UP teacher News : प्रधानाचार्य बने बीएसए, छात्रों की पढ़ाई पर संकट
UPTET / टीईटी / TET - Teacher Eligibility Test Updates / Teacher Recruitment News
लखनऊ (ब्यूरो)। पढ़ाने की जिम्मेदारी लेने वाले ही जब खिसक जाएं तो स्कूलों का भगवान ही मालिक है। प्रदेश के राजकीय इंटर कॉलेजों का ऐसा ही हाल है। राजकीय इंटर कॉलेजों के लिए चयनित हुए अधिकतर प्रधानाचार्य बेसिक शिक्षा अधिकारी बनकर जिलों में मजे मार रहे हैं और इनमें पढ़ने वाले छात्रों की शिक्षा भगवान भरोसे चल रही है। प्रदेश में मौजूदा समय 567 इंटर कॉलेजों में अधिकतर में कार्यवाहक प्रधानाचार्य के सहारे काम चलाया जा रहा है।
राजकीय इंटर कॉलेजों में प्रधानाचार्यों के 50 फीसदी पदों पर लोकसेवा आयोग से चयन होता है और 50 फीसदी पदों को पदोन्नति से भरा जाता है। प्रदेश में मौजूदा समय 567 राजकीय इंटर कॉलेज हैं। राजकीय इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्यों को बेसिक शिक्षा अधिकारी, जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) में वरिष्ठ प्रवक्ता और जिलों में एसोसिएट डीआईओएस के पद पर तैनाती दी जा सकती है। प्रधानाचार्य बनने वाले का शुद्ध काम बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देना होता है। डायट में वरिष्ठ प्रवक्ता का काम बीटीसी का प्रशिक्षण देना होता है, जबकि बीएसए और एसोसिएट डीआईआएस के पद पर तैनाती पाने वाले मजे मारते हैं। इसलिए आयोग से चयनित होने वाले काफी संख्या में प्रधानाचार्य जुगाड़ के सहारे बीएसए या फिर प्रभारी डीआईओएस बने हुए हैं। इसके चलते राजकीय इंटर कॉलेजों की पढ़ाई भगवान भरोसे चल रही है।
567 कॉलेजों में अधिकतर में कार्यवाहक प्रधानाचार्य
दस वर्षों से डीपीसी नहीं
राजकीय इंटर कॉलेज के कुल पदों में आधे पर सीधी भर्ती होती है और आधे को पदोन्नति के माध्यम से भरा जाता है। प्रदेश में आखिरी बार वर्ष 2003 में विभागीय पदोन्नति कमेटी (डीपीसी) की बैठक बुलाई गई थी। इसके बाद से डीपीसी नहीं हुई है। विभागीय जानकारों की मानें तो मौजूदा समय 400 से अधिक राजकीय इंटर कॉलेजों में कार्यवाहक प्रधानाचार्य हैं। इससे राजकीय इंटर कॉलेजों में छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
नहीं हो रही सुनवाई
राजकीय इंटर कॉलेजों में प्रधानाचार्य के रिक्त पदों को भरने के लिए डीपीसी की मांग लगातार की जा रही है। शासन ने इस संबंध में लोकसेवा आयोग को पत्र लिखकर डीपीसी की बैठक बुलाने के लिए समय मांगा था, लेकिन समय नहीं दिया जा रहा है। दस वर्षों से डीपीसी न होने की वजह से साल दर साल प्रधानाचार्य रिटायर होते जा रहे हैं और कार्यवाहक की तैनाती हो रही है। इससे पढ़ाई पर असर पड़ रहा है। पारस नाथ पांडेय, अध्यक्ष राजकीय शिक्षक संघ
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लखनऊ (ब्यूरो)। पढ़ाने की जिम्मेदारी लेने वाले ही जब खिसक जाएं तो स्कूलों का भगवान ही मालिक है। प्रदेश के राजकीय इंटर कॉलेजों का ऐसा ही हाल है। राजकीय इंटर कॉलेजों के लिए चयनित हुए अधिकतर प्रधानाचार्य बेसिक शिक्षा अधिकारी बनकर जिलों में मजे मार रहे हैं और इनमें पढ़ने वाले छात्रों की शिक्षा भगवान भरोसे चल रही है। प्रदेश में मौजूदा समय 567 इंटर कॉलेजों में अधिकतर में कार्यवाहक प्रधानाचार्य के सहारे काम चलाया जा रहा है।
राजकीय इंटर कॉलेजों में प्रधानाचार्यों के 50 फीसदी पदों पर लोकसेवा आयोग से चयन होता है और 50 फीसदी पदों को पदोन्नति से भरा जाता है। प्रदेश में मौजूदा समय 567 राजकीय इंटर कॉलेज हैं। राजकीय इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्यों को बेसिक शिक्षा अधिकारी, जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) में वरिष्ठ प्रवक्ता और जिलों में एसोसिएट डीआईओएस के पद पर तैनाती दी जा सकती है। प्रधानाचार्य बनने वाले का शुद्ध काम बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देना होता है। डायट में वरिष्ठ प्रवक्ता का काम बीटीसी का प्रशिक्षण देना होता है, जबकि बीएसए और एसोसिएट डीआईआएस के पद पर तैनाती पाने वाले मजे मारते हैं। इसलिए आयोग से चयनित होने वाले काफी संख्या में प्रधानाचार्य जुगाड़ के सहारे बीएसए या फिर प्रभारी डीआईओएस बने हुए हैं। इसके चलते राजकीय इंटर कॉलेजों की पढ़ाई भगवान भरोसे चल रही है।
567 कॉलेजों में अधिकतर में कार्यवाहक प्रधानाचार्य
दस वर्षों से डीपीसी नहीं
राजकीय इंटर कॉलेज के कुल पदों में आधे पर सीधी भर्ती होती है और आधे को पदोन्नति के माध्यम से भरा जाता है। प्रदेश में आखिरी बार वर्ष 2003 में विभागीय पदोन्नति कमेटी (डीपीसी) की बैठक बुलाई गई थी। इसके बाद से डीपीसी नहीं हुई है। विभागीय जानकारों की मानें तो मौजूदा समय 400 से अधिक राजकीय इंटर कॉलेजों में कार्यवाहक प्रधानाचार्य हैं। इससे राजकीय इंटर कॉलेजों में छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
नहीं हो रही सुनवाई
राजकीय इंटर कॉलेजों में प्रधानाचार्य के रिक्त पदों को भरने के लिए डीपीसी की मांग लगातार की जा रही है। शासन ने इस संबंध में लोकसेवा आयोग को पत्र लिखकर डीपीसी की बैठक बुलाने के लिए समय मांगा था, लेकिन समय नहीं दिया जा रहा है। दस वर्षों से डीपीसी न होने की वजह से साल दर साल प्रधानाचार्य रिटायर होते जा रहे हैं और कार्यवाहक की तैनाती हो रही है। इससे पढ़ाई पर असर पड़ रहा है। पारस नाथ पांडेय, अध्यक्ष राजकीय शिक्षक संघ
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