आज कल जिस तरह से अकादमिक और टी ई टी मेरिट खेमा खुश हो रहा है कि हम जीत गए , हम जीत गए
मुझे लगता है वास्तव में वे भ्रम में हैं , सिर्फ मामला और लम्बा खिंच गया है ।
क्या किसी पुराने विज्ञापन पर नयी शर्ते लागु हो सकती जैसा कि नॉन - टीईटी वाला मामला सामने आया है ,
और अगर ऐसा होता रहेगा तो कोई भर्ती कभी पूरी हो सकती है क्या ।
यह जरूर हो सकता है कि वृहद् बेंच मैं मामला जाने से सभी तथ्यों को और गंभीरता से जांचा जा सकेगा ।
मुझे यह भी लगता है कि टी ई टी अभ्यर्थीयों के वकील मामले को ठीक से नहीं रख पा रहे हैं अन्यथा यह केस एक दो
सुनवाई में शुरू में ही ख़त्म हो जाना चाहिए था या फिर और भी अन्य कारण भर्ती के हो सकते हैं ।
मतलब साफ़ है कि किसी अभ्यर्थी ने टी ई टी परीक्षा में मेहनत से अंक प्राप्त किए हैं तो उसकी क्या गलती की उसका चयन न हो और उसका अब ये नॉन टी ई टी से क्या मतलब ।
जबकि परीक्षा से पहले ही ये साफ़ हो चुका था कि भर्ती टी ई टी मार्क्स से होगी
शुरू में यह मामला गलत प्रश्नों का लेकर उठता है . जिसमें सभी अभ्यर्थीयों को गलत प्रश्नों के एवज में बोनस मार्क्स दे दिए जाने की घोषणा हो जाती है हालाँकि इसके बावजूद भर्ती पर टी ई टी मेरिट वालों पर कोई असर नहीं पड़ता , क्योंकि मार्क्स सभी को मिले थे ।
फिर यह मामला विज्ञापन निकलने के अधिकार को लेकर था और परेशानी किसको थी जिसका इसके अधिकार को लेकर कोई मतलब नहीं था ।
रिसल्ट में संसोधन हुआ , 5 जिलों की जगह सभी जिलों से आवेदन की छूट को लेकर संसोधन हुआ ।
वैसे ही अभ्यर्थीयों को उम्मीद थी कि अधिकार को लेकर सामान्य सा कोई संसोधन आ जाएगा , क्योंकि यह मामला
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन बड़े अधिकारीयों / केबिनेट की देख रेख में हुआ था
और सभी अख़बारों / मीडिया /विभाग के माध्यम से स्वयं बी एस ए आदि की जानकारी में था अगर उनको कोई ओब्जेक्शन होता तो वह समय रहते ही आपत्ति दर्ज कर देते ।
यह प्रश्न उत्तर प्रदेश के लाखों अभ्यर्थीयों के भविष्य को लेकर था , अभ्यर्थी तारिख दर तारिख परेशान होते रहे और उसके बाद
एक नया मुद्दा आ गया - धांधली को लेकर
यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि हर अभ्यर्थी को ओ एम् आर की एक प्रति भी दी गयी थी , सामान्यता ऐसा परीक्षाओं में बहुत कम होता है । उसके बाद पारदर्शिता के लिए उत्तर कुंजी विभाग की वेब साईट पर भी डाली गयी और सभी तरह की आपत्तियों का निस्तारण किया गया था ।
इस सब के बाद धांधली वाले अभ्यर्थीयों के नाम , जानकारी आदि सामने नहीं आयी , और ऐसे संलिप्त
अभ्यर्थीयों / अधिकारियों को हटाया जाना बेहद जरूरी था वर्ना ये आगे चलकर बच्चों / अभ्यार्थीयों के भविष्य से फिर खिलवाड़ करेंगे ।
सिर्फ एक संजय मोहन का नाम सामने आया , क्या एक आदमी अकेले इतनी बड़ी भर्ती में धांधली को अंजाम दे सकता था ।
कोई भी परीक्षा शत प्रतिशत शुद्दता से संपन्न होना बेहद मुश्किल होता है आज भी उत्तर प्रदेश में
