Saturday, September 1, 2012

UPTET : Article By Shyam Dev Mishra regarding Teacher Recruitment Cancellation News


UPTET : Article By Shyam Dev Mishra regarding Teacher Recruitment Cancellation News

प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती का विज्ञापन रद्द करने का सरकार का आदेश : इसमें नया क्या है?

आज के समाचारपत्रों में प्रकाशित समाचार के अनुसार सरकार ने प्रमुख सचिव को आदेश दिया है कि 2 दिसंबर 2011 को प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित करने वाले विज्ञापन को निरस्त करें. पर इस समाचार से किसी को भी हताश होने या प्रसन्नता से उछल पड़ने का कम से कम कोई नया कारण इसलिए नहीं मिल जाता कि सरकार द्वारा 23 जुलाई 2012 की कैबिनेट मीटिंग में इस आशय का निर्णय लिया गया था जिसकी जानकारी सभी को है और इसकी प्रति सरकार ने कोर्ट में भी 6 अगस्त 2012 की सुनवाई के दौरान पेश की थी. अतएव स्थिति में कोई भी परिवर्तन नहीं आया है, क़ानूनी तौर से हम आज उसी स्थिति में हैं, जिस स्थिति में हम 27 अगस्त 2012 की सुनवाई के बाद थे. समाचार अगर सत्य है तो यह केवल इतना स्पष्ट करता है कि सरकार अपने पुराने हठवादी एवं दुराग्रही रुख पर ही कायम है और इसकी मंशा को पूरा होने से रोकने के लिए टी.ई.टी. मेरिट समर्थकों को न्यायालय में सरकार के खिलाफ पूरी मजबूती से डटे रहने की आवश्यकता है जिसके लिए वे पहले से तैयार भी बैठे हैं. .
स्थिति में कोई भी परिवर्तन अब 3 सितम्बर 2012 को ही होगा, उसके पूर्व नहीं
जहाँ एक ओर अभी सरकार के इस आदेश को न्यायिक अवमानना नहीं माना जा सकता क्योंकि कैबिनेट के निर्णय को चुनौती देने वाली चारो याचिकाएं (मेरी जानकारी के अनुसार) विचारार्थ स्वीकार भले ही हुई हैं पर उनपर न्यायालय ने कोई अंतरिम आदेश या स्थगनादेश (स्टे) जारी नहीं किया है. पर दूसरी ओर यह मामला सब-ज्यूडिस (न्यायालय में विचार के लिए स्वीकृत और विचाराधीन) है इसका स्पष्ट मतलब है है कि इस आदेश का मूल यानि सरकार का 23 जुलाई का निर्णय सर्वव्यापी, न्यायिक समीक्षा से परे या अंतिम नहीं है और न्यायालय द्वारा इस गलत समझे जाने पर इसे रद्द भी क्या जा सकता है. अतः यह भी मानना होगा कि सरकार द्वारा 23 जुलाई 2012 को लिया गया निर्णय कोर्ट द्वारा रद्द होने की स्थिति में यह आदेश स्वतः निष्प्रभावी हो जायेगा

माननीय न्यायाधीश अरुण टंडन जी इस मामले पर विचार करते सरकार का नहीं, कानून के दायरे में और साक्ष्यों के आधार पर सिर्फ और सिर्फ न्याय का ही पक्ष लेने वाले हैं. उनकी असंदिग्ध न्यायप्रियता और सरकार के प्रति उनके दृष्टिकोण की पुष्टि केस संख्या 14427 / 2010 (रणजीत सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार) की 17 व 31 अगस्त 2012 की सुनवाई के बाद उनके आदेशो से होती है जिसमे उन्होंने बिना किसी संकोच, दबाव और भय के सीधे तौर पर उत्तर प्रदेश में स्वयं सरकार को शिक्षा-व्यवस्था को प्रदूषित (भ्रष्ट कह सकते हैं) करने वाला सबसे बड़ा कारक बताते हुए सरकारी डायट में चल रहे प्रशिक्षण को मात्र प्रमाणपत्र बाटने के उद्देश्य से किया जा रहा तमाशा करार देते हुए लिखित रूप से स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में सरकार को अपनी शक्तियों का मनचाहा प्रयोग करते हुए कुछ भी करने की छूट नहीं दी जाएगी और सरकार को कोर्ट के आदेश मानने ही पड़ेंगे. अतः सबको यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि "सरकार बहुत कुछ तो कर सकती है, पर सबकुछ नहीं कर सकती!

जिन लोगो को सरकार और व्यवस्था के खिलाफ कुछ हो सकने का भरोसा नहीं. उन्हें एक बार उत्तर प्रदेश सरकार तो क्या, खुद भारत सरकार और भारत की सर्वोच्च "संसद' तक द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों को 4.5% आरक्षण देने के लिए बनाये गए कानून के हश्र को याद रखना चाहिए जिसे न्यायपालिका ने असंवैधानिक बताते हुए, सिरे से खारिज करते हुए रद्द कर दिया. अगर केंद्र और संसद तक के नीतिगत आदेश न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत हैं तो अखिलेश यादव की सरकार क्या चीज़ है, बस हमारा पक्ष सही होना चाहिए, सही ढंग से न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहिए.

अतः इस आदेश से भ्रमित या विचलित हो उठे साथियों से केवल इतना कहना चाहूँगा कि इस समाचार में कुछ नया नहीं है और आज भी इस देश में न्यायालय के रूप में हमारे पास एक एक ऐसा संरक्षक मौजूद है जो आपके सही होने, आपके जागरूक होने और आपके प्रयास करने पर आपको ऐसे अन्यायों से बचने में पूर्णतया सक्षम है.अगर न्यायालय आपका पक्ष सही मानता है तो सरकार भी आपका हक़ आपसे छीन नहीं सकती, बस जागरूक रहें, विवेक का प्रयोग करें और अपने अधिकारों के लिए पूरी सामर्थ्य के साथ संघर्ष करने का संकल्प करें. आशा है आगामी ३ सितम्बर को शायद स्थिति काफी स्पष्ट हो जाएगी.
उपरोक्त विषय-वस्तु मेरी व्यक्तिगत सोच और मेरे अधिवक्ता मित्र द्वारा दी गई जानकारी का निष्कर्ष है, यदि कोई साथी इसमें कोई तार्किक या तथ्यात्मक संशोधन करना चाहे या कुछ जोड़ना चाहे तो उनका स्वागत है. पर प्रत्येक परिस्थिति में नकारात्मक सोचने वाले लोगो के लिए और कडवी सच्चाई से आँख मूंदकर आत्म-मुग्ध रहने वालों के लिए यह सब निरी बकवास है, इसका भी मुझे पूर्ण विश्वास है.

- Article By Mr. Shyad Dev Mishra 

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