TEXT OF ORDER OF ALLAHABAD HIGHCOURT IN CASE NO. 76039/2011 ISSUED ON 05.07.12 ALONGWITH ITS SIMPLE TRANSLATION & BRIEF INTERPRETATION
By - Shyam Dev Mishra
Court No. - 7
Case :- WRIT - A No. - 76039 of 2011
Petitioner :- Yadav Kapildev Lal Bahadur
Respondent :- State Of U.P. & Others
Petitioner Counsel :- Alok Kumar Yadav,Rajesh Yadav
Respondent Counsel :- C.S.C.,K.S. Kushwaha
Hon'ble Arun Tandon,J.
The matter has been heard at some length by this Court, an affidavit has been filed on behalf of Secretary (Basic Education), Government of Uttar Pradesh today in the Court, wherein it has been stated that the fairness of Teachers' Eligibility Test (T.E.T.) is under examination before the State Government. For the purpose, a High Level Committee has been constituted. The recommendation of High Level Committee is awaited. Reference has also been made to the pending petitions in respect of the T.E.T. examination as well as to the special appeals filed by B.T.C. qualified candidates for appointment irrespective of the T.E.T. examination.
Sri C.B. Yadav, learned Additional Advocate General states that the matter is under active consideration of the State Government and a decision shall be taken without unnecessary delay.
This Court may only record that the appointment on the post of Assistant Teacher in Parishidiya Vidyalaya is squarely dependent upon the decision the State Government will take on the fairness or otherwise of the T.E.T. examination. The number of posts lying vacant is in the thousands. I
The final decision must be taken promptly. Therefore, this Court directs that the State Government shall take final decision in respect of fairness or otherwise of the T.E.T. examination and all such related issue as it may so desire preferably within four (4) weeks from today. The decision of the State Government shall be brought on record by means of an affidavit of the Secretary himself on or before 06th August, 2012. It is made clear that request for grant of further time for the purpose shall not be appreciated by the Court.
List on 06th August 2012.
Interim order, if any, shall continue till the next date of listing.
Order Date :- 5.7.12
कोर्ट संख्या - ७ में ०५.०७.२०१२ को केस संख्या - रिट ए - ७६०३९ / २०११ (यादव कपिलदेव लालबहादुर बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश एंड अदर्स) में न्यायमूर्ति अरुण टंडन द्वारा दिए गए आदेश का सरल अनुवाद:
न्यायालय द्वारा मामला कुछ विस्तार में सुना जा चुका है, न्यायालय में सचिव, बेसिक शिक्षा, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से एक शपथपत्र दाखिल किया जा चुका है जिसमे कहा गया है कि अध्यापक पात्रता परीक्षा (टी.ई.टी.) कि शुचिता (Fairness) राज्य सरकार के सम्मुख जांच के दायरे में है. इस प्रयोजनार्थ एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया गया है. उच्च-स्तरीय समिति की सिफारिशें अभी लंबित (प्रतीक्षाधीन) है. टी.ई.टी. परीक्षा के सम्बन्ध में लंबित याचिकाओं तथा बी.टी.सी. उत्तीर्ण अभ्यर्थियों द्वारा बिना अध्यापक पात्रता परीक्षा के ही नियुक्ति के लिए दायर विशेष याचिकाओ का भी सन्दर्भ लिया गया है.
श्री सी.बी. यादव, अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कहा है कि मामला राज्य सरकार के सक्रिय विचाराधीन है और इस बिना अनावश्यक विलम्ब के निर्णय लिया जायेगा.
न्यायालय केवल इस बात को संज्ञान में लेता है कि परिषदीय विद्यालयों में सहायक अध्यापकों के पदों पर नियुक्ति पूर्णतया प्रदेश सरकार द्वारा टी.ई.टी. की शुचिता व अन्य पहलुओं पर लिए जाने वाले निर्णय पर निर्भर है. खाली पड़े पदों की संख्या हजारों में है.
(मामले का) अंतिम निर्णय शीघ्रातिशीघ्र लिया जाना चाहिए. अतः, न्यायालय निर्देश देता है कि राज्य सरकार टी.ई.टी. की शुचिता व अन्य पहलुओं तथा अन्य ऐसे सभी सम्बंधित मुद्दों, जिन्हें वो चाहे, के सम्बन्ध में यथासंभव (जहां तक संभव हो सके - preferably) आज से चार सप्ताह के अंदर निर्णय लेगी. राज्य सरकार का निर्णय स्वयं सचिव के शपथपत्र के जरिये ६ अगस्त २०१२ को या उस से पहले न्यायालय के संज्ञान में लाया जायेगा. यह (भी) स्पष्ट किया जाता है कि इस हेतु आगे और समय दिए जाने के (राज्य सरकार के) अनुरोध को न्यायालय द्वारा ठीक नहीं समझा जायेगा.
