। अब दिन प्रति दिन खिसकते समय से यह एक मुद्दा बनता जा रहा है।

इस प्रक्रिया में शामिल अधिकांश छात्र यह मान चुके हैं कि उनकी नियुक्ति अब नहीं होनी है। उनकी मांग है कि जनपदवार आवेदन के लिए जो पांच सौ रुपये मांगे गये थे वह उनको वापस कर दिया जाय। कोई निश्चित दिशा निर्देश न होने के कारण पहले तो प्रति जनपद पांच सौ रुपया मांगा गया और फिर अंत में जब हो हल्ला मचा तो एक बार पांच सौ रुपया जमा करके कितने भी जनपद के लिए आवेदन करने की अनुमति प्रदान की गई और कहा गया कि पहले जितने लोगों ने अधिक पैसा दिया है उन सभी का पांच सौ के अतिरिक्त धन वापस कर दिया जायेगा लेकिन ऐसा भी नहीं किया गया। श्रीश रंजन द्विवेदी, प्रशांत सिंह, गजेंद्र सिंह, कोमल यादव, कृष्णानंद व अन्य का कहना है कि उन लोगों ने पांच जनपदों के लिए पांच पांच सौ रुपया जमा किया लेकिन अब शिक्षा विभाग इस पैसे को डकार जाना चाहता है। एक तो नियुक्ति पर कोई फैसला नहीं हो रहा है और पैसों की बाबत भी कोई निर्देश नहीं दिया जा रहा है। अमूमन सभी सफल अभ्यर्थियों ने पहले दौर में पांच जनपदों का विकल्प दिया था। इस हिसाब से यदि पांच हजार की संख्या ऐसे अभ्यर्थियों की रखी जाय तो यह राशि तकरीबन सवा करोड़ रुपये के आस पास आती है। ध्यान रहे यह धन मात्र एक जनपद मीरजापुर के अभ्यर्थियों का है। यदि पूरे प्रदेश का जोड़ा जाय तो समझा जा सकता है कि कितने बेरोजगारों का धन सरकार दबा कर बैठी हुई है। आंदोलन की बात कही जा रही है


News : Jagran (5.4.12)

UPTET : No Job, At least extra money should be return to Candidates



नोकरी तो मिली नहीं , कम से कम अतिरिक्त पैसे तो वापिस किये जाएँ
(UPTET : No Job, At least extra money should be return to Candidates )

अतिरिक्त 2000 रूपए की मांग
बहुत से अभ्यर्थीओं ने 5 जिलों में आवेदन करते वक्त 5 ड्राफ्ट ( रूपए 500 प्रत्येक ) लगाये थे , व् कोर्ट के आदेशनुसार सिर्फ एक ड्राफ्ट (रूपए ५०० ) को मूल ड्राफ्ट मानते हुए बाकि सभी रूपए वापिस करने के निर्देश दीये गए थे |

लेकिन इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है की वे कब व् कैसे लोटाये जायेंगे |

बेरोजगारों के लिये एक एक पैसे का बहुत महत्व होता है 


UPTET : Special Appeal against stay for recruitment of teachers in UP


UPTET : Special Appeal against stay for recruitment of teachers in UP 



Case Status - Allahabad
Pending
Special Appeal Defective : 280 of 2012 [Varanasi]
Petitioner:
LALIT MOHAN SINGH AND ANR.
Respondent:
STATE OF U.P. AND OTHERS
Counsel (Pet.):
SIDDHARTH KHARE
Counsel (Res.):
C.S.C.
Category:
Special Appeals Special Appeals-Against Final Order Of Single Judge In Writ Petition
Date of Filing:
04/04/2012
Last Listed on:

Next Listing Date (Likely):
06/04/2012

This is not an authentic/certified copy of the information regarding status of a case. Authentic/certified information may be obtained under Chapter VIII Rule 30 of Allahabad High Court Rules. Mistake, if any, may be brought to the notice of OSD (Computer).


Tomorrow is Good Friday, May be hearing not possible. Still we will see what happens.


UPTET MORCHA said...







इलाहाबाद।
उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा के जरिये बेसिक शिक्षा परिषद्‌ के 72825 सहायक शिक्षकों की भर्ती पर लगी रोक के खिलाफ हाईकोर्ट मे स्पेशल अपील दायर की गई है।
ललित मोहन सिंह और रंजीत सिंह यादव की ओर से
बुद्धवार को हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे जी ने अपील दायर की गई |

SOURCE-
HINDUSTAN DAINIK....



As per informed by Vivekanand jee (President , UPTET Sangarsh Morcha) -
Tet Dharko ko bahut bahut badai aap sabhi ke sahyog se aaj hum log C.M. Se mile aur unka kafi had tak rukh hamare paksh me hai C.M. ne kaha lagbag 3 week me nirnaya liya jayega aur nirnaya lete time TET Merit dharko ka hit bhe dhyan me rakha jayega. but in bato se aap sant na baithe sangathit rahe because kabhi bhe rukh badal sakta hai kyuki c.m. je kahe ki janch ki report aane par koi nirnaya lege aur abhi hum kah nahi sakte ki janch me kya hogo isliye abhi bhe sangathit rahe aur kabhi bhe aandonal ke liye taiyar rahe ant me c.m ji ko thanks.




As per my personal view -

If TET candidates can file PIL (Public Interest Litigation ) in supreme court (SC) -
As TET qualified/merit candidate's applied within NCTE deadline and eligible for appointment as per Govt. order, then matter can be in their favor automatically.

PIL  in Supreme Court is to reduce time for appointment, else if matter goes in Highcourt then it may come to SC to challenge Highcourt decision.

PIL can be applied in Supreme Court directly for mass / public interest in larger.

Otherwise candidate's can face NCTE and new Government order (if any comes) problems.

UPTET : TET Morcha Meeting with UP C.M Akhilesh Jee



टी ई टी प्रतिनिधी मंडल की सी. एम्. अखिलेश जी से वार्ता 
(UPTET : TET Morcha Meeting with UP C.M Akhilesh Jee )

आज टीईटी प्रतिनिधी मंडल की उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव जी से वार्ता हुई और वार्ता सफल रही , ऐसा सूत्रों के हवाले से खबर है |

उन्होंने मान लिया की भर्ती टीईटी मेरिट से पूर्व निर्धारित प्रक्रिया  से ही की जायेगी हालाँकि अभी ओफिसिअल एनाऊन्स्मेंट आना बाकि है , वही बताएगा की वास्तविकता क्या है 


Another Article By Blog Visitor Mr. Shyam Dev Mishra regarding UPTET (Uttar Pradesh Teacher Eligibility Test )


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प्रेषक: Shyam Dev Mishra <shyamdevmishra@gmail.com>
दिनांक: 5 अप्रैल 2012 1:36 am
विषय: Matter for publishing on blog
प्रति: Muskan India <muskan24by7@gmail.com

