Thursday, August 30, 2012

UPTET - Article By Shyam Dev Mishra on Current Situation of recruitment through UPTET



UPTET - Article By Shyam Dev Mishra on Current Situation of recruitment through UPTET


 प्रशिक्षु प्राथमिक शिक्षको की भर्ती-प्रक्रिया : आजतक की वस्तुस्थिति

प्रिय मित्रों,
टी.ई.टी. संघर्ष से जुड़े तमाम विश्वसनीय साथियों (जिनमे से बहन अंजलि राय, भाई सुजीत सिंह, गणेश दीक्षित, निर्भय सिंह, राजेश प्रताप सिंह, सदानंद मिश्रा, अजय सिसोदिया, ज्ञानेश देव, अर्जुन सिंह, अमितेश पाण्डेय, आनंद तिवारी, शलभ तिवारी, विकास पाण्डेय, पीयूष चतुर्वेदी सहित अन्य महत्वपूर्ण लोग सम्मिलित हैं) द्वारा आनलाइन दी गयी जानकारी के बाद भी हमारे तमाम साथी इस बात से या तो अनभिज्ञ हैं या आशंकित कि हमारे साथ अर्थात टी.ई.टी. मेरिट के आधार पर चयन की पूर्व-निर्धारित प्रक्रिया के साथ आनेवाले दिनों में सरकार क्या खेल खेलने वाली है, बहुतों को तो ऐसा लग रहा है कि सरकार द्वारा कल बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली में 13वे संशोधन के द्वारा शिक्षकों की भर्ती अकादमिक मेरिट के आधार पर करने की व्यवस्था इस 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती पर लागू होगी. अत्यंत सामान्य बुद्धि से सोचा जाये तो भी स्पष्ट है कि कोई नियम बनने की तारीख और उसके बाद प्रभावी होता है न कि पिछली किसी तारीख से. 
वैसे कैबिनेट के निर्णय में जहाँ सी.टी.ई.टी. को भी अर्हता में शामिल करना इंगित करता है कि यह बदलाव या संशोधन भावी /आगामी भर्तियों को ध्यान में रखकर की गई हो सकती हैं, पर अगर सरकार यह संशोधन 72825 भर्तियों पर लागू करना चाहे तो चयन के आधार के साथ-साथ आयु सीमा में भी परिवर्तन के जैसे कदम, जो वर्तमान प्रक्रिया में अर्ह तमाम अभ्यर्थियों को बिना किसी कारण के अनर्ह करके प्रक्रिया से बाहर कर देंगे, किसी भी प्रकार कोर्ट में वैध नहीं ठहराए जा सकते. वैसे जिस प्रकार सरकार द्वारा गुप-चुप तरीके से संशोधन करके इरादतन अस्पष्ट और संक्षिप्त प्रेस-विज्ञप्ति जारी हुई और समाचार-पत्रों में आधे-अधूरे विवरण प्रकाशित हुए, उनसे अभ्यर्थियों में अटकलबाजियों का दौर शुरू हो गया है, पर इस सब से घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है क्यूंकि सरकार की मंशा अगर इन परिवर्तनों को 72825 पदों की भर्ती पर लागू करने की है भी तो उसके रास्ते में न्यायालय खडा है . वैसे टी.ई.टी. मेरिट समर्थक इस लड़ाई के लिए एकजुट और तैयार हैं और यदि किसी भी प्रकार कोर्ट इनके पक्ष में निर्णय नहीं देता, जिसकी सम्भावना कतई नहीं दिखती, तो हमारे साथी डबल बेंच से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस हक़ की लड़ाई को लड़ने के लिए कमर कसे बैठे हैं, जरुरत है तो इनका साथ देने की, इनका मनोबल बढ़ाने की. 
फिर भी इस प्रकार की दु:शंका दूर करने के लिए और वस्तुस्थिति से अभी तक अनभिज्ञ साथियों की जानकारी के लिए फिर से दोहराना पड़ रहा है कि हमारा पूरा संगठन एकजुट होकर इस लड़ाई को लड़ रहा है और शायद पहली बार ये लग रहा है कि हम जीत के बहुत करीब हैं. यह सत्य है कि तमाम प्रयासों के बाद भी २७ अगस्त २०१२ तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चल रहे मामले में टी.ई.टी. समर्थको का अधिकृत रूप से पक्ष रखनेवाला कोई नहीं था जिसके कारण शायद जज साहब को भी टी.ई.टी. की वास्तविकता और महत्ता, एन.सी.टी.ई. द्वारा जारी इस से सम्बंधित दिशा-निर्देशों के आलोक में वर्तमान विज्ञप्ति की वैधता और सरकार-मीडिया द्वारा जान-बुझकर किये जा रहे दुष्प्रचार की सही जानकारी नहीं थी. इसी बीच 23 जुलाई को सरकार ने टी.ई.टी.-2011 को जब मात्र अर्हता परीक्षा बनाने और वर्तमान विज्ञप्ति को रद्द कर अकादमिक मेरिट के आधार पर भर्ती करने का निर्णय लिया तो हमारे साथी रत्नेश पाल, अभिषेक त्रिपाठी, नवीन कुमार और एस.के. पाठक ने अलग-अलग याचिकाओं में सरकार के इस निर्णय को चुनौती देते हुए इसे रद्द करने की मांग की जिसपर माननीय वी. के. शुक्ल जी की एकल बेंच ने पूर्णतया सकारात्मक रवैया दिखाते अर्थात प्रथम दृष्टया अपील को विचार-योग्य मानकर इन्हें भी माननीय अरुण टंडन के न्यायालय में चल रहे मामले से सम्बद्ध कर दिया. गौरतलब है कि विचार के दौरान माननीय न्यायाधीश महोदय ने सरकार के रवैये को राजनैतिक नाटक की संज्ञा दी. यह सब कुछ निर्धारित योजना के अनुरूप ही हुआ.

