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यूपी: हाईकोर्ट ने रद्द की 4010 दरोगाओं की भर्ती, फिर होगी परीक्षा
लखनऊ
Updated Thu, 25 Aug 2016 12:58 AM IST
दरोगा भर्ती मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने सूबे की सिविल पुलिस में दरोगा और प्लाटून कमांडर के पदों पर भर्ती के लिए वर्ष 2011 में जारी चयन प्रक्रिया रद्द कर दी है।
कोर्ट ने लिखित परीक्षा फिर से कराकर भर्ती प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया है। गौरतलब है कि दरोगा के 4010 पदों के लिए अभ्यर्थियों का चयन 2015 में हो चुका था। उनकी ट्रेनिंग चल रही है। कोर्ट ने चयन के लिए पहले कराई गई लिखित परीक्षा और बाद की पूरी प्रक्रिया ही रद्द कर दी है।
न्यायमूर्ति राजन रॉय ने अभिषेक कुमार सिंह व अन्य अभ्यर्थियों की याचिका पर बुधवार को यह फैसला सुनाया। याचियों के अधिवक्ता विधु भूषण कालिया के मुताबिक याचिका में आरोप लगाया गया था कि उक्त चयन में पात्र अभ्यर्थियों को क्षैतिज आरक्षण का लाभ नहीं दिया गया। राज्य सरकार ने कोर्ट में इस याचिका का विरोध किया।
*दो बिंदुओं को लेकर हुआ था विवाद*
1. 50 फीसदी से अधिक हो गया था आरक्षण
ओबीसी कोटे के अभ्यर्थियों को उनके कोटे के अलावा सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित श्रेणी का भी लाभ दे दिया गया था। इससे कुल रिक्त पदों की 77 प्रतिशत सीटें आरक्षित श्रेणी में आ गई थीं। जबकि नियमानुसार 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
2. ज्यादा अभ्यर्थियों को दिया लिखित परीक्षा का मौका
नियमानुसार रिक्त पदों की कुल संख्या के तीन गुना अभ्यर्थी ही लिखित परीक्षा में बैठ सकते हैं। पुलिस भर्ती बोर्ड ने इससे काफी अधिक संख्या में अभ्यर्थियों को लिखित परीक्षा में मौका दिया।
इन्हीं दो मुद्दों को लेकर समान्य श्रेणी के 28 अभ्यर्थियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
यह है क्षैतिज आरक्षण
इसका अर्थ आरक्षण में आरक्षण देना है। उदाहरण के लिए पिछड़ी जातियों के लिए प्रदेश में 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति के लिए 21 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए 2 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। अब इसमें अगर कोई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के आश्रित कोटे का है तो उसे इनके लिए तय 2 प्रतिशत आरक्षण उन्हीं के कोटे से दिया जाएगा। मतलब अगर कोई पिछड़ा है तो उसे पिछड़ों के लिए निर्धारित 27 प्रतिशत से, अनुसूचित जाति का है तो उसे उस 21 प्रतिशत से और अनुसूचित जनजाति का है तो उसे इस वर्ग के लिए निर्धारित 2 प्रतिशत कोटे से आरक्षण दिया जाएगा।
शुरू से ही लटकती रही अदालत की तलवार
=मई 2011 में बसपा सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई प्रक्रिया
11 दिसंबर 2011 को प्रारम्भिक लिखित परीक्षा
दारोगा भर्ती-2011
फैसले का अध्ययन
सरकारी प्रवक्ता का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले का अध्ययन करने के बाद आगे की विधिक कार्यवाही की जाएगी।
हरिशंकर मिश्र, इलाहाबाद
उत्तर प्रदेश पुलिस उपनिरीक्षक व प्लाटून कमांडर भर्ती-2011 शुरू से ही विवादों में उलझती रही और इसका मुख्य कारण नियमों की अनदेखी, मनमाने फैसले और तमाम अनियमितताएं रहीं। इसकी वजह से कई बार अदालत में सरकार की किरकिरी हुई। किसी तरह अंतिम परिणाम घोषित हुआ लेकिन इसके बाद भी तमाम आरोप लगते रहे। अंतत: हाईकोर्ट ने इस चयन सूची को रद ही कर दिया। यह फैसला ऐसे समय में आया है जबकि चयनित दारोगा ट्रेनिंग कर रहे हैं। उनके लिए हाईकोर्ट का यह फैसला किसी सदमे से कम नहीं है।
