Shiksha Mitra News : दुविधा -एक तरफ टीईटी से छूट दिलाने की जद्दोजहद
दूसरी ओर सर्व शिक्षा अभियान के तहत सृजित नहीं शिक्षा सहायक के पद
एक तरफ टीईटी से छूट दिलाने की जद्दोजहद
दूसरी ओर सर्व शिक्षा अभियान के तहत सृजित नहीं शिक्षा सहायक के पद
लखनऊ : शिक्षामित्रों केसमायोजन का एलान करने वाली सरकार अपनी घोषणा को अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया को लेकर जबरदस्त दुविधा में है। एक तरफ तो शिक्षामित्रों को स्थायी शिक्षक बनाने के लिए उन्हें अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) से छूट दिलाने की मंशा है। वहीं दूसरी ओर उन्हें शिक्षा सहायक के पद पर स्थायी शिक्षकों की तनख्वाह देने के भारी-भरकम खर्च के अपने मत्थे पड़ने की आशंका। 1प्रदेश के 1.7 लाख शिक्षामित्रों को समायोजित करने का निर्णय लेने वाली सरकार शिक्षामित्रों को स्थायी शिक्षक तो बनाना चाहती है, लेकिन 23 अगस्त 2010 के बाद पहली से आठवीं कक्षा में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए टीईटी की अनिवार्यता को लेकर वह अपने हाथ बंधे हुए महसूस कर रही है। इस बारे में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की अधिसूचना तो पहले ही जारी की जा चुकी है, पिछले साल इस पर हाई कोर्ट की वृहद पीठ ने भी अपनी मुहर लगा दी। शिक्षामित्र भी बिना टीईटी उत्तीर्ण किए शिक्षक बनाए जाने की मांग पर अड़े हुए हैं। लिहाजा सरकार ने शिक्षक बनाने के मकसद से उन्हें शिक्षा सहायक के पद पर समायोजित करने का तानाबाना बुना। सरकार चाहती है कि शिक्षामित्रों को टीईटी से छूट देकर उन्हें शिक्षा सहायकों के पद पर समायोजित कर शिक्षकों का वेतन दिया जाए। 1सरकार का सिरदर्द यह है कि 1.7 लाख शिक्षामित्रों को शिक्षकों का वेतन देने पर साल भर में चार हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। यूं तो सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा के अधिकार पर होने वाले खर्च में केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 65:35 के अनुपात में है। इस हिसाब से शिक्षामित्रों को शिक्षकों का वेतन देने पर राज्य सरकार पर तकरीबन 1400 करोड़ रुपये का व्ययभार आएगा, लेकिन यहीं एक तकनीकी पेच फंस रहा है। केंद्र सरकार सर्व शिक्षा अभियान के तहत सृजित पदों के लिए धनराशि देती है। फिलहाल सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा सहायक का कोई पद सृजित नहीं है। ऐसे में राज्य सरकार इस बात को लेकर आशंकित है कि शिक्षामित्रों के समायोजन के बाद यदि केंद्र सरकार ने इसका हवाला देते हुए वेतन की धनराशि देने से मना कर दिया तो लेने के देने पड़ जाएंगे। कुल मिलाकर इधर कुआं, उधर खाई वाली स्थिति। यही वजह है कि सात दिनों में शिक्षामित्रों के समायोजन की पृथक नियमावली बनाए जाने के कैबिनेट के फैसले के दस दिन बाद भी इस मसले पर माथापच्ची जारी है।
News Sabhaar : Jagran (09.02.2014)
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दूसरी ओर सर्व शिक्षा अभियान के तहत सृजित नहीं शिक्षा सहायक के पद
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दूसरी ओर सर्व शिक्षा अभियान के तहत सृजित नहीं शिक्षा सहायक के पद
लखनऊ : शिक्षामित्रों केसमायोजन का एलान करने वाली सरकार अपनी घोषणा को अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया को लेकर जबरदस्त दुविधा में है। एक तरफ तो शिक्षामित्रों को स्थायी शिक्षक बनाने के लिए उन्हें अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) से छूट दिलाने की मंशा है। वहीं दूसरी ओर उन्हें शिक्षा सहायक के पद पर स्थायी शिक्षकों की तनख्वाह देने के भारी-भरकम खर्च के अपने मत्थे पड़ने की आशंका। 1प्रदेश के 1.7 लाख शिक्षामित्रों को समायोजित करने का निर्णय लेने वाली सरकार शिक्षामित्रों को स्थायी शिक्षक तो बनाना चाहती है, लेकिन 23 अगस्त 2010 के बाद पहली से आठवीं कक्षा में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए टीईटी की अनिवार्यता को लेकर वह अपने हाथ बंधे हुए महसूस कर रही है। इस बारे में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की अधिसूचना तो पहले ही जारी की जा चुकी है, पिछले साल इस पर हाई कोर्ट की वृहद पीठ ने भी अपनी मुहर लगा दी। शिक्षामित्र भी बिना टीईटी उत्तीर्ण किए शिक्षक बनाए जाने की मांग पर अड़े हुए हैं। लिहाजा सरकार ने शिक्षक बनाने के मकसद से उन्हें शिक्षा सहायक के पद पर समायोजित करने का तानाबाना बुना। सरकार चाहती है कि शिक्षामित्रों को टीईटी से छूट देकर उन्हें शिक्षा सहायकों के पद पर समायोजित कर शिक्षकों का वेतन दिया जाए। 1सरकार का सिरदर्द यह है कि 1.7 लाख शिक्षामित्रों को शिक्षकों का वेतन देने पर साल भर में चार हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। यूं तो सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा के अधिकार पर होने वाले खर्च में केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 65:35 के अनुपात में है। इस हिसाब से शिक्षामित्रों को शिक्षकों का वेतन देने पर राज्य सरकार पर तकरीबन 1400 करोड़ रुपये का व्ययभार आएगा, लेकिन यहीं एक तकनीकी पेच फंस रहा है। केंद्र सरकार सर्व शिक्षा अभियान के तहत सृजित पदों के लिए धनराशि देती है। फिलहाल सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा सहायक का कोई पद सृजित नहीं है। ऐसे में राज्य सरकार इस बात को लेकर आशंकित है कि शिक्षामित्रों के समायोजन के बाद यदि केंद्र सरकार ने इसका हवाला देते हुए वेतन की धनराशि देने से मना कर दिया तो लेने के देने पड़ जाएंगे। कुल मिलाकर इधर कुआं, उधर खाई वाली स्थिति। यही वजह है कि सात दिनों में शिक्षामित्रों के समायोजन की पृथक नियमावली बनाए जाने के कैबिनेट के फैसले के दस दिन बाद भी इस मसले पर माथापच्ची जारी है।
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tet ki anvarita sabhi ko honi chahiye akhir yogata bhi koi cheek hai es prakar to puri sichha pradali garbar go jayegi
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