इस प्रकार २७ अगस्त को कोर्ट में टी.ई.टी. समर्थकों का पक्ष रखने के लिए पहली बार अधिकृत रूप से शाशिनंदन जी, अशोक खरे जी, अभिषेक श्रीवास्तव एवं वी.के. सिंह आदि चार वकील मोर्चे पर डटे थे जिसका स्पष्ट फायदा भी दिखा. शायद पहली बार न्यायाधीश महोदय को इस विषय का सिलसिले-वार ब्यौरा, जिसमे एन.सी.टी.ई. द्वारा शिक्षकों के लिए योग्यता निर्धारण के दौरान टी.ई.टी. प्रारंभ करना, सरकार द्वारा नियमावली में परिवर्तन करके टी.ई.टी. को चयन का आधार बनाना, टी.ई.टी. की महता और उसके विषय में तथ्यात्मक जानकारी, टी.ई.टी. का आयोजन एवं परिणाम की घोषणा, शिक्षक भर्ती के लिए विज्ञप्ति का प्रकाशन, आवेदकों द्वारा विज्ञप्ति के आधार पर आवेदन, सरकार द्वारा तथाकथित धांधली के प्रभाव को न्यून करने के नाम पर प्रक्रिया के बीच में चयन का आधार बदलने के लिए नियमावली में परिवर्तन के मंत्री-परिषद् के निर्णय और उसपर उठाई गयी आपत्तियां आदि शामिल है, दिया गया जिसे उन्होंने गौर से सुना. वकीलों द्वारा इस स्तर तक बढ़ चुकी प्रक्रिया के बीच में चयन का आधार बदलने को न्यायसंगत न मानने की बात से भी वो सहमत प्रतीत हुए. 

