GOOD NEWS : तेल की कीमतें 45 डॉलर तक गिरीं, कंजयूमर्स के लिए खुशी
घटे कच्चे तेल के दाम, मोदी मुफ्त में कमाएं नाम
हालांकि, तेल की कीमतों की भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल काम है लेकिन ऐनालिस्ट को आशंका है कि यह 30 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती है।
सऊदी अरब लगातार ओपेक सदस्य देशों ईरान और वेनेजुएला द्वारा कीमतों को गिरने से रोकने के लिए तेल के उत्पादन में कमी की मांग को मनाने से इनकार करता रहा है। हाल ही में मिडिल ईस्ट इकनॉमिक सर्वे ने सऊदी के तेल मंत्री अली अल-नइमी के हवाले से कहा था कि ओपेक तेल के उत्पादन में कमी नहीं करेगा फिर चाहे कीमतें जो भी हों।
तेल की कीमतें इतनी तेजी से क्यों गिर रही हैं? अभी क्यों?
Duniya mein Sabse Jyada Oil reserve USA ke paas hai.
The United States has the largest known deposits of oil shale in the world.
http://en.wikipedia.org/wiki/Oil_reserves_in_the_United_States
यूनाइटेड स्टेट्स का घरेलू उत्पादन पिछले 6 सालों में दोगुना हो गया है। इससे अमेरिका में तेल आयात जबर्दस्त तरीके से घटा और तेल निर्यातकों को दूसरा ठिकाना तलाशने पर विवश कर दिया। इससे सऊदी, नाइजीरिया और अल्जीरिया के तेल निर्यातक जिनके लिए कभी अमेरिका मार्केट हुआ करता था अचानक से एशियाई मार्केट्स के लिए प्रतिस्पर्धा करने लगे। इसका परिणाम यह हुआ कि उत्पादकों को कीमत गिरानी पड़ी।
वहीं दूसरी तरफ यूरोप और विकासशील देशों की इकॉनमी की रफ्तार सुस्त हुई है और गाड़ियां ज्यादा एनर्जी-एफीशिएंट बन रही हैं। इससे भी तेल की डिमांड में कमी आई है
ग्लोबल मार्केट में तेल की कीमत के मंगलवार को 45 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचने के बाद भी अभी यह कह पाना मुश्किल है कि रिकवरी से पहले यह कितना और नीचे जाएगी। भले ही तेल की गिरती कीमतें भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए अच्छा संकेत हो, लेकिन गिरावट के साथ कई निगेटिव बातें भी जुड़ी हैं।
पिछले साल जून से कच्चे तेल की कीमतों में करीब 60 फीसदी की गिरावट आई है और यह 111 डॉलर प्रति बैरल से गिरकर 45 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गई है। इसका कारण ओपेक के सदस्य देश सऊदी अरब द्वारा मार्केट में अमेरिका की शेल इंडस्ट्री और रूस जैसे नए खिलाड़ियों के मुकाबले अपना शेयर बरकरार रखने के लिए सप्लाई बढ़ाया जाना रहा है।
तेल की कीमत में गिरावट भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में तेजी से गिरावट के रूप में सामने आई है। अगस्त से पेट्रोल की कीमतों में 12.27 रुपये/लीटर और डीजल की कीमतों में अक्टूबर से 8.46 रुपये/लीटर की गिरावट आ चुकी है। साथ ही 15 जनवरी को इनकी कीमतों में एक बार फिर से कमी की संभावना है।
तेल की कीमतों से महंगाई और तेल आयात बिल को कम करने में मदद मिलेगी, जो पिछले साल 160 अरब डॉलर था और इस साल इसके 100-110 अरब डॉलर रहने की उम्मीद है। इससे केरोसिन और कुकिंग गैस की सब्सिडी में भी कमी आएगी। इन सबके दूरगामी प्रभाव से राजकोषीय घाटा कम होगा और इससे टैक्स को
तेल की कीमतों के दोबारा साल भर के अंदर ऊंचाई पर जाने का अनुमान है, लेकिन तब भी इसके 100 डॉलर से ऊपर जाने की संभावना नहीं है। उस समय सरकार पर पेट्रोल-डीजल की कीमतों को बढ़ाने के लिए राजनीतिक परेशानियों से निपटने का मुश्किल काम होगा। साथ ही तेल की कम कीमतों से ओएनजीसी जैसे तेल उत्पादकों के
नए प्रोजेक्ट्स को अलाभकारी बना देंगी। साथ ही तेल की भरमार के पीछे की वजह ग्लोबल इकॉनमी में स्लोडाउन को माना जा रहा है। यह भारतीय निर्यातकों के लिए बुरी खबर है और इससे सरकार के 'मेक इन इंडिया' प्लान को भी झटका लग सकता है।
क्या तेल की कीमतों को गिराने के पीछे कोई षड्यंत्र है?