दिनांक 5 अप्रैल 2012
सेवा में,
1. माननीय मुख्यमंत्री महोदय, उत्तर प्रदेश सरकार, लखनऊ,
2. माननीय मंत्री महोदय, बेसिक शिक्षा, उत्तर प्रदेश सरकार, लखनऊ,
3. सचिव, बेसिक शिक्षा, उ.प्र. शासन व पदेन अध्यक्ष, उ.प्र. राज्य-स्तरीय टी.ई.टी. स्टीयरिंग कमेटी
4. राज्य परियोजना निदेशक, उ.प्र.सर्व शिक्षा अभियान व पदेन सदस्य, उ.प्र. राज्य-    
    स्तरीय टी.ई.टी. स्टीयरिंग कमेटी
5. शिक्षा निदेशक (माध्यमिक), उत्तर प्रदेश व पदेन सदस्य, उ.प्र. राज्य-स्तरीय टी.ई.टी.  स्टीयरिंग
  कमेटी
6. शिक्षा निदेशक (बेसिक), उत्तर प्रदेश व पदेन सदस्य, उ.प्र. राज्य-स्तरीय टी.ई.टी. स्टीयरिंग कमेटी
7. निदेशक, राज्य शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद्, उ.प्र., लखनऊ, व
    पदेन सचिव, उ.प्र. राज्य-स्तरीय टी.ई.टी. स्टीयरिंग कमेटी  
8. सचिव, बेसिक शिक्षा परिषद्, उ.प्र., लखनऊ व पदेन सदस्य, उ.प्र. राज्य-स्तरीय टी.ई.टी. स्टीयरिंग
  कमेटी
9. सचिव, माध्यमिक शिक्षा परिषद्, उ.प्र., लखनऊ व पदेन सदस्य सचिव , उ.प्र. राज्य-स्तरीय टी.ई.टी.
    स्टीयरिंग कमेटी
महोदय,
विषय:  उत्तर प्रदेश अध्यापक पात्रता परीक्षा (यू.पी.टी.ई.टी.) 2011  व 72825  प्राथमिक अध्यापकों की भर्ती 
           प्रक्रिया  में हो रहे विलम्ब से शिक्षा का अधिकार अधिनियम के उद्देश्यों में पड़ रही बाधा एवं लाखों 
           शिक्षित और योग्य बेरोजगार अभ्यर्थियों के साथ हो रहे खिलवाड़ के सन्दर्भ में.

उत्तर प्रदेश अध्यापक पात्रता परीक्षा (यू.पी.टी.ई.टी.) 2011  व 72825  प्राथमिक अध्यापकों की भर्ती-प्रक्रिया पर रोज़-ब-रोज़ गहरा रहे अनिश्चितता के अंधकार, प्रदेश के तीन लाख पढ़े-लिखे और प्रतिभाशाली युवाओं के साथ हो रहे अन्याय और शिक्षा का अधिकार अधिनियम के उद्देश्यों के साथ पिछले नवम्बर से हो रहे खिलवाड़ और भविष्य की भयावह तस्वीर हर सामाजिक सरोकार से वास्ता रखनेवाले किसी और जिम्मेदार नागरिक की तरह तरह मुझे भी उद्वेलित और प्रेरित करती है  कि यथासंभव वो तथ्य और दृष्टिकोण सम्बंधित अधिकारियों के संज्ञान में लाये जाएँ जो मुझ जैसा कोई सामान्य-बुद्धि का व्यक्ति  भी समझ सकता है.  
अख़बार में आई ख़बरों के मुताबिक आगामी 11.04.2012 को होने वाली राज्य-स्तरीय टी.ई.टी. स्टीयरिंग कमिटी की होने वाली बैठक में होने वाले विमर्श, उसकी महत्त और उत्तर-प्रदेश की शैक्षणिक-व्यवस्था पर उसके होने वाले प्रभावों को ध्यान में रखते हुए अपेक्षा करता हूँ कि आप अपने व्यस्त दिनचर्या में से कुछ समय निकाल कर एक बार इसे गंभीरता से पढ़ें  और आपस में विचार-विमर्श कर आगे की कार्यवाही के  सम्बन्ध में  समय रहते निर्णय लें. इस समूचे प्रकरण  के अवलोकन, सम्बंधित नियमों और निर्णयों के अध्ययन, अभ्यर्थियों से विचार-विमर्श और क़ानूनी सलाह के उपरांत आपसे अपने विचार साझा करना चाहता हूँ, पर हाँ, इतना फिर कहूँगा कि ये  पूर्णतया  मेरे निजी  विचार हैं जिनसे सहमत  होना न होना आपके विवेक पर निर्भर करता है.
प्रदेश की पहली अध्यापक पात्रता परीक्षा (टी.ई.टी.) व 72 ,825  प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती-प्रक्रिया पर मंडरा रही अनिश्चितता की स्थिति मात्र व्यवस्था की विसंगति ही नहीं है, बल्कि टी.ई.टी. उत्तीर्ण लगभग 3  लाख प्रतिभावान अभ्यर्थियों के भविष्य, प्रदेश के शैक्षणिक ढांचे और शिक्षा का अधिकार के सन्दर्भ में एक चिंतनीय मुद्दा है. सार्वजनिक हित और शिक्षा के अधिकार अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति के साथ-साथ कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए भी अब अपरिहार्य हो गया है कि यथाशीघ्र इस गंभीर मुद्दे का सर्व-स्वीकार्य हल निकले ताकि पूर्व-निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत अध्यापकों की भर्ती हो और प्रदेश के करोड़ों बच्चों को मिला शिक्षा का अधिकार राजनैतिक उठापटक के बीच दबकर न रह जाये.

 इस समय इस सारे मसले के दो पहलू हैं, पहला है टी.ई.टी. निरस्त होने के आसार, और दूसरा है, भर्ती-प्रक्रिया के निरस्त होने के आसार. यहाँ ध्यान दें कि ये दोनों पहलू पूर्णतया अलग-अलग हैं. टी.ई.टी. निरस्त होने, भर्ती-प्रक्रिया रद्द होने, भर्ती का आधार पुनः बदलने के लिए फिर से उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन करने, और इसके विरुद्ध प्रदेश-भर में हो रहे धरना-प्रदर्शनों और अभ्यर्थियों द्वारा न्यायलय की शरण लेने की तैयारी की चर्चाओं के बीच स्थिति के व्यापक एवं कानूनी पहलुओं को देखना आवश्यक है.