चूंकि सरकारी वकील ने हमारे पक्ष के वकीलों की दलीलों और उनपर कोर्ट के सकारात्मक रुख को देखते हुए मैदान छोड़ना सही मानकर स्पष्ट कर दिया था कि सरकार की ओर से हलफनामा नहीं लाए हैं, उन्होंने कोर्ट से समय माँगा जिसपर न्यायाधीश महोदय ने उन्हें अगले दिन पेश होने को कहा. इस पर सरकारी वकील ने अगले दिन यानि २८ अगस्त को इस सम्बन्ध में निर्णय के लिए अर्थात चयन का आधार बदलने के लिए नियमावली में संशोधन करने के लिए प्रस्तावित कैबिनेट की बैठक का हवाला देते हुए स्थिति स्पष्ट करने के लिए कुछ समय माँगा. हमारे वकीलों ने हस्तक्षेप करते हुए इस बात को उठाया कि इस प्रकार का किया जाने वाला संशोधन तो आगे होने वाली नियुक्तियों पर लागु हो सकता है, इस प्रक्रिया पर नहीं. न्यायाधीश महोदय ने सहमति जताते हुए सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए अगले सोमवार यानि 3 सितम्बर २०१२ कि तारीख दे दी. न्यायालय में अपनी प्रभावी पैरवी और उसपर न्यायालय का रुख हमारे लिए एक संजीवनी सा उत्साह-वर्धक साबित हुआ है. इस से इस सत्य का आभास हुआ है कि कानूनी तौर पे मजबूती के बावजूद आज की परिस्थितियों में सच को भी सच साबित करने के लिए एकजुटता, संगठन और प्रभावी प्रस्तुतीकरण जरुरी है और अब हम समय के साथ, सही रास्ते पर चल पड़े हैं और मंजिल मिलना भी तय है.

एक बात यहाँ अप्रासंगिक लग सकती है पर आप सबके साथ साझा करना चाहूँगा कि विज्ञापन के तकनीकी तौर पर रद्द होने की आशंका भी अब निराधार प्रतीत होती है. बी.एस.ए. द्वारा जिलेवार विज्ञप्ति के स्थान पर सचिव द्वारा उनकी ओर से राज्य-स्तर पर एक विज्ञप्ति के द्वारा आवेदन आमंत्रित करने को विधि-विरुद्ध बताते हुए कपिल यादव द्वारा उठाई गई आपत्ति के जवाब में सरकार की ओर से तत्कालीन सचिव, बेसिक शिक्षा, श्री अनिल संत द्वारा दाखिल हलफनामे में स्पष्ट कहा गया है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार कोई अभ्यर्थी जिस प्रक्रिया का हिस्सा है, उसे चुनौती नहीं दे सकता. साथ ही हलफनामे में स्पष्ट रूप से यह भी कहा गया था कि यह भर्ती प्रमुख रूप से "प्रशिक्षु अध्यापकों" कि भर्ती है न कि "सहायक अध्यापकों" कि भर्ती. उन्होंने स्पष्ट किया कि कपिल यादव ने बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, १९८१ में चयन-भर्ती के लिए बी.एस.ए. द्वारा द्वारा जिलेवार विज्ञप्ति निकले जाने की जिस व्यवस्था का उल्लेख किया है, वह "सहायक अध्यापकों" के चयन के लिए लागू होती है. एक बिलकुल ही नई अवधारणा के तहत "प्रशिक्षु अध्यापक" के रूप में यह भर्ती प्रदेश में शिक्षकों की कमी पूरी करने के उद्देश्य से एन.सी.टी.ई. द्वारा दी गई विशेष अनुमति के तहत पहली बार की जा रही है, अतएव इनके चयन या भर्ती के लिए किसी पूर्व-निर्धारित किसी प्रक्रिया या नियम के होने का प्रश्न ही नहीं उठता, ऐसी स्थिति में राज्य-सरकार आवश्यक नियम और प्रक्रिया का निर्धारण एवं क्रियान्वयन करने के लिए पूर्णतया सक्षम है. अतएव वैधानिक दृष्टि से राज्य-सरकार कतई बाध्य नहीं है कि "सहायक अध्यापकों" के चयन-भर्ती के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन "प्रशिक्षु अध्यापकों" के चयन-भर्ती के लिए भी करे. इस प्रकार जहाँ तक वैधानिक रूप से विज्ञप्ति के गलत होने का प्रश्न न्यायालय में नेपथ्य में जा चुका है.

