यूपी टेट और संघटन की मजबूती
एक चींटी थी जिसे एक मिठाई का टुकरा मिला . अब ये मत कहियेगा की आप को मिठाई नहीं पसंद है. अब बेचारी अकेली चींटी उस टुकरे को खाना तो अकेले ही चाहती थी लेकिन उसे ये भी मालूम था की वो उसे अकेले नहीं पा सकती है. अब उसने और चींटीयों को अपने साथ मिलाने को ठानी. उसने सभी को उस चीज के बारे बताना शुरू किया . कुछ लोगों को उस चीज की अहमियत समझ में आई और कुछ ने सोचा की क्या फायदा इनके साथ इतनी मेहनत करने का ? जबकि अंत में अगर इन्हें वो मिठाई का टुकरा मिल जाता है तो हिस्सा तो मुझे भी मिलेगा ही. फिर इतनी मेहनत और पसीना बहाने की क्या जरुरत ? अब चूँकि बहुत सी चींटीयों ने घर बैठना ही पसंद किया और उन की वजह से वे लोग उस टुकरे को नहीं छोड़ सकते थे. अतः उन कायरों को छोड़कर उन वीरों ने उस टुकरे को पाने की ठानी.
यधपि कहीं न कहीं उनको हमेशा अपने साथियों का इन्तेजार ही रहता था की देर से सही अगर हमरे साथी हमारा साथ देने आ जाते हैं तो उनका स्वागत किया जायेगा. यधपि इस कहानी का अंत मुझे भी नहीं मालूम , नहीं तो मै जरूर बताता. लेकिन एक बात मेरी समझ में आती है की कहीं न कहीं उक्त कहानी हम टेट वालों से जरूर मिलती है. जब जीवन में हम किसी लक्ष्य को पाने का पर्यत्न करते है और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसी संघटन का निर्मार करते है तो हमें सर्वप्रथम जिस चीज की आवश्यकता होती है वो है मुंडी की. अब मुंडी कई तरह की होती है जैसे-
१. वो मुंडी जो सड़कों पर उतरती है और संख्या बल दिखाती है.
२. वो मुंडी जो घरों की खिडकियों मे से झांकती है.
३. वो मुंडी जो गर्व के साथ सर उठती है और हर अत्याचार का सामना करती है .
४. वो मुंडी जो सर झुकाने को तो तैयार है पर सर नहीं उठा पाती है.
अब हमें सोचना है की हम कौनसी cetegiry में आते हैं. निसंदेह हम सब उसी cetegiry में रहना चाहते हैं जहाँ भले सर कट जाये लेकिन सर नहीं झुकना चाहिए.
तन, मन और धन ...... ये तीन ऐसे शब्द हैं जिनपर एक मजबूत संघटन की नीव होती है. ये सिर्फ शब्द नहीं हैं. ये हमें सफलता की ओर ले जाते हैं. इसपर चलकर इन्सान सफल होता है.
१. 'तन' यानि एक वादा की हम अपने शरीर के खून की आखरी बूंद तक संघर्ष करते रहेंगे.
२. 'मन' यानी एक वादा की हम संघटन के प्रति कभी निष्क्रिय नहीं होंगे.
३. 'धन' यानी एक वादा की हम संघटन को धन की कमी से कभी भी नहीं हारने देंगे.
तन, मन और धन ...... ये किसी पर थोपा नहीं जा सकता है क्यूंकि कोई तन से, कोई मन से और धन से संगठन को मजबूत कर सकता है ओर करता भी होगा. कहतें हैं की जब मंजिल करीब दिखने लगती है तो वहां पहुचने की उत्सुकता और अधिक बढ़ जाती है और ऐसा होना किसी भी आधार पर गलत नहीं है. क्यूंकि मेरा मानना है की सक्रियता के लिए उत्सुकता बहुत जरुरी होती है. अब प्रशन ये उठता है की क्या हमें भी उस चींटी की तरह बिना ये सोचे की लोग हमारा साथ देंगे या नहीं, अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए या फिर उन लोगों से प्रभावित होकर अपने लक्ष्य को पाने की लालसा छोड़कर उनकी तरह घर बैठ जाना चाहिए. संघटन दोगले वादों पर नहीं जीता. संघटन को मजबूत करने के लिए सभी को अपने स्तर से प्रयास करना पड़ता है. तभी जा कर किसी संगठन की नीव मजबूत होती है. अब हमें ये सोचना है की क्या हमारे द्वारा किये गए वादों की विश्वशनीयता इतनी सही है की हम उसे दोगला आचरण ना कह सके. इसका सवाल का जवाब सिर्फ हमारी अंतर आत्मा ही दे सकती है जिसको खोजने की जरुरत आज हम सभी को है.