1. टी.ई.टी. परीक्षा निरस्त होने के आसार एवं इसके अन्य पक्ष:


सौ गुनाहगार भले छूट जाएँ पर एक बेगुनाह को सज़ा नहीं दी जा सकती- ये हमारी न्याय-व्यवस्थ का सर्वमान्य सिद्धांत है. भारत सरकार द्वारा अधिकृत शैक्षणिक प्राधिकारी एन.सी.टी.ई. द्वारा अध्यापक के तौर पर नियुक्ति के लिए निर्धारित न्यूनतम योग्यता रखने वाले और एन.सी.टी.ई. के दिशा-निर्देशों के अनुसार राज्य-सरकार ( यहाँ सपा सरकार या बसपा सरकार नहीं, उत्तर प्रदेश सरकार से आशय है) द्वारा आयोजित टी.ई.टी. को उत्तीर्ण करने वाले अधायपक के तौर पर नियुक्ति के लिए आवेदन करने के पात्र हैं. यदि राज्य-सरकार या उसके इशारे पर शासन टी.ई.टी. को परिणामों में हुई गड़बड़ी के आधार पर रद्द करते हैं तो इस निर्णय को न सिर्फ न्यायलय में चुनौती मिलनी तय है बल्कि यह भी तय है कि अब तक हर प्रक्रिया को लापरवाही से लेनेवाली सरकार का यह आधारहीन निर्णय  भी न्यायालय में मुह की खायेगा. यहाँ ध्यान दें कि यह परीक्षा एन.सी.टी.ई. के दिशा-निर्देशों के अनुसार हुई जिसकी रिपोर्ट भी नियमतः एन.सी.टी.ई. को परीक्षा संस्था / राज्य सरकार द्वारा दी जानी थी. अब एक नियम-सम्मत तरीके से परीक्षा हुई, आठ लाख से ज्यादा उम्मेदवार परीक्षा में सम्मिलित हुए, तीन से चार लाख लोग उत्तीर्ण हुए, माध्यमिक शिक्षा परिषद् के साथ साथ उत्तर-पुस्तिका की कार्बन-कापियां अभ्यर्थियों के भी पास हैं, वेबसाइट पर आंसर-की के साथ साथ सभी परीक्षार्थियों के परिणाम हैं वो भी उच्च न्यायालय के निर्देश पर हुए संशोधनों के साथ, लोगो को प्रमाणपत्र भी वितरित कर दिए गए जो एन.सी.टी.ई. के नियमानुसार अगले पांच वर्षों तक वैध हैं और धारक को अध्यापक के  तौर पे नियुक्ति के लिए आवेदन के लिए अर्ह बनाते हैं. ऐसे में यदि माध्यमिक शिक्षा निदेशक पर तथाकथित रूप से कुछ गिनती के परीक्षार्थियों के परिणामों में धांधली की जाती है तो जाँच के द्वारा दोषियों का पता लगाकर उन्हें दण्डित करने के बजाय जब सारा का सारा बेसिक शिक्षा विभाग, माध्यमिक शिक्षा परिषद् और सम्पूर्ण शासन-प्रशासन लाखों ईमानदार और योग्य उत्तीर्ण उम्मीदवारों पर पड़ने वाले प्रभाव तथा इसके कारण करोडो बच्चों को मिले अनिवार्य शिक्षा के अधिकारों के अवश्यम्भावी हनन को  जान-बूझकर अनदेखा करते हुए एक सुर से सम्पूर्ण परीक्षा को ही निरस्त करने का राग अलापना शुरू कर दें तो यह यह न सिर्फ अनैतिक व अन्यायपूर्ण प्रतीत होता है बल्कि संदेह भी पैदा करता है कि कहीं यह कुछ परीक्षार्थियों के परिणामों में हुई हेरा-फेरी के असली दोषियों और उनके आकाओं को बचाने का प्रयास तो नहीं है?  अब इस टी.ई.टी. के रद्द होने से एन.सी.टी.ई. द्वारा दी गई समयसीमा के समाप्त हो जाने के मद्देनज़र अगली प्राथमिक स्तर की टी.ई.टी. के लिए अर्ह उम्मीदवार ही उपलब्ध नहीं होंगे और प्राथमिक स्कूलों में वांछित छात्र-शिक्षक अनुपात के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आवश्यक संख्या में अध्यापकों की नियुक्ति केवल अभी ही नहीं, आनेवाले कई सालों तक नहीं हो पायेगी क्यूंकि बी.एड. अभ्यर्थियों की अर्हता समाप्त हो जाने से अर्ह उम्मीदवारों की भरी कमी हो जाएगी. राज्य सरकार भले इस दृष्टिकोण को अनदेखा करे पर अर्ह उम्मीदवारों की इसी कमी को देखते हुए एन.सी.टी.ई. ने अपनी 23 अगस्त 2010 की  अधिसूचना में  प्राथमिक स्तर पर अध्यापक के तौर पे बी.एड. योग्यता को भी समयसीमा के साथ अनुमन्य किया था. परीक्षा रद्द होने का यह निर्णय अभ्यर्थियों के साथ साथ करोड़ों बच्चों को मिले शिक्षा के अनिवार्य अधिकारों को भी अनिश्चितता की एक अंधी सुरंग में ले जायेगा जहा से निकलने का रास्ता खुद सरकार के पास भी न होगा. पहले भी इसी तरह के बे-सर-पैर के प्रशासनिक निर्णयों से यह सारी प्रक्रिया विवादों में फंसी हुई है.

जबकि बोर्ड और परीक्षार्थी, दोनों के पास ही उत्तर-पुस्तिकाओ की प्रति है तो परिणामों में धांधली का संदेह होने पर पुनर्मूल्यांकन द्वारा परिणामों में संशोधन करना न्यायसंगत है नाकि मात्र संदेह के आधार पर सम्पूर्ण परीक्षा को ही निरस्त कर देना. अगर शासन ऐसा करता है तो अगली परीक्षा के परिणामों में गड़बड़ी का आरोप तक नहीं लगेगा, इस बात की गारंटी कौन देगा? क्या अगली बार आरोप लगते ही शासन फिर से परीक्षा निरस्त करेगा? साथ ही यह भी गौर करने लायक है कि जब कुछ अभ्यर्थियों के अंक बढ़ाने के लिए निदेशक स्तर पर धांधली की जा सकती है तो फिर लाखों असफल अभ्यर्थियों में से कईयों द्वारा येन-केन-प्रकारेण परीक्षा रद्द कराने के लिए भी शासन स्तर पर धांधली किये जाने की संभावना से कैसे इंकार किया जा सकता है? और जब शासन बिना किसी ठोस कारण या न्यायसंगत आधार के परीक्षा रद्द करने पर आमादा हो जाये तो इस संभावना को और भी बल मिलता है. इन आधारहीन कारणों से पूरी परीक्षा निरस्त करना सफल, ईमानदार और योग्य परीक्षार्थियों पर आक्षेप और अन्याय है और सर्वथा अस्वीकार्य है.