हाई स्कूल / इंटर परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर नक़ल माफियाओं की ख़बरें प्रमुखता से छप रही हैं ।
इसके बाद धांधली को ध्यान में रख कर भर्ती का आधार बदल गया , लेकिन उस बेचारे इमानदार टी ई टी अभ्यर्थी का क्या जिसने मेहनत से नंबर प्राप्त किये ।
सी टी ई टी पात्र अभ्यर्थीयों को भी शामिल क्या गया जो की संख्या में बेहद कम होंगे और 2012 में बी . एड धारी सी टी ई टी (प्राइमरी ) परीक्षा के लिए पात्र नहीं थे ।
नए विज्ञापन में पुन आवेदन हुए और फिर नए मामले सामने आये , पुराने विज्ञापन में पात्र मगर नए विज्ञापन में ओल्ड एज होने वाले अभ्यर्थी नए विज्ञापन में अपात्र हो गए । फिर फर्स्ट काउंसलिंग के दिन पुराने विज्ञापन की शर्तों वाले अभ्यर्थीयों ने
स्टे ले लिया ।इसी बीच एक नया मामला इलहाबाद हाई कोर्ट से उठा की नॉन -टी ई टी वाले भी भर्ती के लिए पात्र हैं ।
साथ ही एक जज ने कहा की टी ई टी मामले की सही व्याख्या'किया जाना जरूरी है ।
मेरे अनुसार
1. नॉन -टी ई टी वाले भी टी ई टी परीक्षा में बेठने के लिए पात्र थे और यह परीक्षा से पहले ही निर्धारित हो गया था की भर्ती टी ई टी मेरिट से होगी
2. अब नॉन -टी ई टी वाले मामले से पिछले विज्ञापन का क्या सम्बन्ध . और अगर किसी' भी पूर्व वर्ती
भर्ती के नियम अगर भविष्य में बदले जा सकेंगे तो भर्ती कभी पूरी हो सकती है क्या
3. एन सी टी ई ने टी ई टी को गुणवत्ता परक मानक परीक्षा माना और जब राज्य पर्याप्त संख्या में टी ई टी अभ्यर्थी मोजूद हैं तो
फिर वे कहाँ जायेंगे
एन सी टी ई ने टी ई टी के महत्व को बताया की ये सिर्फ पात्रता परीक्षा ही नहीं अपितु चयन -कम-पात्रता परीक्षा है -
(अ) इसके अंको को चयन में महत्व दिया जाये
(ब ) अभ्यर्थी अपने अंक वृद्दी हेतु पुन : इस परीक्षा में बैठ सकते हैं
क्या कभी किसी पात्रता परीक्षा में ऐसी व्यवस्था होती है कि एक बार पात्र होने पर दोबारा से परीक्षा में बेठना पड़े और मार्क्स का चयन में वेटेज दिया जाये
मुझे ये समझ नहीं आता कि नॉन -टी ई टी का पुराने विज्ञापन की भर्ती से क्या मतलब है और टी ई टी मेरिट धारी बहुत खुश हो रहे हैं । हो सकता हैं की वृहद् बेंच में टी ई टी मेरिट धारी जीत जाएँ ।
दुसरी तरफ कुछ अकादमिक मेरिट धारी भी खुश हो रहे हैं वे सोच रहे हैं कि नॉन - टी ई टी वालों का पुराने विज्ञापन से क्या मतलब , और अब तो उनकी जीत पक्की ।
लेकिन उनको भी समझना चाहिए कि मामला और ज्यादा गहराई से देखा जाएगा और देरी होगी व परिणाम अलग हट कर भी अ सकता है ।
पूरे मामले को देखकर लगता है कि वकील मामले को ठीक से नहीं रख पाए अन्यथा इतने सरल से मामले में 2-3 सुनवाई में मामला ख़त्म हो जाना चाहिए था , उदाहरनार्थ -
कोई मामले को इस तरह से रखता की हमने तो परीक्षा में धांधली /बेईमानी नहीं की और जिसने धांधली /बेईमानी की है उसको भर्ती से बहार करो इत्यादि