एक बात का और ध्यान रखना है की क्या सिर्फ फ़ोन पर जानकारी प्राप्त कर लेने से हमारी जिम्मेदारी पूरी हो जाती है. हमें ये समझना होगा की हमारे लिए कौन कितना कर सकता है. और उससे उस काम को करवाने के लिए हमें किस चीज की आवश्यकता है. क्या कहा आपने..... मेरी बातें समझ में नहीं आई. कोई बात नहीं.
१. कौन कितना कर सकता है ? = सूबे की सरकार
२. उससे उस काम को करवाने के लिए हमें किस चीज की आवश्यकता है ? = संख्या बल
एक और सवाल अक्सर हमारे फ़ोन पर पूछा जाता है की कितने लोग हैं उस धरने में ? मेरे भाइयों !!! आपको समझना पड़ेगा की चाहे जितने लोग भी हों पर एक की कमी वहां हमेशा होती है और वो आप खुद हो. बस हमें इस कमी को पूरा करना है. मुझे आज भी याद है .. हमारी नोक-झोंक चल रही थी CHARBAGH पर पुलिस से और उसी वक़्त किसी का फ़ोन आता है और वो पूछता है की भाई क्या हो रहा है वहां पर ? अब आप बताइए मै क्या जवाब देता...और मैंने क्या जवाब दिया होगा .. उसको यहाँ बताने की आवश्यकता नहीं है.
एक बात और कहते हैं की यदि सुबह का भुला शाम को घर वापस आ जाता है तो उसे भुला नहीं कहते... अभी वक़्त है नहीं तो कल यदि आपका जमीर आपको गलियां दें और आप सोचें की शायद मै भी शामिल हो जाता तो आज मेरा भी ज़मीर मुझे सराहता. ये पूछना की कितने लोग हैं ? बिलकुल छोड़ दीजिये. गाँधी जी जब डंडी यात्रा पर चले थे तो उनके साथ कितने लोग थे लेकिन जैसे-जैसे वो आगे बढ़ते गए कारवां बनता गया और कब एक दस में और दस सौ में, सौ हज़ार में , हज़ार लाख में बदलता चला गया. संघटन को मजबूत करने के लिए व्यक्तिगत तौर हमें कुछ बातों को अपनाना होगा...
१. आँखे खुली रखे लक्ष्य से ध्यान कभी भी भटकने न दें.
२. अपने आस-पास के बहरूपियों को पहचाने और उन्हें बाहर का रास्ता दिखाएँ.
३. तन, मन और धन की परिभाषा को कभी न भूलें.
४. नेता कम , कार्यकर्ता बने रहें.
५. चुने हुए प्रतिनिधियों की बातों पर चलना सीखें.
६. साप्ताहिक मीटिंग में अधिक से अधिक और हमेशा शामिल हों.
७. कम से कम २ टेट अभ्यर्थी को अपने स्तर से जरूर जोड़ें.
दोस्तों अगर उक्त बातों को आप अपने दिल से निभाना सीख ले तो निश्चित तौर पर कोई भी चीज असंभव नहीं है और जो कुछ आप चाहते हैं वही होगा.
आपका अपना साथी
सुभानाल्लाह (सुभान)
गोरखपुर
9935907083
TET की परीक्षा की जरुरत पडी जब एकेडमिक मेरिट पर ही vacancies को भरनी है, इसका मतलब है की राज्य सरकार भी कही न कही एकेडमिक मेरिट की सच्चाई जानता है फिर भी गलतिया करती जा रही। इसलिए TET को TET प्राप्त मेरिट पर भरा जाय।
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