पुलिस उपनिरीक्षक व प्लाटून कमांडर के 4010 की शुरुआत मई-2011 में बसपा कार्यकाल में हुई थी। उसी शासनकाल में इसकी प्रारंभिक लिखित परीक्षा के अनुदेश जारी हुए थे जिसमें हर विषय में चालीस फीसद और कुल पचास फीसद अंक अनिवार्य किए गए थे। इसका परिणाम सपा के सत्ता में आने के बाद एक जनवरी, 2013 को घोषित किया गया और इसके बाद से ही विवादों की शुरुआत भी हो गई।
खेल शुरू होने के बाद बदले गए नियम : इस भर्ती की शारीरिक दक्षता परीक्षा में 18 फरवरी, 2013 को दौड़ लगाते समय एक अभ्यर्थी की मौत हो गई। इसके बाद भर्ती प्रक्रिया रोक दी गई। बाद में राज्य सरकार ने नियम बदलते हुए शारीरिक दक्षता परीक्षा में संशोधन कर दस किमी की दौड़ को 4.8 किमी कर दिया। महिलाओं की दौड़ भी कम की गई। इस पर कोर्ट का फैसला आया कि ‘खेल शुरू हो जाने केबाद नियम नहीं बदले जा सकते।’ आखिर सितंबर 2014 में मुख्य लिखित परीक्षा हुई।
वाइटनर और ब्लेड का प्रयोग : तब तक कई याचिकाएं इस परीक्षा में अनियमितताओं को लेकर दाखिल हो चुकी थीं।
यह तथ्य भी सामने आया कि मुख्य लिखित परीक्षा में उत्तर पुस्तिकाओं में वाइटनर के प्रयोग के बावजूद 3038 अभ्यर्थियों की कापियां जांच दी गईं। इस मुद्दे पर पुलिस भर्ती बोर्ड हाईकोर्ट में बुरी तरह घिर गया। अभ्यर्थियों का सीधा आरोप था कि ऐसा सुनियोजित ढंग से किया गया है। कोर्ट ने आदेश किया कि वाइटनर और ब्लेड का प्रयोग करने वालों को बाहर किया जाए। रिजल्ट रद कर दिया गया। बोर्ड ने नए सिरे से रिजल्ट तैयार किया।
आरोपों की श्रृंखला में ही एक आरोप आरक्षण के नियमों का अवहेलना का था। अभ्यर्थियों ने याचिका दाखिल की कि क्षैतिज आरक्षण का उल्लंघन किया गया। याचिकाओं में कहा गया कि विशेष वर्ग के अभ्यर्थियों को सिर्फ समान्य कोटे में ही आरक्षण दिया गया है। इससे पहले सरकार ने अपने परिणाम के अनुसार चयनित अभ्यर्थियों को प्रशिक्षण पर भेज दिया। अंतत: यही आरोप उसके लिए भारी साबित हुआ।
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Updated Thu, 25 Aug 2016 12:58 AM IST
दरोगा भर्ती मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने सूबे की सिविल पुलिस में दरोगा और प्लाटून कमांडर के पदों पर भर्ती के लिए वर्ष 2011 में जारी चयन प्रक्रिया रद्द कर दी है।
कोर्ट ने लिखित परीक्षा फिर से कराकर भर्ती प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया है। गौरतलब है कि दरोगा के 4010 पदों के लिए अभ्यर्थियों का चयन 2015 में हो चुका था। उनकी ट्रेनिंग चल रही है। कोर्ट ने चयन के लिए पहले कराई गई लिखित परीक्षा और बाद की पूरी प्रक्रिया ही रद्द कर दी है।
न्यायमूर्ति राजन रॉय ने अभिषेक कुमार सिंह व अन्य अभ्यर्थियों की याचिका पर बुधवार को यह फैसला सुनाया। याचियों के अधिवक्ता विधु भूषण कालिया के मुताबिक याचिका में आरोप लगाया गया था कि उक्त चयन में पात्र अभ्यर्थियों को क्षैतिज आरक्षण का लाभ नहीं दिया गया। राज्य सरकार ने कोर्ट में इस याचिका का विरोध किया।
*दो बिंदुओं को लेकर हुआ था विवाद*
1. 50 फीसदी से अधिक हो गया था आरक्षण
ओबीसी कोटे के अभ्यर्थियों को उनके कोटे के अलावा सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित श्रेणी का भी लाभ दे दिया गया था। इससे कुल रिक्त पदों की 77 प्रतिशत सीटें आरक्षित श्रेणी में आ गई थीं। जबकि नियमानुसार 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
2. ज्यादा अभ्यर्थियों को दिया लिखित परीक्षा का मौका
नियमानुसार रिक्त पदों की कुल संख्या के तीन गुना अभ्यर्थी ही लिखित परीक्षा में बैठ सकते हैं। पुलिस भर्ती बोर्ड ने इससे काफी अधिक संख्या में अभ्यर्थियों को लिखित परीक्षा में मौका दिया।
इन्हीं दो मुद्दों को लेकर समान्य श्रेणी के 28 अभ्यर्थियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