ऐसे में टी.ई.टी. उत्तीर्ण अभ्यर्थी अपनी उत्तर-पुस्तिका की कार्बन-कापियों के आधार पर न्यायालय में अपने परिणामो को उचित, न्यायोचित साबित कर इस प्रशासनिक ज्यादती से इस परीक्षा, प्रमाणपत्र और अपनी अर्हता को बचा सकते है. परीक्षा रद्द होने की स्थिति में अभ्यर्थी इसे अपने मौलिक अधिकारों के हनन के रूप में लेकर यदि न्यायालय से रहत मांगते हैं तो सरकार की भद्द पिटनी तय है. यहाँ परीक्षा निरस्त करने के पूर्व शासन को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा सत्यपाल सिंह व अन्य बनाम यूनियन ऑफ़ इण्डिया व अन्य ( रिट अ स. 1337 / 2012 ) के मामले में 12.01.2012 को दिए गए निर्णय पर गौर करना चाहिए जिसमे कहा गया है की याचिकाकर्ता द्वारा परीक्षा संस्था पर अनुचित तरीके अपनाने और अपात्रों का अवैधानिक रूप से चयन करने का दोषी होने का आरोप बिना किसी स्पष्ट आधार के लगाया गया है जो न सिर्फ परीक्षा-संस्था बल्कि उन लाखो अभ्यर्थियों की गरिमा पर आघात है जो इस परीक्षा में नियमतः शामिल और योग्यता के आधार पर  उत्तीर्ण हुए हैं. न्यायालय ने इस प्रकार के के आधारहीन आक्षेपों लगाने की प्रवृत्ति को गंभीरता से लेते हुए याचिकाकर्ता पर साढ़े चार लाख रुपये का अर्थदंड लगाते हुए अंतिम रूप से हर अभ्यर्थी को एक रुपया भुगतान करने का निर्णय दिया.   
उल्लेखनीय है कि शासन-प्रशासन और अधिकारयों के द्वारा की जाने वाली लापरवाहियों और अविवेकपूर्ण कृत्यों की वजह से अभ्यर्थियों और स्वयं प्रक्रिया, प्रक्रिया के उद्देश्यों पर ही नहीं, कोर्ट का अत्यधिक समय इस प्रकार की याचिकाओं में बर्बाद होने से न्याय के इंतज़ार में बैठे करोडो लोगो को होने वाली असुविधा को रेखांकित करते हुए माननीय उच्च न्यायालय ने स्पेशल अपील संख्या 553 / 2006, संतोष कुमार शुक्ल व अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ यू. पी. व अन्य तथा  सम्बद्ध अन्य याचिकाओ के संयुक्त निपटारे में 31.08.2007 के आदेश में स्पष्ट रूप से परीक्षा आदि करने वाले प्राधिकारियों की भूमिका पर गहरा असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि यदि इन प्राधिकारियों ने सावधानी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और सीधे तरीके से अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह किया होता तो परीक्षाओं पर इस प्रकार उंगलियाँ न उठाई जाती.  कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए शासन को निर्देश दिया कि जाँच के उपरांत दोषी अधिकारियों को ऐसी सज़ा दी जाये जो उनके लिए ही नहीं, औरों के लिए भी सबक साबित हो.

यहाँ गौरतलब है कि टी.ई.टी. पर विवाद प्रक्रिया, नियमो का उल्लंघन, कानूनी व तकनीकी अड़चन और अनुचित साधनों के इस्तेमाल आदि के आरोपों के कारण नहीं बल्कि कथित रूप से स्वयं माध्यमिक शिक्षा निदेशक द्वारा कुछ अभ्यर्थियों को लाभ पहुचने के उद्देश्य से परिणामो में की गई गड़बड़ी के आरोपों के कारण है. मामले की जांच अभी चल रही है पर इस मामले में ईमानदार अभ्यर्थियों के हाथों में अपनी बेगुनाही, योग्यता और परिणामों की वैधता का स्वयंसिद्ध प्रमाण अपनी उत्तर-पुस्तिका के रूप में मौजूद है जिसे शासन भले ही अपने निहित उद्देश्यों के लिए अनदेखा करे या महत्वहीन माने, पर कोर्ट में यह तुरुप का इक्का साबित होगा. अब अगर सरकार सारे तर्कों को अनदेखा कर यदि परीक्षा निरस्त करती है तो प्रत्येक टी.ई.टी. उत्तीर्ण परीक्षार्थी कोर्ट में उत्तर-पुस्तिका की कार्बन-कापी के आधार पर अपने परीक्षा परिणाम को अपनी योग्यता और दिए गए उत्तरों के अनुसार सही साबित कर अपने परिणाम को बचा सकता है. साथ ही जिन परीक्षार्थियों के पास कार्बन-कापी नहीं है और अगर है तो अपठनीय है तो भी शासन पर सिद्ध करने का भार होगा की उन्होंने अनुचित तरीके से परीक्षा उत्तीर्ण की है या अंक प्राप्त किये हैं जो कि शासन के लिए सर्वथा असंभव है. ऐसी  स्थिति में शासन की फजीहत होनी तय है. यहाँ यह भी संभव है की न्यायालय केवल उन्हें राहत प्रदान करे जो परीक्षा निरस्त होने की स्थिति में कोर्ट जाते हैं. इस सन्दर्भ में न्यायालय द्वारा हाल ही में की गई टिप्पणी "कानून जगे हुओं की मदद करता है!" गौरतलब है. वैसे इस मुद्दे पर कानूनी रूप से मजबूत टी.ई.टी. उत्तीर्ण अभ्यर्थियों का सरकार द्वारा परीक्षा रद्द होने की स्थिति में कोर्ट जाना तय है क्योंकि जहाँ प्राथमिक स्तरीय टी.ई.टी. प्रमाणपत्र जहाँ उन्हें मौजूदा भर्ती के लिए अर्ह बनाता है वहीँ उच्च-प्राथमिक स्तरीय टी.ई.टी. प्रमाणपत्र आनेवाले पांच सालों तक होने वाली भर्तियों के लिए अर्हता प्रदान करता है. परीक्षा रद्द होने से न सिर्फ उनकी अर्हता जाती है बल्कि उन्हें तकनीकी रूप से अनुचित साधनों के प्रयोग के द्वारा प्रमाणपत्र हासिल करने का दोषी सिद्ध   करता है. ऐसे में जब एन.सी.टी.ई. द्वारा कक्षा एक से पांच तक  के अध्यापकों के तौर पर बी.एड. डिग्रीधारकों की नियुक्ति के लिए दी गई समयसीमा 31.12.2011 को समाप्त हो चुकी है, बी.एड. डिग्रीधारक कक्षा छः से आठ के लिए होनेवाली  प्रस्तावित नियुक्ति के लिए अर्हता प्रदान करने वाली इस परीक्षा को रद्द होने से बचाने के लिए निश्चित तौर पे न्यायालय का रुख करेंगे.
कानूनी सलाह के अनुसार टी.ई.टी. निरस्त होने की दशा में अभ्यर्थी यदि चाहें तो अकेले और चाहें तो बड़े समूह के रूप में टी.ई.टी. के आयोजन से सम्बंधित विज्ञापन, अपने प्रवेशपत्र, अपनी उत्तर पुस्तिका की कार्बन-कापी (पठनीय या अपठनीय दोनों मान्य होंगी क्यूंकि यह बोर्ड के पास उस कोड या नंबर की कापी जमा करने का प्रमाण है जिसे पठनीय दशा में प्रस्तुत करना बोर्ड का दायित्व होगा) और अपने प्रमाणपत्र के साथ कोर्ट में राज्य-सरकार के निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दे कर अपना हक़ और अपनी गरिमा बचा सकते हैं. वैसे गौरतलब है अभ्यर्थी परीक्षा रद्द होने की स्थिति में बड़े समूह के रूप में न्यायालय जाने का मन बना चुके हैं. बड़े से बड़े समूह के रूप में कोर्ट जाने का सबसे बड़ा फायदा  प्रतिव्यक्ति आनेवाले खर्च में कमी के रूप में होगा. जहाँ तक कई साथियों द्वारा सीधे सुप्रीम कोर्ट जाने की राय दिए जाने का सवाल है, यह तभी संभव है जब हाईकोर्ट याचिका ख़ारिज करे या विरोध में निर्णय दे.  अतः पहले अभ्यर्थियों को हाईकोर्ट ही जाना होगा.
यहाँ यह भी गौर करना चाहिए की टी.ई.टी. के रद्द होने से एन.सी.टी.ई. द्वारा दी गई समयसीमा के समाप्त हो जाने के मद्देनज़र अगली प्राथमिक स्तर की टी.ई.टी. के लिए अर्ह उम्मीदवार ही उपलब्ध नहीं होंगे और प्राथमिक स्कूलों में वांछित छात्र-शिक्षक अनुपात के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आवश्यक संख्या में अध्यापकों की नियुक्ति न होने से करोड़ों बच्चों को मिले मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का गंभीर उल्लंघन होना तय है. द राईट ऑफ़ चाइल्ड  टू फ्री  एंड  कम्पलसरी  एजुकेशन एक्ट, 2009, के सेक्शन 31 के अंतर्गत राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को अधिकृत करते हैं कि वे शिक्षा के अधिकार अधिनियम के द्वारा और अंतर्गत आनेवाले सुरक्षात्मक प्रावधानों की जांच और समीक्षा करें और उनके प्रभावी परिपालन के लिए  तरीके  सुझाएँ. साथ ही उन्हें शिक्षा के अधिकार से सबंधित शिकायतों की जांच करने और बच्चों के शिक्षा के अधिकार के संरक्षण के लिए उचित कदम उठाने का अधिकार भी दिया गया है. वहीँ द राईट ऑफ़ चाइल्ड टू फ्री एंड कम्पलसरी एजुकेशन एक्ट, 2009, सेक्शन 35  के अंतर्गत केद्रीय सरकार को अधिकार दिया गया है कि वो राज्य सरकार को शिक्षा के अधिकार के प्रावधानों के उद्देश्यों के परिपालन के लिए दिशा-निर्देश जारी कर सकती है. ऐसे में कोई भी जिम्मेदार नागरिक इस सन्दर्भ में केद्रीय सरकार और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को  भी शिकायत भेज सकता है.