तमाम भाइयों को यह नागवार गुजर रहा है कि कोर्ट ने पहले स्टे क्यूँ नहीं हटा लिया और प्रक्रिया शुरू करने की छूट सरकार को क्यूँ नहीं दी? आप स्वयं समझ सकते हैं कि पल-पल रंग बदल रही सरकार स्टे हटने पर विज्ञप्ति के अनुसार भर्ती करने के बजाय किसी न किसी आधार पर विज्ञप्ति रद्द करके नए आधार पर मनमाने तरीके से भर्ती करती. ऐसी स्थिति में या तो आप चुपचाप बैठ कर अन्याय सहते या फिर नई प्रक्रिया के खिलाफ कोर्ट में नए सिरे से लड़ाई लड़ते, जिसमे कोई जरुरी न होता कि प्रक्रिया पर स्टे मिलता. ऐसी सूरत में आप कोर्ट में लड़ते रहते और अगर कभी जीत भी जाते तो उस समय तक वो भर्ती पूरी हो चुकी होती. ऐसे में आप कोर्ट से कहने को तो भले जीत जाते पर असलियत में आप हार चुके होते. ऐसे में बेहतर है कि सरकार कि हर वो चाल, जिसे स्टे मिलने के बाद वो कोर्ट के दायरे से मुक्त होकर चल पाती, आज कानून की निगरानी में है, उसकी न्यायिक समीक्षा के बाद कोर्ट की हरी झंडी मिलने की सूरत में ही वो क्रियान्वित हो सकती है. इसके अलावा बी.टी.सी./ वि.बी.टी.सी. वाले भाइयों के बी.एड. अभ्यर्थियों से इतर चयन प्रक्रिया और नियुक्ति का मसला भी बाकी है जिसको लेकर कोर्ट ने सरकार से तारीख-वार कार्य-योजना तलब की है. अतः आज की स्थिति में ये न्यायालय का संरक्षण ही है जो इस सरकार की मनमानी से इस प्रक्रिया को आजतक बचाए हुए है. 

फेसबुक पर समय-समय पर उपयोगी जानकारी देने वाले हमारे साथी अमितेश पांडे जी, अर्जुन सिंह जी और आनंद तिवारी जी द्वारा न्यायालय में हमारे पक्ष के वकील अभिषेक श्रीवास्तव, जोकि कि बी.टी.सी. वालों के भी वकील हैं, द्वारा प्रमुख रूप से मात्र बी.टी.सी. अभ्यर्थियों के पक्ष में की गई बहस के औचित्य पर उठाये गए प्रश्नों और उनके द्वारा सभी वकीलों द्वारा एक-दुसरे के साथ मिलकर एक मजबूत मोर्चे के रूप में अपना पक्ष मजबूती से रखने की जताई गई आवश्यकता को लड़ाई के इस भाग में नज़र-अंदाज़ नहीं किया जा सकता. इस सम्बन्ध में स्वयं भाई रत्नेश पाल से २७ अगस्त (सुनवाई वाली रात) बातचीत के दौरान यह जानकर संतुष्टि हुई कि वे भी अपने साथियों की आशंकाओं से न सिर्फ अवगत और सहमत है बल्कि उन्होंने भी भाई सुजीत जी से इस सम्बन्ध में विस्तृत वार्ता की है ताकि इस लड़ाई में आपसी एकजुटता में किसी प्रकार की कमजोरी न आने पाए, हमारा कोई प्रयास हमारे ही लिए हानिकारक न हो जाये, सभी वकील एकमात्र टी.ई.टी. मेरिट से चयन की वकालत करे. उन्होंने भरोसा दिलाया है कि इस सम्बन्ध में समय रहते आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं ताकि किसी संभावित दुष्परिणाम से बचा जा सके और जीत हासिल की जा सके. 

मैंने जो कुछ यहाँ लिखा है, ज्यादातर मित्रो को पहले से ही विदित होगा पर मुझे फिर से ये सब लिखने की जरुरत अपने तमाम साथियों द्वारा व्यक्त कि जा रही जिज्ञासाओं और आशंकाओं के कारण महसूस हुई है. आप में से बहुतों के लिए बासी और अनावश्यक सामग्री को प्रस्तुत करते हुए यह भी अनुरोध है कि यदि मैं भूलवश अगर कुछ गलत लिख गया होऊं या कुछ महत्वपूर्ण बात रह गयी हो तो आप इसमें जोड़ने / सुधार करने का सहयोग प्रदान करेंगे.

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