तेल की कीमतों के घटने के पीछे कई कई तरह के षड्यंत्र की थिअरीज दी जा रही हैं। कुछ ऑइल ऐग्जिक्युटिव्स संकेत दे रहे हैं कि सऊदी अरब इससे ईरान और रूस को आर्थिक नुकसान पहुंचाना चाहता है। जिससे इन दोनों तेल उत्पादक देशों को कीमतें घटानी पड़े। 1980 में तेल की गिरती कीमतें सोवियत संघ के बिखराव के प्रमुख कारणों में से एक थीं।
लेकिन इन थिअरीज के सपॉर्ट में कोई सबूत नहीं हैं। साथ ही सऊदी अरब और अमेरिका के बीच सुचारु रूप से बहुत ही कम समन्वय होता है। साथ ही ओबामा प्रशासन शायद ही इस स्थिति में है कि वह मुनाफे की तलाश में जुटी सैकड़ों तेल कंपनियों और उनके शेयरधारकों को जवाब देने के लिए उनसे समन्वय स्थापित करने की पेचीदा प्रक्रिया से गुजर सके।
घटे कच्चे तेल के दाम, मोदी मुफ्त में कमाएं नाम
हालांकि, तेल की कीमतों की भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल काम है लेकिन ऐनालिस्ट को आशंका है कि यह 30 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती है।
सऊदी अरब लगातार ओपेक सदस्य देशों ईरान और वेनेजुएला द्वारा कीमतों को गिरने से रोकने के लिए तेल के उत्पादन में कमी की मांग को मनाने से इनकार करता रहा है। हाल ही में मिडिल ईस्ट इकनॉमिक सर्वे ने सऊदी के तेल मंत्री अली अल-नइमी के हवाले से कहा था कि ओपेक तेल के उत्पादन में कमी नहीं करेगा फिर चाहे कीमतें जो भी हों।
तेल की कीमतें इतनी तेजी से क्यों गिर रही हैं? अभी क्यों?
Duniya mein Sabse Jyada Oil reserve USA ke paas hai.
The United States has the largest known deposits of oil shale in the world.