2. भर्ती-प्रक्रिया निरस्त होने के आसार व इसके अन्य पक्ष:


जहाँ तक भर्ती-प्रक्रिया का सवाल है, इसको निरस्त करने की पैरवी करनेवाले लोग और उनके पक्षधर माध्यमो, जिनमे कुछ पूर्वाग्रह-ग्रस्त मीडिया संगठन भी हैं, द्वारा लगातार प्रलाप किया जा रहा है की एन.सी.टी.ई. ने टी.ई.टी. को "सिर्फ" अर्हता परीक्षा के तौर पर निर्धारित किया है, अतः मात्र टी.ई.टी. के प्राप्तांकों के आधार पर चयन सर्वथा नियमविरुद्ध है. आज इस सुर में बोलने वाले बेसिक शिक्षा विभाग, माध्यमिक शिक्षा परिषद्, बेसिक शिक्षा सचिव, एस.सी.ई.आर.टी. और एकदम से ज्ञान-सागर बन बैठे प्रशासनिक अमले के दिमाग में तब क्या खराबी अ गई थी जब अभी तीन-चार महीने पहले वो खुद टी.ई.टी. प्राप्तांको के आधार पर चयन के लिए नियमों में संशोधन करने की प्रक्रिया के भागीदार थे? अगर मान भी लिया जाये की वे तब गलत थे तो क्या उनके खिलाफ क्या जांच होगी की किन परिस्थितियों में उन्होंने  नियम-विरुद्ध तरीके से भर्ती-प्रक्रिया निर्धारित और प्रारंभ की और क्या उनके विरुद्ध न्यायिक या दंडात्मक कार्यवाही होगी? और क्या ये सवाल लाजिमी नहीं कि क्या वे आज जबरदस्ती चयन-प्रक्रिया के बीच में ही चाय का आधार  किसी लोभ या दबाव या व्यक्ति-विशेष या समूह-विशेष के लाभ के लिए बदलने पर आमादा है?
वास्तव में एन.सी.टी.ई. द्वारा 11.02 .2011 को टी.ई.टी. के सम्बन्ध में दिए गए दिश-निर्देशों में स्पष्ट किया गया है कि अध्यापको की नियुक्ति में टी.ई.टी. प्राप्तांको को वेटेज दिया जाना चाहिए. इसकी अनिवार्यता को स्पष्ट करते हुए ही एन.सी.टी.ई. ने टी.ई.टी. उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को अपने प्राप्तांकों (स्कोर) में सुधार के उद्देश्य से फिर से टी.ई.टी. में सम्मिलित होने की अनुमति देने का प्रावधान किया गया है.  अगर टी.ई.टी. प्राप्तांक की चयन प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं है तो उसमे सुधार के लिए दोबारा कोई परीक्षा में क्यों बैठेगा? क्या टी.ई.टी. को मात्र और मात्र अर्हता परीक्षा बताने वाले इस प्रावधान और इस प्रावधान के किये जाने के उद्देश्य को इरादतन और जान-बूझकर अनदेखा नहीं कर रहे और सम्बंधित पक्षों को गुमराह नहीं कर रहे? 
  इस सन्दर्भ में इंडियन एक्सप्रेस के पहली अप्रैल 2012  के अंक में छपी खबर के हवाले से ये भी बताना चाहूँगा कि मानव-संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अन्य उद्देश्यों के साथ गुणवत्तापरक शिक्षा का उद्देश्य पूरा करने के लिए बनाये गए 10-सूत्रीय एजेंडा में भी अभ्यर्थियों द्वारा टी.ई.टी. में किये गए परफोर्मेंस के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति को भी प्रमुखता से रखा गया है. ऐसे में जब राज्य-सरकार टी.ई.टी. मेरिट द्वारा शिक्षकों के चयन को रद्द कर अकादमिक आधार पर शिक्षकों के चयन के प्रस्ताव को जब मानव संसाधन विकास मंत्रालय की अनुमति के लिए भेजेगी तब उसे अनुमति मिलना तो मुश्किल है पर उस पर पुस्तक-परीक्षा वाली सरकार का धुंधला पड़ चुका ठप्पा फिर से गाढ़ा हो जायेगा. क्या पढ़े-लिखे और प्रगतिशील युवा मुख्यमंत्री इसके लिए तैयार हैं? अगर अफसर उनतक ये हकीकतें नहीं पंहुचा रहे तो उनके हर शुभ-चिन्तक को उनतक ये पहुंचाना चाहिए. वाकई में कई बार राजनेता वही देखते हैं जो उनके मातहत उन्हें दिखाते हैं.
यहाँ एक और बात ध्यान देने योग्य है की अलग-अलग माध्यमों, बोर्डों, और विश्व-विद्यालयों में मूल्याङ्कन प्रणाली में फर्क को स्वयं केंद्र सरकार स्वीकार करती है जिसका प्रमाण केन्द्रीय विज्ञान व तकनीकी मंत्रालय द्वारा 14.06.2011 को जारी किया गया इंस्पायर छात्रवृत्ति के आवेदन का  विज्ञापन है जो 2011 में यू.पी. बोर्ड की बारहवीं कक्षा के परीक्षार्थियों द्वारा प्राप्त 77 प्रतिशत प्राप्तांकों को सी.बी.एस.ई. व आई.सी.एस.ई. के परीक्षार्थियों द्वारा प्राप्त क्रमशः 93.2 प्रतिशत और 93.43  प्रतिशत के समतुल्य मानता है. ऐसे में देखना होगा की मात्र अकादमिक परीक्षाओं के प्राप्तांकों के आधार पर भर्ती का अंध-समर्थन किसी पूर्वाग्रह, दबाव, लोभ या भेद-भाव या किसी व्यक्ति-विशेष या समूह-विशेष को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से तो नहीं किया जा रहा है? विभिन्न बोर्डों के परीक्षार्थियों को ध्यान में रखकर अगर सभी प्रतिभागियों को समानता का अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से एन.सी.टी.ई. के निर्देशानुसार यदि टी.ई.टी. मेरिट को यदि भर्ती का आधार बनाया गया तो इसमें क्या गलत  है कि (रोज अख़बारों में आ रहे समाचारों के anusar) पूरी प्रक्रिया को बदलने की कवायद में सारा प्रशासनिक  अमला लगा हुआ है? हाल ही में माननीय मंत्री महोदय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार  द्वारा पेश किये गए 10-सूत्रीय एजेंडे में भी स्पष्ट रूप से टी.ई.टी. के प्राप्तांकों को आधार बनाकर  अध्यापकों की नियुक्ति का उद्देश्य रखा गया है.
इस सन्दर्भ में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा डा. प्रशांत कुमार दुबे व अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश व अन्य (रिट अ स. 75474 / 2011) मामले में 02.01.2012 को दिया गया निर्णय उल्लेखनीय है जिसमे कहा गया है की टी.ई.टी. के आधार पर चयन के लिए राज्य-सरकार द्वारा 09.11.2011 के शासनादेश के माध्यम से अध्यापक सेवा नियमावली में किया गया 12वां संशोधन पूर्णतया नियमसम्मत है.  कलतक जो राज्य-सरकार (यहाँ सपा व बसपा से मतलब नहीं है) उपरोक्त मामले में इस संशोधन को न्यायालय में जायज ठहरा रही थी, आज किस आधार पर संशोधन को रद्द कर रही है? सर्व-विदित है कि मायावती-शासनकाल में इस सारे मसले पर बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारीयों और शासन के ढीले-ढाले और गैरजिम्मेदाराना रवैये की वजह से ही टी.ई.टी. परीक्षा कराने का निर्णय एन.सी.टी.ई. द्वारा दी गई समय-सीमा ख़त्म होने के ऐन पहले कराइ गई और भर्ती-प्रक्रिया तो तब शुरू की गई जब यह पूरी तरह तय हो चूका था की समय-सीमा के अन्दर प्रक्रिया पूरी हो ही नहीं सकती.