६ अगस्त २०१२ को सूचीबद्ध करें.
अंतरिम आदेश, यदि कोई हो, अगली तारीख तक प्रभावी रहेगा.
आदेश की तिथि : ०५.०७.२०१२
अपनी बात:
साथियों, ५ जुलाई २०१२ को कोर्ट द्वारा राज्य सरकार को ४ सप्ताह का समय देते हुए टी.ई.टी. परीक्षा में तथाकथित रूप से हुई गड़बड़ियों तथा अन्य सभी उन मुद्दों पर, जिन्हें वो इस लंबित भर्ती प्रक्रिया को पूरी करने के लिए उपयुक्त समझे, निर्णय करे और न्यायालय को उस से अवगत कराये. यहाँ कुछ साथी इस बात से चिंतित दिखे कि न्यायालय ने भी सबकुछ सरकार पे छोड़ दिया है और अब सरकार जो चाहेगी, वो करने को स्वतंत्र है. पर यहाँ ध्यान दें कि न्यायालय ने इस मामले को बहुत महत्वपूर्ण मानते हुए यह निर्देश सरकार द्वारा अभी इस भर्ती-प्रक्रिया से जुड़े कई मुद्दों पर,जैसे टी.ई.टी. में हुई तथाकथित धांधलियो की जांच व अन्य पहलुओं पर विचार करने के लिए गठित उच्च-स्तरीय समिति की सिफारिशें प्रतीक्षाधीन होने के कारण, अब तक निर्णय न लिए जाने के मद्देनज़र दिया है तथा इस मुद्दे के शीघ्रातिशीघ्र अंतिम निर्णय की आवश्यकता पर बल देते हुए सरकार को इन निर्णयों के लिए आगे और समय देने से भी साफ़ मना किया है.
न्यायालय ने स्टे हटाने से इंकार इसलिए किया क्यूंकि अन्य पक्षों और पहलुओं को देखते हुए और उन पर सरकार के अब तक के गोल-मोल और अस्पष्ट रवैये से इस बात की प्रबल सम्भावना थी कि स्टे हटाने के बाद भी भर्ती-प्रक्रिया के मौजूदा प्रावधानों या सरकार द्वारा भर्ती से सम्बंधित आगे लिए जाने वाले निर्णयों से असंतुष्ट पक्षों द्वारा फिर से न्यायालय जाने से भर्ती प्रक्रिया बाधित होगी. बेहतर है कि इस भर्ती प्रक्रिया से सम्बंधित सभी बिन्दुओ पर सरकार अपना रुख और निर्णय न्यायालय के सामने रखे ताकि उनकी वैधानिकता, न्यायसंगतता और औचित्य पर न्यायालय फैसला कर सके और तदुपरांत स्टे हटने पर भर्ती प्रक्रिया बाधित होने की सम्भावना न्यूनतम हो जाये. यहाँ यह समझना भूल होगी कि सरकार अगर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कोई निर्णय लेती है या कोई अवैधानिक निर्णय लेती है तो भी न्यायालय से उसे हरी झंडी मिल जाएगी. वास्तव में न्यायालय का यह कदम इस मामले में सरकार के लापरवाह रवैये या फिर शायद किन्ही निहित-स्वार्थों के लिए जानबूझ कर की गई हीला-हवाली के कारण काफी देर से आया, पर एक सही कदम है. अब इस मामले के शीघ्र निपटारे का सारा दारोमदार सरकार के निर्णय पर है और सरकार इस मामले में कोई नकारात्मक निर्णय (टी.ई.टी. निरस्त करने या चयन का आधार बदलने जैसा निर्णय) न ले, इसके लिए सभी अभ्यर्थियों को एक-होकर न सिर्फ टी.ई.टी. बचाने के लिए सरकार पे कोर्ट के बाहर हर-संभव तरीके से दबाव बनाना होगा बल्कि टी.टी.टी. संघर्ष मोर्चा को न्यायालय में भी सरकार के किसी नकारात्मक निर्णय के प्रभावी विरोध के लिए और अपनी बात तार्किक ढंग से रखने के लिए तैयार रहना होगा. कुल मिलाकर न्यायालय ने सरकार द्वारा कोर्ट के बाहर कोई मनमानी किये जाने की सम्भावना पर विराम लगते हुए इस बात को सुनिश्चित किया है कि इस भर्ती-प्रक्रिया के सभी विवादित मुद्दों का निपटारा कोर्ट के अंदर ही होगा!
- श्याम देव मिश्रा, मुंबई