http://en.wikipedia.org/wiki/Oil_reserves_in_the_United_States
यूनाइटेड स्टेट्स का घरेलू उत्पादन पिछले 6 सालों में दोगुना हो गया है। इससे अमेरिका में तेल आयात जबर्दस्त तरीके से घटा और तेल निर्यातकों को दूसरा ठिकाना तलाशने पर विवश कर दिया। इससे सऊदी, नाइजीरिया और अल्जीरिया के तेल निर्यातक जिनके लिए कभी अमेरिका मार्केट हुआ करता था अचानक से एशियाई मार्केट्स के लिए प्रतिस्पर्धा करने लगे। इसका परिणाम यह हुआ कि उत्पादकों को कीमत गिरानी पड़ी।
वहीं दूसरी तरफ यूरोप और विकासशील देशों की इकॉनमी की रफ्तार सुस्त हुई है और गाड़ियां ज्यादा एनर्जी-एफीशिएंट बन रही हैं। इससे भी तेल की डिमांड में कमी आई है
ग्लोबल मार्केट में तेल की कीमत के मंगलवार को 45 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचने के बाद भी अभी यह कह पाना मुश्किल है कि रिकवरी से पहले यह कितना और नीचे जाएगी। भले ही तेल की गिरती कीमतें भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए अच्छा संकेत हो, लेकिन गिरावट के साथ कई निगेटिव बातें भी जुड़ी हैं।
पिछले साल जून से कच्चे तेल की कीमतों में करीब 60 फीसदी की गिरावट आई है और यह 111 डॉलर प्रति बैरल से गिरकर 45 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गई है। इसका कारण ओपेक के सदस्य देश सऊदी अरब द्वारा मार्केट में अमेरिका की शेल इंडस्ट्री और रूस जैसे नए खिलाड़ियों के मुकाबले अपना शेयर बरकरार रखने के लिए सप्लाई बढ़ाया जाना रहा है।
तेल की कीमत में गिरावट भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में तेजी से गिरावट के रूप में सामने आई है। अगस्त से पेट्रोल की कीमतों में 12.27 रुपये/लीटर और डीजल की कीमतों में अक्टूबर से 8.46 रुपये/लीटर की गिरावट आ चुकी है। साथ ही 15 जनवरी को इनकी कीमतों में एक बार फिर से कमी की संभावना है।
तेल की कीमतों से महंगाई और तेल आयात बिल को कम करने में मदद मिलेगी, जो पिछले साल 160 अरब डॉलर था और इस साल इसके 100-110 अरब डॉलर रहने की उम्मीद है। इससे केरोसिन और कुकिंग गैस की सब्सिडी में भी कमी आएगी। इन सबके दूरगामी प्रभाव से राजकोषीय घाटा कम होगा और इससे टैक्स को
तेल की कीमतों के दोबारा साल भर के अंदर ऊंचाई पर जाने का अनुमान है, लेकिन तब भी इसके 100 डॉलर से ऊपर जाने की संभावना नहीं है। उस समय सरकार पर पेट्रोल-डीजल की कीमतों को बढ़ाने के लिए राजनीतिक परेशानियों से निपटने का मुश्किल काम होगा। साथ ही तेल की कम कीमतों से ओएनजीसी जैसे तेल उत्पादकों के
नए प्रोजेक्ट्स को अलाभकारी बना देंगी। साथ ही तेल की भरमार के पीछे की वजह ग्लोबल इकॉनमी में स्लोडाउन को माना जा रहा है। यह भारतीय निर्यातकों के लिए बुरी खबर है और इससे सरकार के 'मेक इन इंडिया' प्लान को भी झटका लग सकता है।
क्या तेल की कीमतों को गिराने के पीछे कोई षड्यंत्र है?
तेल की कीमतों के घटने के पीछे कई कई तरह के षड्यंत्र की थिअरीज दी जा रही हैं। कुछ ऑइल ऐग्जिक्युटिव्स संकेत दे रहे हैं कि सऊदी अरब इससे ईरान और रूस को आर्थिक नुकसान पहुंचाना चाहता है। जिससे इन दोनों तेल उत्पादक देशों को कीमतें घटानी पड़े। 1980 में तेल की गिरती कीमतें सोवियत संघ के बिखराव के प्रमुख कारणों में से एक थीं।
लेकिन इन थिअरीज के सपॉर्ट में कोई सबूत नहीं हैं। साथ ही सऊदी अरब और अमेरिका के बीच सुचारु रूप से बहुत ही कम समन्वय होता है। साथ ही ओबामा प्रशासन शायद ही इस स्थिति में है कि वह मुनाफे की तलाश में जुटी सैकड़ों तेल कंपनियों और उनके शेयरधारकों को जवाब देने के लिए उनसे समन्वय स्थापित करने की पेचीदा प्रक्रिया से गुजर सके।
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