मौजूदा स्थिति में भर्ती-प्रक्रिया के  रद्द होने का अगर कोई वैध कारन नज़र आता है तो वह है एन.सी.टी.ई. द्वारा प्राथमिक स्तर अर्थात कक्षा एक से पांच तक के लिए अध्यापक के तौर पर बी.एड. डिग्री-धारकों की नियुक्ति के लिए दी गई समय-सीमा 31.12.2011 तक भर्ती-प्रक्रिया का पूरा न हो पाना. ऐसी स्थिति में राज्य-सरकार के अनुरोध पर परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एन.सी.टी.ई. इस भर्ती-प्रक्रिया को पूरी करने के लिए समय-सीमा बाधा सकती है पर अभी तक वर्तमान सरकार द्वारा ऐसा कोई अनुरोध किये जाने का अबतक कोई समाचार नहीं मिला है. यदि-राज्य सरकार के अनुरोध पर एन.सी.टी.ई. इस भर्ती-प्रक्रिया को पूरी करने के लिए समयसीमा बढाती है और राज्य-सरकार पूर्व-निर्धारित तरीके से अर्थात टी.ई.टी. मेरिट के आधार पर भर्ती-प्रक्रिया द्वारा अध्यापकों की नियुक्ति करती है तब तो नए सत्र के पूर्व अध्यापकों की नियिक्ति संभव है परन्तु यदि राज्य-सरकार इस प्रक्रिया के बीच में नियमावली में संशोधन करके नए अधर पर चयन करना चाहे तो इसे न्यायलय में चुनौती दिया जाना तय है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा सीताराम व अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश व अन्य (रिट अ स. 71558 / 2011) मामले में 12.12.2011 को दिए गये निर्णय में साफ़ किया गया है कि राज्य-सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, 1981 में राज्य-सरकार द्वारा 09.11.2011  के शासनादेश द्वारा अधिसूचित 12वें संशोधन के द्वारा नियम 14  में किये गये परिवर्तन को वैध और न्यायसंगत ठहराया गया है और स्पष्ट किया गया है कि चूंकि चयन प्रक्रिया का अधिकार राज्य सरकार का है, अतः यह संशोधन किसी भी तरह एन.सी.टी.ई. के दिशा-निर्देशों के विरुद्ध नहीं है.  यहाँ कोर्ट ने के. मंजुश्री बनाम स्टेट ऑफ़ आंध्र प्रदेश (2008 - 3 - एस.सी.सी.512) मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णय का उल्लेख किया है कि खेल (किसी प्रक्रिया) के नियम खेल (प्रक्रिया) शुरू होने के पहले तय हो जाने चाहिए. अतः 29/30 नवम्बर 2011  को इस भर्ती का विज्ञापन जारी होने के पहले 09.11.2011 के शासनादेश द्वारा नियम निर्धारित हो जाने से यह भर्ती प्रक्रिया पूर्णतया न्यायोचित है. यहाँ ध्यान दें कि पहले से चल रही प्रक्रिया के बीच में नियमों में बदलाव को कोर्ट में उचित ठहराना राज्य-सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित होने वाला है.

स्पष्ट है केवल ख़त्म हो चुकी समयसीमा ही राज्य-सरकार को इस भर्ती को रद्द करने का आधार प्रदान करती है. परन्तु यहाँ यह बिंदु ध्यान देने योग्य है की राज्य-सरकार मायावती-शासनकाल में न केवल पदों का सृजन कर चुकी है बल्कि इनकी भर्ती के लिए चयन-प्रक्रिया व नियमो का निर्धारण कर आवेदन-भी आमंत्रित कर चुकी थी. भर्ती-प्रक्रिया पर वर्त्तमान में जो रोक लगी है वह न्यायालय  द्वारा मात्र तकनीकी आधार पर लगे गई है क्यूंकि कपिल देव लाल बहादुर यादव नाम के एक   अभ्यर्थी ने जिला कैडर के पदों पर नियुक्ति के लिए आवेदन आमंत्रित करने का विज्ञापन बेसिक शिक्षा  अधिकारियों के स्थान पर समस्त बेसिक शिक्षा अधिकारियों की ओर से निकाले जाने के खिलाफ  याचिका दायर कर रखी है. यदि न्यायालय यह रोक हटा भी ले तो राज्य-सरकार द्वारा अनुरोध न किये जाने अथवा अनुरोध किये जाने पर भी एन.सी.टी.ई. द्वारा समयसीमा बढ़ाने की अनुमति देने से इंकार करने पर यह भर्ती स्वतः रद्द हो जाएगी.