यह है क्षैतिज आरक्षण
इसका अर्थ आरक्षण में आरक्षण देना है। उदाहरण के लिए पिछड़ी जातियों के लिए प्रदेश में 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति के लिए 21 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए 2 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। अब इसमें अगर कोई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के आश्रित कोटे का है तो उसे इनके लिए तय 2 प्रतिशत आरक्षण उन्हीं के कोटे से दिया जाएगा। मतलब अगर कोई पिछड़ा है तो उसे पिछड़ों के लिए निर्धारित 27 प्रतिशत से, अनुसूचित जाति का है तो उसे उस 21 प्रतिशत से और अनुसूचित जनजाति का है तो उसे इस वर्ग के लिए निर्धारित 2 प्रतिशत कोटे से आरक्षण दिया जाएगा।
शुरू से ही लटकती रही अदालत की तलवार
=मई 2011 में बसपा सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई प्रक्रिया
11 दिसंबर 2011 को प्रारम्भिक लिखित परीक्षा
दारोगा भर्ती-2011
फैसले का अध्ययन
सरकारी प्रवक्ता का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले का अध्ययन करने के बाद आगे की विधिक कार्यवाही की जाएगी।
हरिशंकर मिश्र, इलाहाबाद
उत्तर प्रदेश पुलिस उपनिरीक्षक व प्लाटून कमांडर भर्ती-2011 शुरू से ही विवादों में उलझती रही और इसका मुख्य कारण नियमों की अनदेखी, मनमाने फैसले और तमाम अनियमितताएं रहीं। इसकी वजह से कई बार अदालत में सरकार की किरकिरी हुई। किसी तरह अंतिम परिणाम घोषित हुआ लेकिन इसके बाद भी तमाम आरोप लगते रहे। अंतत: हाईकोर्ट ने इस चयन सूची को रद ही कर दिया। यह फैसला ऐसे समय में आया है जबकि चयनित दारोगा ट्रेनिंग कर रहे हैं। उनके लिए हाईकोर्ट का यह फैसला किसी सदमे से कम नहीं है।
पुलिस उपनिरीक्षक व प्लाटून कमांडर के 4010 की शुरुआत मई-2011 में बसपा कार्यकाल में हुई थी। उसी शासनकाल में इसकी प्रारंभिक लिखित परीक्षा के अनुदेश जारी हुए थे जिसमें हर विषय में चालीस फीसद और कुल पचास फीसद अंक अनिवार्य किए गए थे। इसका परिणाम सपा के सत्ता में आने के बाद एक जनवरी, 2013 को घोषित किया गया और इसके बाद से ही विवादों की शुरुआत भी हो गई।
खेल शुरू होने के बाद बदले गए नियम : इस भर्ती की शारीरिक दक्षता परीक्षा में 18 फरवरी, 2013 को दौड़ लगाते समय एक अभ्यर्थी की मौत हो गई। इसके बाद भर्ती प्रक्रिया रोक दी गई। बाद में राज्य सरकार ने नियम बदलते हुए शारीरिक दक्षता परीक्षा में संशोधन कर दस किमी की दौड़ को 4.8 किमी कर दिया। महिलाओं की दौड़ भी कम की गई। इस पर कोर्ट का फैसला आया कि ‘खेल शुरू हो जाने केबाद नियम नहीं बदले जा सकते।’ आखिर सितंबर 2014 में मुख्य लिखित परीक्षा हुई।
वाइटनर और ब्लेड का प्रयोग : तब तक कई याचिकाएं इस परीक्षा में अनियमितताओं को लेकर दाखिल हो चुकी थीं।
यह तथ्य भी सामने आया कि मुख्य लिखित परीक्षा में उत्तर पुस्तिकाओं में वाइटनर के प्रयोग के बावजूद 3038 अभ्यर्थियों की कापियां जांच दी गईं। इस मुद्दे पर पुलिस भर्ती बोर्ड हाईकोर्ट में बुरी तरह घिर गया। अभ्यर्थियों का सीधा आरोप था कि ऐसा सुनियोजित ढंग से किया गया है। कोर्ट ने आदेश किया कि वाइटनर और ब्लेड का प्रयोग करने वालों को बाहर किया जाए। रिजल्ट रद कर दिया गया। बोर्ड ने नए सिरे से रिजल्ट तैयार किया।
आरोपों की श्रृंखला में ही एक आरोप आरक्षण के नियमों का अवहेलना का था। अभ्यर्थियों ने याचिका दाखिल की कि क्षैतिज आरक्षण का उल्लंघन किया गया। याचिकाओं में कहा गया कि विशेष वर्ग के अभ्यर्थियों को सिर्फ समान्य कोटे में ही आरक्षण दिया गया है। इससे पहले सरकार ने अपने परिणाम के अनुसार चयनित अभ्यर्थियों को प्रशिक्षण पर भेज दिया। अंतत: यही आरोप उसके लिए भारी साबित हुआ।
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