UPTET Article By Shyam Dev Mishra ( Blog Visitor )
प्रेषक: Shyam Dev Mishra <shyamdevmishra@gmail.com>दिनांक: 18 अप्रैल 2012 1:48 amविषय: Matter for Blogप्रति: Muskan Bharat <muskan24by7@gmail.com>
Muskan Ji, in view of the news published in Daily dainik jagran on 16th April, 2012, I wish to share following facts with all of the blog-visitors for better and realistic understanding of the issue. Kindly Publish and abolish the confusion creaated by such shallow-reporting. Thanks aand regards.
Yours sincerely, Shyam Dev Mishra
क्या जमाना आ गया है दोस्तों, आज तो हमे अंधे भी रास्ता दिखा रहे हैं!
दैनिक जागरण (16.04.2012) की खबर पढ़कर लग रहा है कि किसी ज़माने में स्व. नरेन्द्र मोहन जैसे कर्मयोगी और निर्भीक पत्रकारों द्वारा प्रेरित यह समाचार पत्र आज अंधे मूर्खों द्वारा संचालित या सम्पादित हो रहा है जो पत्रकारिता के विश्वसनीयता और जिम्मेदारी जैसे दायित्वों को दफना चुके हैं. किसी सामान्य पढ़े-लिखे व्यक्ति को भी पता है कि टी.ई.टी. एक्ट नाम का कोई एक्ट नहीं है न ही एन.सी.टी.ई. को कोई एक्ट बनाने का अधिकार है. वास्तव में संसद द्वारा पारित "राईट ऑफ़ फ्री एंड कम्पलसरी एजुकेशन टू चिल्ड्रेन एक्ट, 2010" में एन.सी.टी.ई. को इस एक्ट के दायरे में आनेवाली विद्यालयों में शिक्षकों के तौर पे नियुक्ति के लिए आवश्यक योग्यताएं निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है. एक्ट के अनुसार यदि किसी राज्य में पर्याप्त संख्या में योग्य अभ्यर्थी नहीं है या ऐसी योग्यता प्रदान करने वाले संस्थान पर्याप्त संख्या में नहीं हैं तो केंद्र सरकार, राज्य सरकार द्वारा इस आशय का अनुरोध प्राप्त होने पर एक निश्चित अवधि के लिए, जो एक्ट के प्रभावी होने की तिथि, (01.04.2010) से पांच वर्ष से अधिक न होगी, अध्यापक के लिए नियुक्ति के लिए आवश्यक शैक्षणिक योग्यताओं को एक अधिसूचना के माध्यम से शिथिल कर छूट प्रदान कर सकती है. पर ध्यान दें कि एक्ट में स्पष्ट है कि भले केंद्र सरकार शैक्षणिक योग्यता में भले राज्य के अनुरोध पर अधिकतम पांच वर्ष के लिए छूट दे सकती है पर एक्ट के अनुसार टी.ई.टी. से छूट, एन.सी.टी.ई. तो क्या, खुद केंद्र सरकार चाहकर भी नहीं दे सकती जबतक एक्ट में संसद द्वारा संशोधन करके ऐसा प्रावधान न किया जाये जो कि अभी दूर की कौड़ी है.
ऐसे में मुख्यमंत्री द्वारा प्रधानमंत्री से बी.एड. डिग्री-धारकों की प्राइमरी स्कूलों में अध्यापक के तौर पर नियुक्ति के लिए समय सीमा बढ़ाने की मांग तो फिर भी क़ानूनी तौर पे सही है पर "विभागीय सूत्रों के मुताबिक" जैसे जुमलों की आड़ में ये चालाक-सह-मूर्ख संवाददाता केवल पन्ना काला करने के लिए मनगढ़ंत बातें, जैसे "एन.सी.टी.ई. के बनाये टी.ई.टी. एक्ट (भारत में ऐसा कोई एक्ट नहीं है) में राज्य सरकारों को अधिकार है कि वह 31 मार्च 2012 तक शिक्षकों की भर्ती के लिए नियम शिथिल कर सकती हैं." गैरजिम्मेदाराना तरीके से फैला रहे हैं. असल में अगर राज्य केंद्र द्वारा शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत संचालित विद्यालयों के सञ्चालन के लिए दी जानेवाली 65 फीसदी अंशदान पाना चाहता है तो उसे इस अधिनियम के दायरे में नियमावली बनाकर अधिसूचित करना होगा जैसा कि मायावती शासनकाल में किया गया. राज्य को अगर यह मदद चाहिए तो उन्हें एन.सी.टी.ई. द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करना ही होगा, हाँ, पर्याप्त अध्यापन-प्रशिक्षण संस्थान और अर्ह अभ्यर्थी उपलब्ध न होने पर राज्य केंन्द्र सरकार से एक अवधि तक शैक्षणिक योग्यता में शिथिलीकरण का अनुरोध तो कर सकती है, खुद नहीं कर सकती जैसा कि इस अख़बार ने छाप दिया.
रही बात हरयाणा की, तो हरियाणा में गैर-टी.ई.टी.उत्तीर्ण शिक्षकों की नियुक्ति की दशा में उनको मिलने वाली केन्द्रीय सहायता में रोक लगनी तय है अगर यह मामला उचित मंचों पर उठाया जाता है. और दूसरी बात, अगर कही कुछ गैर-कानूनी हो रहा है तो हमे भी कुछ गैर-कानूनी करने का अधिकार नहीं मिल जाता. ध्यान दें की यहाँ मैं नैतिक आधार पर सही-गलत की बात नहीं कर रहा, वर्तमान प्रभावी कानूनों के आलोक में वैध-अवैध की बात कर रहें है.
कृपया अख़बार मनोरंजन के लिए भले पढ़े पर कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर स्वयं उचित संसाधनों या जरियों से जानकारी प्राप्त करें न कि जागरण जैसे अख़बारों से.
श्याम देव मिश्रा
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