 भले ही यह स्थिति राज्य-सरकार की मंशा के अनुरूप हो पर यदि वास्तव में राज्य-सरकार ख़त्म हो चुकी समयसीमा का हवाला देकर पहले तो भर्ती-प्रक्रिया रद्द कर दे और अपनी इच्छानुसार नियमों में बदलाव करके भर्ती और  परीक्षा रद्द कर दे और फिर से नए आधार पर एन.सी.टी.ई. से नए सिरे से पूर्ण-रूपेण नयी भर्ती-प्रक्रिया के माध्यम से शिक्षकों की समयसीमा बढ़ाने का अनुरोध करे तो भी इस स्थिति में राज्य-सरकार के लिए नियमों में आकस्मिक और गैर-जरुरी बदलाव, इन  बदलावों के लिए चल रही प्रक्रिया के लिए समयसीमा बढाने के अनुरोध के स्थान पर उसे निरस्त कर एक नए आधार पर फिर से नयी भर्ती-प्रक्रिया प्रक्रिया के आधार पर नियुक्ति के औचित्य जैसे बिदुओं पर एन.सी.टी.ई. या न्यायालय को संतुष्ट कर पाना खासा मुश्किल होगा. और यदि राज्य-सरकार किसी प्रकार अनुमति प्राप्त कर नए आधार पर नई भर्ती-प्रक्रिया प्रारम्भ करे तो कोई कारण नहीं कि उसके प्रारम्भ होने के पूर्व ही समय-सीमा के आधार पर रद्द हुई टी.ई.टी. मेरिट के आधार पर चयन वाली पुरानी भर्ती-प्रक्रिया को बहाल करने की मांग को लेकर आंदोलित बी.एड. व टी.ई.टी. उत्तीर्ण  अभ्यर्थी इस मुद्दे पर कोर्ट न पहुचे. जाहिर है, मात्र समय-सीमा के आधार पर रद्द हुई कोई भी प्रक्रिया समय-सीमा के बढते ही तकनीकी रूप से स्वतः पुनर्जीवित हो जाएगी और ऐसी स्थिति नई भर्ती-प्रक्रिया की आवश्यकता और औचित्य पर सवाल उठाते हुए पुनः नए विवादों को जन्म देगी.

इस स्थिति में राज्य-सरकार, एन.सी.टी.ई., केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय और सबसे बढ़कर शिक्षा के अधिकार का लाभ पाने की आशा लगाये बैठे प्रदेश के करोडो बच्चों सामने एक यक्ष-प्रश्न खड़ा हो जायेगा  कि मात्र साधनों के औचित्य के प्रश्न पर साध्य की आहुति दे देना कहा तक सही है?

यहाँ पुनः ध्यातव्य है कि चूंकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अनुसार शिक्षकों के तौर पर नियुक्ति के लिए टी.ई.टी. की अनिवार्यता से केंद्र सरकार और  एन.सी.टी.ई. भी राहत नहीं दे सकती,  इस भर्ती के रद्द होने की स्थिति में राज्य को आने वाले के सालों तक बेसिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में चल रह शिक्षकों की भारी कमी का सामना करना पड़ेगा. इलाहाबाद हाईकोर्ट रवि प्रकाश व अन्य बनाम स्टेट  ऑफ़ उत्तर प्रदेश व अन्य (रिट पेटीशन स. 59542 / 2011) मामले में  11 नवम्बर 2011  स्पष्ट रूप से कह चुका है कि पहले कुछ भी हुआ हो, बिना टी.ई.टी. उत्तीर्ण किये बिना कोई भी व्यक्ति, भले ही वो अन्य सभी अर्हताएं रखता हो, शिक्षक के तौर पे नियुक्ति का पात्र नहीं हो सकता.  अब चूंकि राज्य में प्रतिवर्ष अधिकतम बीस हज़ार लोग बी.टी.सी. उत्तीर्ण होते हैं, जिनमे से सबके टी.ई.टी. उत्तीर्ण होने की गारंटी भी नहीं है, और प्रदेश में प्रशिक्षणरत  शिक्षा मित्रों पर भी ये बाध्यता  लागू होगी. अतः आवश्यकता के अनुपात में अत्यंत नगण्य संख्या  में अर्ह आवेदक  उपलब्ध होंगे.  ऐसे में सर्वथा उपयुक्त हल यही होगा की राज्य-सरकार एन.सी.टी.ई. से स्थितियों का हवाला देकर समयसीमा को बढाने का अनुरोध करे और अनुमति मिलने पर इस भर्ती-प्रक्रिया को पूरा करे क्यूंकि इस से इतर कोई भी अन्य कार्यवाही सिर्फ और सिर्फ कानूनी उलझाने ही पैदा करेगी. एन.सी.ई.टी. भी मौजूदा हालातों में शिक्षा के अधिकार के उद्देश्य को और अध्यापकों की भयावह कमी को देखते हुए संभवतः यह अनुमति दे देगी. अगर टी.ई.टी. मेरिट के आधार पर सहमति बन जाती है तब तकनीकी खामियों को दूर कर मौजूदा प्रक्रिया के द्वारा रिक्तियां भरी जा सकती हैं क्यूंकि कोर्ट इस आधार वाले मुद्दे पर टी.ई.टी. के पक्ष में फैसला पहले ही सुना चुका है.

 यह विषय केवल लाखों निर्दोष अभ्यर्थियों के भविष्य से ही नहीं  बल्कि शिक्षा से, समाज से और बृहद सामाजिक हित से जुड़ा है.  भर्ती-प्रक्रिया निरस्त होने की स्थिति में किसी व्यक्ति या  संस्था  द्वारा जनहित याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट के आगे यह रखने की जरूरत है कि किस प्रकार  अबतक किस प्रकार की आपराधिक लापरवाहियां प्रशासनिक स्तर पर हुई हैं, किस प्रकार चलती प्रक्रिया में अडंगा लगाया गया, किस प्रकार इस भर्ती-प्रक्रिया को निरस्त करने से आने वाले कई-कई सालों तक  निश्चित तौर पर अध्यापकों की अवश्यम्भावी कमी किस प्रकार करोड़ों बच्चों को अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से वंचित करेगी, किस प्रकार एक प्रक्रिया के नियम प्रक्रिया के प्रारंभ होने के बाद गैर-जरुरी रूप से केवल कतिपय स्वार्थी तत्वों के निहित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बदलने का षड़यंत्र रचा जा रहा है? कोर्ट के मार्फ़त शासन से यह भी पूछे जाने की आवश्यकता है की क्या उनके स्तर पर इस भर्ती-प्रक्रिया के निरस्त होने से पैदा होने वाली स्थितियों / संभावनाओं और उनसे निपटने में शासन की सक्षमता का कोई आंकलन किया गया है या नहीं? क्यूँ न माना जाये की घोषित भर्ती और निर्धारित नियमों को बदलने के मकसद से सारी प्रक्रिया रद्द करके हकदारों का हक़ मारने और चाँद लोगों को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से ये सारी कवायद की जा रही है?

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी मुफ्त शिक्षा पाने के अधिकार को कानूनी अधिकार के रूप में मान्यता दी है जिसके परिणामस्वरूप संविधान-संशोधन के द्वारा आर्टिकल 21-ए जोड़ा गया जो 6-14  वर्ष के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा के अधिकार की गारंटी देता है. ऐसे में सर्कार या शासन द्वारा अपने कर्तव्यों का सम्यक निर्वहन करने में असफल रहने के कारण अवश्यम्भावी रूप से होनेवाले इस शिक्षा के अधिकार के हनन के मुद्दे पर कोई भी जागरूक नागरिक हाईकोर्ट या फिर सीधे सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर सकता है. इस प्रकार की जनहित याचिका पर  जो खर्च आयेगा, वह पीड़ितों की संख्या, जिनमे अभ्यर्थी, समाज और विशेषकर हमारा भविष्य,  हमारे बच्चे शामिल हैं,  को देखते हुए  और विषय के महत्व को देखते हुए नगण्य है.

राज्य में तीन लाख से अधिक अध्यापकों की नियुक्ति की आवश्यकता और इस महत्वपूर्ण और संवेदनशील  मुद्दे पर दिनों-दिन बढ़ रही अनिश्चितता के मद्देनज़र न सिर्फ प्रदेश के नए और युवा मुख्यमंत्री balki बल्कि समूचे प्रशासनिक-तंत्र के  सम्मुख उत्तर प्रदेश के वर्तमान को सम्हालने और भविष्य को गढ़कर इतिहास लिखने की जो चुनौती आई है,  प्रदेश का पढ़ा-लिखा और पढाई-लिखाई का महत्त्व समझने वाला तबका  बड़ी  उम्मीदों से आशा कर रहा है कि इस मुद्दे पर माननीय मुख्यमंत्री महोदय सक्षम और समर्थ प्रशासनिक अधिकारियों  के सहयोग से जनाकांक्षाओं के अनुरूप विचार कर सम्यक निर्णय करेंगे ताकि उहापोह और और कानूनी अड़ंगेबाजियों के इस दौर को पीछे छोड़कर लंबित भर्ती-प्रक्रिया को शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण कर एक नए उत्तर प्रदेश के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ा जाये जिस के लिए जनता ने आपमें भारी विश्वास व्यक्त करते हुए आपको प्रदेश की बागडोर सौंपी है!
सादर व सधन्यवाद,
अपने उत्तर प्रदेश का ही एक आम-आदमी,

श्याम देव मिश्रा

सूचनार्थ प्रति:
1. माननीय केन्द्रीय मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली,
2. माननीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद्, नयी दिल्ली,
3. माननीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, नई दिल्ली.
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UPTET : High Shortage of Teachers in New Session , District Schools threaten to Ruin


जिले के स्कूलों में पढ़ाई चौपट होने का अंदेशा , नए सत्र में शिक्षकों की रहेगी भारी कमी
(UPTET : High Shortage of Teachers in New Session , District Schools threaten to Ruin )

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सीतापुर। टीईटी घोटाले से बेसिक शिक्षा विभाग बदहाली की राह पर चला गया है। जुलाई माह से परिषदीय विद्यालयों मे शिक्षकों का घोर संकट होने जा रहा है। विद्यालयों मे तालाबंदी की नौबत आ सकती है,क्योंकि लगभग दो सौ शिक्षक व कर्मचारी रिटायर होने जा रहे हैं। यह सभी प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों के प्रधानाध्यापक हैं

विद्यालयों की प्रशासनिक व्यवस्था तो चौपट ही होगी साथ ही में पढ़ाई भी। शिक्षकों कमी दूर होती दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। क्योंकि शिक्षकों की चयन प्रक्रिया शुरू होने पहले टीईटी घोटाला हो गया। घोटाले की जांच ने शिक्षकों की भर्ती पर ब्रेक लगा दिया। वहीं बीटीसी 2004 बैच के दूसरे बैच का प्रशिक्षण विलम्ब से शुरू हुआ उन्हें विद्यालयों में तैनाती नहीं दी गई क्योंकि उन्हें भी टीईटी पास करने का फरमान शासन ने जारी कर दिया। सर्व शिक्षा अभियान के तहत शासन से गांव-गांव विद्यालय खोलने की योजना बनी और विद्यालय खुलने लगे। मौजूद समय मे 2632 प्राथमिक व 1181 उच्च प्राथमिक विद्यालय हो चुके हैं। बेसिक शिक्षा नीति के तहत 35 बच्चों को एक शिक्षक को पढ़ाने की जिम्मेदारी निर्धारित की गयी लेकिन एक शिक्षक 100-100 बच्चों को पढ़ाने को विवश होना पड़ रहा है। प्राथमिक स्कूलों मे लगभग 4300 तथा उच्च प्राथमिक स्कूलों मे 2100 शिक्षक नौनिहालों का भविष्य संवारने मे जुटे है। शासन ने जिले मे 6000 शिक्षकों की कमी महसूस की तो चयन प्रक्रिया शुरू की गयी। बीएड डिग्री धारकों को विशिष्ट बीटीसी में चयन के लिए टीईटी परीक्षा पास कर उसकी मेरिट के आधार पर चयन की व्यवस्था निर्धारित कर दी गई है। मेरिट में अच्छे अंक देकर अभ्यर्थियों को पास करने के लिए बड़े पैमाने पर घोटाला कर दिया गया। पूरी भर्ती प्रक्रि या जांच के घेरे में आकर थम गई। इसका खमियाजा अब नौनिहालों को भुगतना पड़ रहा है। जुलाई माह से बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास बेसिक शिक्षा विभाग करता है।




मेरिट पर चयन हो
इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश लोक हितकारी परिषद के विजयानंद सिन्हा ने बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में टीईटी मेरिट के आधार पर ही चयन की मांग की है


सुशील राष्ट्रीय कार्य समिति में
इलाहाबाद। भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने सुशील कुमार पाण्डेय को भाजयुमो राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य मनोनीत किया है। यह जानकारी युवा मोर्चा काशी प्रांत के प्रभारी शशांक शेखर पाण्डेय ने दी। पाण्डेय ने बताया कि युवा मोर्चा टीईटी अभ्यर्थियों से लिए गए शुल्क को वापस करने मांग उठाएगा।



आठवीं तक के लिए टीईटी जरूरी
अलीगढ़। सीबीएसई ने बेहतर शिक्षा के लिए शिक्षकों की भर्ती के नियमों में भी परिवर्तन कर दिया है। अब तक पहली से लेकर आठवीं कक्षा पढ़ाने वालों को बीएड या उनकी योग्यता के आधार पर नियुक्त कर लिया जाता था। लेकिन इस बार इन कक्षाओं में भी उन्हीं को नियुक्त किया जाएगा, जिन्होंने टीईटी पास कर ली है। इस संबंध में रेडियंट स्टार इंगलिश स्कूल की प्रिंसिपल अंजू राठी ने बताया कि बोर्ड के निर्देश पर यह नियम सभी सीबीएसई स्कूलों में लागू होगा



News : Amar Ujala (5.4.12)